"सूरसागर": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोतहीन|date=मई 2016}}
'''सूरसागर''', [[ब्रजभाषा]] में महाकवि [[सूरदास]] द्वारा रचे गए कीर्तनों-पदों का एक सुंदर संकलन है जो शब्दार्थ की दृष्टि से उपयुक्त और आदरणीय है। इसमें प्रथम नौ अध्याय संक्षिप्त है, पर दशम स्कन्ध का बहुत विस्तार हो गया है। इसमें भक्ति की प्रधानता है। इसके दो प्रसंग "कृष्ण की बाल-लीला' और "भ्रमर-गीतसार' अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
 
सूरसागर में लगभग एक लाख पद होने की बात कही जाती है। किन्तु वर्तमान संस्करणों में लगभग पाँच हजार पद ही मिलते हैं। विभिन्न स्थानों पर इसकी सौ से भी अधिक प्रतिलिपियाँ प्राप्त हुई हैं, जिनका प्रतिलिपि काल संवत् १६५८ वि० से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी तक है इनमें प्राचीनतम प्रतिलिपि [[नाथद्वारा]] ([[मेवाड़]]) के '''सरस्वती भण्डार''' में सुरक्षित पायी गई हैं। दार्शनिक विचारों की दृष्टि से "[[श्रीमद्भागवत पुराण|भागवत]]' और "सूरसागर' में पर्याप्त अन्तर है।