"साहित्य दर्पण": अवतरणों में अंतर

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उपर्युक्त विवरण से महाकाव्य सम्बन्धी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
 
*1 . महाकाव्य की कथा सर्गों में विभाजित होती है।
 
*2 . इसका नायक कोई देवता अथवा धीरोदात्त गुणों से युक्त कोई उच्च कुलोत्पन्न क्षत्रिय होना चाहिए। एक ही वंश में उत्पन्न अनेक राजा भी इसके नायक हो सकते हैं।
 
*3 . इसमें शृङ्गार, वीर, शान्त इन तीन रसों में से कोई एक रस प्र धान होना चाहिए और अन्य रस उसके सहायक होने चाहिए।
 
*4 . इसमें नाटक की सारी सन्धियाँ (मुख, प्रतिमुख, गर्भ, विमर्श, उपसंहृति) को स्थान दिया जाता है।
 
*5 . काव्य का कथानक ऐतिहासिक होता है और यदि ऐतिहासिक न हो तो किसी सज्जन व्यक्ति से सम्बन्ध रखने वाला हो ना चाहिए।
 
*6 . इसमें चार वर्गों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में से कोई एक फल रूप में होना चाहिए।
 
*7 . उसके आरम्भ में नमस्कार, आर्शीवचन तथा मुख्य कथा की ओर संकेत के रूप में मंगलाचरण वर्तमान रहता है।
 
*8 . इसमें कहीं-कहीं दुष्टों की निन्दा और सज्जनों की प्रशंसा होती है।
 
*9 . इसमें सर्गों की संख्या आठ से अधिक होनी चाहिए और उन सर्गों का आकार बहुत छोटा नहीं होना चाहिए। प्रायः प्रत्येक सर्ग में एक ही छन्द का प्रयोग होना चाहिए और सर्ग के अन्त में छन्द परिवर्तन उचित है। कहीं-कहीं सर्ग में विविध छन्दों का प्रयोग भी हो सकता है। प्रत्येक सर्ग के अन्त में आगे आने वाली कथा की सूचना होनी चाहिए।
 
*10 . इसमें संध्या, सूर्य, चन्द्र, रात्रि, प्रदोष, अंधकार, दिन, प्रातः काल, मध्याह्न, मृगया (शिकार), ऋतु, वन, समुद्र, मुनि, स्वर्ग, नगर, यज्ञ, युद्ध, यात्रा, विवाह, मन्त्र, पुत्र और अभ्युदय आदि का यथावसर साङ्गोपाङ्ग वर्णन होना चाहिए।
 
*11 . महाकाव्य का नामकरण कवि, कथावस्तु, नायक अथवा किसी अन्य चरित्र के नाम पर होना चाहिए और सर्गों का नाम सर्गगत कथा के आधार पर होना चाहिए।
 
इस प्रकार प्रायः प्रत्येक शास्त्रकार ने अपने समय में उपलब्ध महाकाव्यों के आधार पर महाकाव्य के लक्षणों का विधान किया है, लेकिन अधिकांश आधुनिक विचारक विश्वनाथ के विचारों को प्रामाणिक मानते हैं और परवर्ती महाकाव्यों में तो विश्वनाथ के मत को अधिकाधिक ग्राह्य समझा गया है।