"वासवदत्ता": अवतरणों में अंतर
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'''वासवदत्ता''' एक [[संस्कृत]] [[नाटक]] है। वासवदत्ता नामक राजकुमारी इसकी प्रमुख पात्र है। इसके रचयिता [[सुबन्धु]] हैं।
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पाश्चात्य आलोचक [[डाक्टर ग्रे]] ने वासवदत्ता के बारे में कहा है :
:''विलोल-दीर्घ समासों में वस्तुतः रमणीयता है एवं अनुप्रासों में अपना स्वतः का ललित संगीत। श्लेषों में सुश्लिष्ट संक्षिप्तता है। यद्यपि श्लेषों के द्वारा दो या दो से अधिक दुरूह अर्थों को प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया गया है तथापि वे दोनों पक्षों में घटने वाले वास्तविक रत्न हैं। सुबन्धु द्वारा किये गये वर्णन अधिक प्रशंसनीय है परन्तु उनके आधिक्य से प्रयुक्त होने के कारण कभी-कभी उद्वेजक से प्रतीत होते हैं। सम्पूर्ण आख्यान का अधिकतम भाग ये वर्णन ही हैं और कथानक इनके नीचे लुप्त प्रायः हो जाते हैं। पर्वत, वन, नदियों अथवा नायिका आदि का भी वर्णन क्यों न हो उनके सर्वतोमुखी बाहुल्य के होने पर भी, सौन्दर्य एवं संगति का नितान्त अभाव है।''
==शून्यबिन्दु==
गणित के इतिहास की दृष्टि से यह नाटक इस कारण महत्वपूर्ण है कि इसमें सुबन्धु ने "शून्यबिन्दु" शब्द का प्रयोग किया है, जो दर्शाता है कि (उनके) पहले से ही शून्य को एक बिन्दु के रूप में दर्शाया जाता रहा होगा। शून्य के स्वरूप (आकार) के विषय में ऐसा उल्लेख सबसे पहली बार इसी ग्रन्थ में मिलता है।
==सन्दर्भ==
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