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'''विज्ञान कथा''', [[काल्पनिक साहित्य]] की ही वह विधा है जो [[विज्ञान]] और [[प्रौद्योगिकी]] के संभावित परिवर्तनों को लेकर उपजी मानवीय प्रतिक्रिया को कथात्मक अभिव्यक्ति देती है।
 
मेरी शेली की 'द फ्रन्केनस्टआईन' [१८१८]पहली विज्ञान कथात्मक कृति मानी जाती है।
अमेरिका और ब्रिटेन में विगत सदी में बेह्तरीन विज्ञान कथाएं लिखी गयी है- आइजक आजीमोव, आर्थर सी क्लार्क, रोबर्ट हेनलीन प्रसिद्ध विज्ञान कथा लेखक रहे है।हैं। अब तीनों दिवंगत हैं।
 
== हिन्दी में विज्ञान कथा ==
हिंदी में ऐयारी और तिलस्मी [[उपन्यास|उपन्यासों]] के जनक [[देवकी नंदन खत्री]] जब [[चंद्रकांता]] (1892) के साथ हिंदी में प्रकट हुए तो प्रायः उसी काल में [[अंबिकादत्त व्यास|अंबिका दत्त व्यास]] विरचित आश्चर्य-वृत्तांत ने भी हिंदी में विज्ञान गल्प लेखन की नयी सरणि निर्मित की। ‘पीयूस प्रवाह’ पत्रिका में 1884-88 के मध्य धारावाहिक रूप से इसका प्रकाशन हो चुका था। ‘आश्चर्यवृत्तांत’ विशुद्ध रूप से विज्ञान गल्प था जो तिलस्मी और जासूसी प्रभावों से सर्वथा उन्मुक्त था।
 
उधर [[बांग्ला भाषा]] में "पंच कौड़ी दे" जब जासूसी साहित्य- ‘घटना-घटाटोप’ (1913), ‘जय-पराजय’ (1913), ‘जीवन रहस्य’ (1913), ‘नील वसना सुंदरी’ (1913), ‘मायावी’ (1913), ‘-के निर्माण में प्रवृत्त थे तो उसी काल में विज्ञान कथाएं भी लिखी जा रही थी, बल्कि कहना यह चाहिए कि बंगला में विज्ञान गल्प का उन्मेष इससे पूर्व हो चुका था। पौधों में जीवन के विश्लेषक और बेतार के आविष्कारक आचार्य [[जगदीश चंद्र बोस]] ने ‘तूफान पर विजय’ शीर्षक से प्रथम बांग्ला विज्ञान गल्प 1897 में ही लिखा था। अनादिधन बैनरजी (बंद्योपाध्याय) ने ‘वन कुसुम’ (1914), ‘चंपा फूल’ (1916), ‘चोर’ (1920) जैसे उपन्यासों के साथ साथ ‘मंगल ग्रह’ (1915) जैसा विज्ञान गल्प भी प्रस्तुत किया। [[मराठी]] मेमें श्रीधर बालकृष्ण रानाडे ने पहली विज्ञान कथा ‘तरेचे हास्य’ (तारे के रहस्य’) शीर्षक से 1915 में लिखी थी। प्रायः इसी समय नाथ माधव ने ‘श्रीनिवास राव’ नामक वैज्ञानिक उपन्यास मराठी में प्रस्तुत किया।
 
[[देवकी नंदन खत्री]] ने [[मिर्जापुर]] के [[अरण्य|अरण्यों]] की पृष्ठभूमि में जो ऐंद्रजालिक संसार रचा, उससे हिंदी पाठक विस्मित और विमूढ़ रह गया और उसने खत्री जी को हाथों हाथ लिया। खन्नी प्रणीत ‘नरेन्द्रमोहिनी’ (1993) ‘वीरेन्द्र वीर’ (1895), ‘[[चंद्रकांता संतति]]’ (1896), ‘कुसुम कुमारी’ (1899), ‘नौलखा हार’ (1899), ‘गुप्तगोदना’ (1902). ‘कागज की कोठरी’ (1902) ‘अनूठी बेगम’ (1905), ‘भूतनाथ’ (1909) ने लोकप्रियता की सारी हदें पार कर लीं। देवकी नंदन खत्री के इंद्रजाल का जादू पाठकों के सिर पर चढ़कर बोलने लगा। [[आचार्य रामचंद्र शुक्ल]] ने ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ में लिखा है कि खत्री के तिलस्मी साहित्य का आनंद लेने के लिए उर्दूभाषियों ने हिंदी सीखी। तो ऐसा था खत्री का ऐंद्रजालिक संसार !
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==प्रथम हिंदी-विज्ञान गल्प ?==
 
हिंदी की विज्ञान कथाओं के बारे में लिखते समय लोग प्रायः केशव प्रसाद सिंह की ‘[[चंद्रलोक की यात्रा]]’ (1900) का प्रथम विज्ञान गल्प के रूप में उल्लेख करते हैं। अभी तक ऐसा ही अभिमत है। कदाचित इसका कारण [[श्रीनारायण चतुर्वेदी|पं॰ श्रीनारायण चतुर्वेदी]] की वह टिप्पणी है जो उन्होंने [[सरस्वती पत्रिका|‘सरस्वती’ पत्रिका]] के 60 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में प्रकाशित ‘हीरक जयंती विशेषांक’ के कहानी खंड के आरंभ में दी थी। ‘सरस्वती’ के भाग 1, संख्या 6 (जून, 1900), में पहिली बार दो कहानियां एक साथ प्रकाशित हुई। [[किशोरी लाल गोस्वामी]] की ‘इंदुमती’ और केशव प्रसाद सिंह की ‘चद्रलोक की यात्रा’। चतुर्वेदी जी इन पर टिप्पणी करते हैं-दूसरी कहानी किसी अंग्रेजी कहानी के आधार पर लिखी हुई मालूम होती है। वह लंबी है और धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुई थी। ‘[[इंदुमती]]’ सरस्वती ही मेमें नहीं, हिंदी में आधुनिक शैली की प्रथम कहानी है।’
 
‘चंद्रलोक की यात्रा’ को तो उन्होंने आंग्ल-आधृत कहकर महत्वहीन कर दिया लेकिन ‘इंदुमती’ को पहिली हिन्दी कहानी घोषित किया। ‘इससे पहिले ‘हरिश्चंद्र चंद्रिका’ और ‘पीयूष प्रावह’ में एक-दो कहानियां छपी थीं। पं॰ [[अंबिका दत्त व्यास]] की ‘आश्चर्य-वृत्तांत’ नाम की और [[बालकृष्ण भट्ट|पं॰ बाल कृष्ण भट्ट]] की ‘नूतन ब्रह्यचारी’ नामक कहानियां संभवतः इसके पहिले की प्रकाशित हो चुकी थीं। किंतु ‘इंदुमती’ को ही हिन्दी की पहिली आधुनिक कहानी होने का श्रेय दिया जाता है।’
 
संभवतः कहकर उन्होंने अपनी बात समाप्त कर दी लेकिन यदि इसकी पड़ताल करने की चेष्टा ही गई होती तो यह विभ्रम समाप्त हो गया होता कि प्रथम हिंदी विज्ञान गल्प कौन-सा है ? यद्यपि हिंदी में यह विमर्श आज भी जारी है कि हिंदी की पहली आधुनिक कहानी कौन सी है।...‘इंदुमती’ ? इंशा अल्ला खां की 1803 में प्रकाशित ‘रानी केतकी की कहानी ? या फिर 1870 में प्रकाशित [[मेरठ]] में [[गौरीदत्त|पं॰ गौरी दत्त]] प्रणीत ‘देवरानी जेठानी की कहानी’ जो वस्तुतः एक लघु सामाजिक उपन्यास है। इस विमर्श मेमें प्रतिभाग करने का यहां न तो मुझे अवकाश है और न ही यह चर्चा प्रासंगिक ही है।
 
अंबिका दत्त व्यास ने स्व-संपादित [[पत्रिका]] ‘पीयूसी-प्रवाह’ में [[धारावाहिक]] रूप से ‘आश्चर्यवृत्तांत’ का प्रकाशन किया था (1884-1888) जिसका प्रथम मुद्रण व्यास यंत्रालय, [[भागलपुर]] से 1893 में हुआ था। यह हिंदी का प्रथम विज्ञान गल्प है।