"काली मिर्च": अवतरणों में अंतर
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== खेती ==
[[चित्र:Pimenta do Reino.jpg|अंगूठाकार|]]
काली मिर्च का पौधा हरे भरे वृक्षों और दीमक से बचे रहनेवाले अन्य आश्रयों पर लता की तरह चढ़कर खूब पनपता है। इसकी लताएँ स्थूल एवं पुष्ट, कांडग्रंथियाँ स्थूल और कभी-कभी मूलयुक्त तथा पत्तियाँ चिकनी, लंबाग्र, संवृत, अंडाकार तथा 10-18 सें.मी. लंबी और 5-12 सें.मी. चौंड़ी होती है। यह बारहमासी पौधा साधारणतया 25-30 वर्ष तक फलता फूलता रहता है, कहीं कहीं तो 60 वर्ष से भी अधिक तक फलता देख गया है। यह पौधा समुद्रतट से 1,070 मीटर की ऊँचाई तक होता है। इसे वर्षा द्वारा ही जल की प्राप्ति होती है। स्वभावत: यह पौधा नमी प्रधान और 2,032 मिलीमीटर से अधिक वार्षिक वर्षा तथा
काली मिर्च के गहरे हरे रंग के घने पौधों पर जुलाई के बीच छोटे छोटे सफेद और हल्के पीले रंग के फूल उग आते हैं और आगामी जनवरी से मार्च के बीच इनके नारंगी रंग के फल पककर तैयार हो जाते हैं। फल गोल और व्यास में 3-6 मि.मी. होता है। साधारणतया तीसरे वर्ष के पश्चात् पौधे फलने लगते हैं। सातवें वर्ष से पौधों पर फलों के 100 से 150 मिलीमीटर लंबे गुच्छे अधिकतम मात्रा में लगने प्रारंभ होते हैं। सूखने पर प्रत्येक पौधे से साधारणतया 4 से 6 किलोग्राम तक गोल मिर्च मिल जाती है। इसके प्रत्येक गुच्छे पर 50-60 दाने रहते हैं। पकने पर इन फलों के गुच्छों को उतारकर भूमि पर अथवा चटाइयों पर फैलाकर हथेलियों से रगड़कर गोल मिर्च के दानों को अलग किया जाता है। इन्हें 5-6 दिनों तक धूप में सूखने दिया जाता है। पूरी तरह सूख जाने पर गोल मिर्च के दोनों के छिलकों पर सिकुड़ने से झुरियाँ पड़ जाती हैं और इनका रंग गहरा काला हो जाता है। इंडोनेशिया, स्याम आदि देशों में पूर्णतया पके फलों को उतारकर पानी में भिगोने से, छिलकों से बिलगाकर, सफेद गोल मिर्च के रूप में तैयार किया जाता है। सफेद गोल मिर्च तेजी और कड़वाहट में काली मिर्च से कम प्रभावशाली होती है। पर स्वाद अधिक रुचिकर होता है। भारत से प्रतिवर्ष लगभग 20 करोड़ रुपए की लागत की काली मिर्च विदेशों में भेजी जाती है। इस निर्यात में अमरीकी डालरों का भाग लगभग 64 प्रतिशत से अधिक ही है।
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