"फिरोज़शाह मेहता": अवतरणों में अंतर

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==जीवनी==
[[Image:C375.jpg|thumb|250px|thumb|फिरोजशाह मेहता]]
सर फिरोजशाह मेहरवांजी मेहता का जन्म [[मुम्बईमुंबई|बंबई]] के एक धनी [[पारसी]] कुल में हुआ था जिनके व्यापार की शाखाएँ देश-विदेश में फैली हुई थीं। ये बी0 ए0 तथा एम0 ए0 की परीक्षाओं में प्रतिष्ठापूर्वक उतीर्ण हुए। इनकी असाधारण बुद्धिमत्ता देखकर इन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये [[इंग्लैंड]] भेजा गया। वहाँ पर न्यायवेत्ताओं की सर्वोच्च परीक्षा में उत्तीर्ण होकर ये स्वदेश लौट आए। इंग्लैंड में ये लंडन भारतीय सभा तथा "ईस्ट इंडिया ऐसोसिएशन" के संपर्क में आए। यहीं से इनके राजनीतिक, सामाजिक एवं साहित्यिक जीवन का शुभारंभ हुआ।
 
न्यायवेत्ता के कार्य में इन्होंने अपूर्व ख्याति उपलब्ध की परंतु इन्होंने अपने स्वार्थसाधन के लिये न्याय की मर्यादा का अतिक्रमण नहीं किया। तीन बार ये बंबई कारपोरेशन के सभापति चुने गए। उस समय कारपोरेशन की दशा शोचनीय थी। उसकी उन्नति के लिये मेहता जी ने हार्दिक प्रयत्न किया। इसलिये ये बंबई कारपोरेशन के बिना छत्रधारी राजा कहलाने लगे। बंबई सरकार ने कारपोरेशन के संगठन के लिये एक बिल प्रस्तुत किया जो अहितकर था। अत: बंबई की जनता ने उसका विरोध किया। इसे परिवर्तित करने के लिये बंबई के गवर्नर ने इस मसविदे को तेलंग और मेहता के पास भेज दिया। इस युगल मूर्ति ने सरकार तथा प्रजा दोनों के हित का ध्यान रखते हुए इस बिल को बड़ी सुदंरता से परिवर्तित किया।