"जैमिनि": अवतरणों में अंतर
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'''जैमिनि''' प्राचीन [[भारत]] के एक महान [[ऋषि]] थे। वे
== परिचय ==
जैमिनी [[वेदव्यास]] के शिष्य थे। [[महाभारत]] में लिखा है कि [[वेद]] का चार भागों में विस्तार करने के कारण 'वेदव्यास' (विस्तार) नाम पड़ा। इन्होंने जैमिनि को [[सामवेद]] की शिक्षा दी तथा महाभारत भी पढ़ाया-
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इन्हीं व्यास ने [[ब्रह्मसूत्र]] की, उपनिषदों के आधार पर, रचना की। इसी को "भिक्षुसूत्र" भी कहते हैं जिसका उल्लेख [[पाणिनि]] ने [[अष्टाध्यायी]] में किया है।
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इन प्रसंगों से यह स्पष्ट हे कि जैमिनि वेदव्यास के समानकालिक ऋषि थे। वेदव्यास ने कौरवों और पांडवों को साक्षात् देखा था। (''कुरूणां पाण्डवानांश्च भवान् प्रत्यक्षदर्शिवान्'' -महा आदि 60 18) अतएव ये महाभारत के युद्ध-काल में रहे होंगे। विंटरनिट्ज के अनुसार महाभारत की रचना ईसा से पूर्व चौथी सदी में हुई होगी, किंतु भारतीय विद्वानों के अनुसार 3000 वर्ष ईसा से पूर्व ही महाभारत का समय हो सकता है। अतएव वेदव्यास का भी समय इसी के अनुसार निश्चय करना होगा।
[[पाणिनि]] ने अपनी [[
सत्यव्रत समाश्रमी का कहना है कि जैमिनि निरुक्तकार [[यास्क]] के पूर्ववर्ती हैं। यास्क पाणिनि के पूर्ववर्ती हैं। सामाश्रमी ने [[यास्क]] को ईसा से पूर्व 19वीं सदी में माना है। ब्रह्मसूत्र में वेदव्यास ने जैमिनि का 11 बार उल्लेख किया है (1.3.38 : 1.2.31 : 1.3.31 : 1.4.18 : 3.2.40 : 3.4.2, 18, 40, 4.3.12 : 4.4.5, 11) आश्वलायन गृह्मसूत्र में भी जैमिनि का "आचार्य" नाम से उल्लेख किया गया है (3.18 (3) 1.1.5 : 5.2.19 : 6.1.8 : 10.8.44 : 11.1.64)। महाभारत का "अश्वमेधपर्व" तो जैमिनि के ही नाम से प्रसिद्ध है। इसी प्रकार जैमिनि ने अपने [[पूर्वमीमांसासूत्र]] में पाँच बार बादरायण के मत का, उनका नाम लेकर, उल्लेख किया है।
इस प्रकार वेदव्यास के साथ जैमिनि का घनिष्ठ संबंध रखना प्रमाणित होता है। अतएव ये दोनों एक ही काल में रहे होंगे, ऐसा सिद्धांत मानने में दोष नहीं मालूम होता। पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार जैमिनि ईसा से आठ शतक पूर्व ही रहे होंगे, किंतु भारतीय विद्वानों के अनुसार ईसा से तीन हजार वर्ष पूर्व जैमिनि का समय कहने में कोई विशेष आपत्ति नहीं मालूम होती।
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