"स्वप्नवासवदत्ता": अवतरणों में अंतर

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'''स्वप्नवासवदत्ता''' (वासवदत्ता का स्वप्न), महाकवि [[भास]] का प्रसिद्ध [[संस्कृत]] [[नाटक]] है। इसमें छः अंक हैं। भास के नाटकों में यह सबसे उत्कृष्ट है। [[क्षेमेन्द्र]] के [[बृहत्कथामंजरी]] तथा [[सोमदेव]] के [[कथासरित्सागर]] पर आधारित यह नाटक समग्र संस्कृतवाङ्मय के दृश्यकाव्यों में आदर्श कृति माना जाता है।
 
भास विरचित [[रूपक|रूपकों]] में यह सर्वश्रेष्ठ है। वस्तुतः यह भास की नाट्यकला का चूडान्त निदर्शन है। यह छः अंकों का नाटक है। इसमें [[प्रतिज्ञायौगन्धारायण]] से आगे की कथा का वर्णन है। इस नाटक का नामकरण राजा उदयन के द्वारा इइस्वप्न में वासवदत्ता के दर्शन पर आधारित है। स्वप्न वाला दृश्य संस्कृत नाट्य साहित्य में अपना विषेष स्थान रखता है।
का वर्णन है। इस नाटक का नामकरण राजा उदयन के द्वारा स्वप्न में वासवदत्ता के दर्शन पर आधारित है। स्वप्न वाला दृश्य संस्कृत नाट्य साहित्य में अपना विषेष स्थान रखता है।
 
यह नाटक नाट्यकला की सर्वोत्तम परिणिति है। वस्तु, नेता एवं रस - तीनों ही दृष्टि से यह उत्तम कोटि का है। नाटकीय संविधान, कथोपकथन, चरित्र-चित्र्णचित्रण, प्रकृति वर्णन तथा रसों का सुन्दर सामन्जस्य इस नाटक में पूर्ण परिपाक को प्राप्त हुये हैं। मानव हृदय की सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावदशाओं का चित्रण इस नाटक में सर्वत्र देखा जा सकता है। नाटक का प्रधान रस [[शृंगार रस|श्रृंगार]] है तथा [[हास्य रस|हास्य]] की भी सुन्दर उद्भावना हुई है।
रसों का सुन्दर सामन्जस्य इस नाटक में पूर्ण परिपाक को प्राप्त हुये हैं। मानव हृदय की सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावदशाओं का चित्र्ण इस नाटक में सर्वत्र देखा जा सकता है। नाटक का प्रधान
रस [[शृंगार रस|श्रृंगार]] है तथा [[हास्य रस|हास्य]] की भी सुन्दर उद्भावना हुई है।
 
== कथानक ==
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इधर उदयन के मन्त्री यौगन्धरायण उन्हें कैद से छुड़ाने के प्रयास में थे। यौगन्धरायण के चातुर्य से उदयन, वासवदत्ता को साथ ले कर, उज्जयिनी से निकल भागने में सफल हो गये और कौशाम्बी आकर उन्होंने वासवदत्ता से विवाह कर लिया। उदयन वासवदत्ता के प्रेम में इतने खोये रहने लगे कि उन्हें राज-कार्य की सुधि ही नहीं रही। इस स्थिति का लाभ उठा कर आरुणि नामक उनके क्रूर शत्रु ने उनके राज्य को उनसे छीन लिया। आरुणि से उदयन के राज्य को वापस लेने के लिये उनके मन्त्री यौगन्धरायण और रुम्णवान् प्रयत्नशील हो गये। किन्तु बिना किसी अन्य राज्य की सहायता के आरुणि को परास्त नहीं किया जा सकता था। वासवदत्ता के पिता प्रद्योत उदयन से नाराज थे और यौगन्धरायण को उनसे किसी प्रकार की उम्मीद नहीं थी।
 
यौगन्धरायनयौगन्धरायण को ज्योतिषियों के द्वारा पता चलता है कि मगध-नरेश की बहन पद्मावती का विवाह जिन नरेश से होगा वे चक्रवर्ती सम्राट हो जायेंगे। यौगन्धरायण ने सोचा कि यदि किसी प्रकार से पद्मावती का विवाह उदयन से हो जाये तो उदयन को अवश्य ही उनका वत्स राज्य आरुणि से वापस मिल जायेगा साथ ही वे चक्रवर्ती सम्राट भी बन जायेंगे।
 
यौगन्धरायन महाराज उदयन के विवाह पद्मावती से करवा देने की अपनी योजना के विषय में वासवदत्ता को बताया। पति की मंगलकामना चाहने वाली वासवदत्ता इस विवाह के लिये राजी हो गईं। किन्तु यौगन्धरायण भलीभाँति जानते थे कि उदयन अपनी पत्नी वासवदत्ता से असीम प्रेम करते हैं और वे अपने दूसरे विवाह के लिये कदापि राजी नहीं होंगे। अतएव उन्होंने वासवदत्ता और एक अन्य मन्त्री रुम्णवान् के साथ मिलकर एक योजना बनाई। योजना के अनुसार उदयन को राजपरिवार तथा विश्वासपात्र सहयोगियों के साथ लेकर आखेट के लिये वन में भेजा गया जहाँ वे सभी लोग शिविर में रहने लगे। एक दिन, जब उदयन मृगया के लिये गए हुए थे, शिविर में आग लगा दी गई। उदयन के वापस लौटने पर रुम्णवान ने उन्हें बताया कि वासवदत्ता शिविर में लगी आग में फँस गईं थीं और उन्हें बचाने के लिये यौगन्धरायण वहाँ घुसे जहाँ पर दोनों ही जल मरे। उदयन इस समाचार से अत्यन्त दुःखी हुए किन्तु रुम्णवान तथा अन्य अमात्यों ने अनेकों प्रकार से सांत्वना देकर उन्हें सम्भाला।