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== आदियुग ==
आदियुग में [[सारला दास|सारला]]पूर्व साहित्य भी अंतर्भुक्त है, जिसमें "बौद्धगान ओर दोहा", [[गोरखानाथ]] का "सप्तांगयोगधारणम्", "मादलापांजि", "रुद्रसुधानिधि" तथा "कलाश चौतिशा" आते हैं। "बौद्धगान ओ दोहा" भाषादृष्टि, भावधारा तथा ऐतिहासिकता के कारण उड़ीसा से घनिष्ट रूप में संबंधित है। "सप्तांगयोगधारणम्" के गोरखनाथकृत होने में संदेह है। "मादलापांजि" [[जगन्नाथ मंदिर]] में सुरक्षित है तथा इसमें उड़ीसा के राजवंश और जगन्नाथ मंदिर के नियोगों का इतिहास लिपिबद्ध है। किंवदंतीकिंवदंति के अनुसार [[गंगदेश]] के प्रथम राजा [[चोड गंगदेव]] ने 1042 ई. (कन्या 24 दिन, शुक्ल दशमी दशहरा के दिन) "मादालापांजि" का लेखन प्रारंभ किया था, किंतु दूसरा मत है कि यह मुगलकाल में 16वीं शताब्दी में [[रामचंद्रदेव]] के राजत्वकाल में लिखवाई गई थी। "रुद्र-सुधा-निधि" का पूर्ण रूप प्राप्त नहीं है और जो प्राप्त है उसका पूरा अंश छपा नहीं है। यह [[शैव सम्प्रदाय|शैव ग्रंथ]] एक अवधूत स्वामी द्वारा लिखा गया है। इसमें एक योगभ्रष्ट योगी का वृत्तांत है। इसी प्रकार [[वत्सादास]] का "कलाश चौतिशा" भी सारलापूर्व कहलाता है। इसमें [[शिव]] जी की वरयात्रा और [[विवाह]] का [[हास्यरस]] में वर्णन है।
 
वस्तुत: [[सारला दास|सारलादास]] ही उड़िया के प्रथम जातीय कवि और उड़िया साहित्य के आदिकाल के प्रतिनिधि हैं। [[कटक]] जिले की झंकड़वासिनी देवी चंडी सारला के वरप्रसाद से कवित्व प्राप्त करने के कारण सिद्धेश्वर पारिडा ने अपने को "शूद्रमुनि" सारलादास के नाम से प्रचारित किया। इनकी तीन कृतियाँ उपलब्ध हैं : 1. "विलंका रामायण", 2. महाभारत और 3. चंडीपुराण। कुछ लोग इन्हें कपिलेंद्रदेव[[कपिलेन्द्रदेव]] (1435-1437) का तथा कुछ लोग [[नरसिंहदेव]] (1328-1355 ई.) का समकालीन मानते हैं।
 
इस युग का अर्जुनदास लिखित "रामविभा" नामक एक काव्यग्रंथ भी मिलता है तथा चैतन्यदासरचित[[चैतन्यदास]]रचित "विष्णुगर्भ पुराण" और "निर्गुणमाहात्म्य" अलखपंथी या निर्गुण संप्रदाय के दो ग्रंथ भी पाए जाते हैं।
 
== मध्ययुग ==