"ओड़िया साहित्य": अवतरणों में अंतर
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== आदियुग ==
आदियुग में [[सारला दास|सारला]]पूर्व साहित्य भी अंतर्भुक्त है, जिसमें "बौद्धगान ओर दोहा", [[गोरखानाथ]] का "सप्तांगयोगधारणम्", "मादलापांजि", "रुद्रसुधानिधि" तथा "कलाश चौतिशा" आते हैं। "बौद्धगान ओ दोहा" भाषादृष्टि, भावधारा तथा ऐतिहासिकता के कारण उड़ीसा से घनिष्ट रूप में संबंधित है। "सप्तांगयोगधारणम्" के गोरखनाथकृत होने में संदेह है। "मादलापांजि" [[जगन्नाथ मंदिर]] में सुरक्षित है तथा इसमें उड़ीसा के राजवंश और जगन्नाथ मंदिर के नियोगों का इतिहास लिपिबद्ध है।
वस्तुत: [[सारला दास|सारलादास]] ही उड़िया के प्रथम जातीय कवि और उड़िया साहित्य के आदिकाल के प्रतिनिधि हैं। [[कटक]] जिले की झंकड़वासिनी देवी चंडी सारला के वरप्रसाद से कवित्व प्राप्त करने के कारण सिद्धेश्वर पारिडा ने अपने को "शूद्रमुनि" सारलादास के नाम से प्रचारित किया। इनकी तीन कृतियाँ उपलब्ध हैं : 1. "विलंका रामायण", 2. महाभारत और 3. चंडीपुराण। कुछ लोग इन्हें
इस युग का अर्जुनदास लिखित "रामविभा" नामक एक काव्यग्रंथ भी मिलता है तथा
== मध्ययुग ==
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