"चमड़ा उद्योग": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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खाल में दो प्रकार की सुस्पष्ट परतें होती हैं, जिनकी उत्पत्ति तथा विन्यास भिन्न होता है :
*1. एपिथीलिअल (epithelial) कोशिकाओं की बनी पतली ऊपरी तह, '''[[एपिडर्मिस]]''' (इसके छोटे छोटे अवनयनों में बालगर्त ओर बाल स्थित रहते हैं);
*2. इसके नीचेवाली सापेक्षत: अत्यधिक मोटी तह, '''[[डर्मिस]]''' (dermis) या कोरियम (corium)।
चमड़ा वास्तव में इसी तह का बनता है। चमड़ा बनाने में बाल और एपिडर्मिस को पूर्णत: अलग करके कोरियम के नीचे लगे वसा ऊतक और मांस को छीलकर कोरियम का शोधन करते हैं, जिसमें वह पूयनरोधी हो जाय। सूखे कोरियम में कम से कम 85 प्रतिश्त कोलेजन नामक तंतु-प्रोटीन होता है। इसी का वास्तविक चमड़ा बनता है। बाकी 15 प्रतिशत भाग में जलसंयोजक ऊतक, वसा, कार्बोहाइड्रेट, खनिज, बैक्टीरिया, एंजाइम इत्यादि सम्मिलित रहते हैं। कोलेजन अपनी प्राकृतिक अनुपचारित दशा में जलशोषण के पश्चात् जिलेटिन में परिणत हो जाता है। अत: चर्मशोधन द्वारा इसे जलप्रतिरोधी बनाते हैं। कोरियम श्वेत तंतु-निर्मित रचना है, जिसे बिना क्षति पहुँचाए अलग करने में ही शोधनपूर्व प्रारंभिक कार्यों की सफलता है। भिन्न-भिन्न खालों के कोरियम में संयोजक ऊतक तथा वसीय पदार्थों की मात्रा न्यूनाधिक हाती है। चर्मशोधक की दृष्टि से खालों में संयोजक ऊतक का होना महत्वपूर्ण है। इसके रेशे कोलेजन से भीतर के भाग इलास्टिन (elastin) नामक पीले रंग के प्रोटीन के बने होते हैं। चमड़े के तनाव तथा प्रत्यास्थता, दोनों पर इलास्टिन की मात्रा का प्रभाव पड़ता है। खाल में वसाकोशिकाओं का भी अपना पृथक् महत्व है। उदाहणार्थ, किसी खाल में यदि इनके बड़े बड़े समूह कोलेजन तंतुओं में विकीर्ण हैं, तो निश्चय ही उसका चमड़ा कोमल और स्पंजी बनेगा; कारण यह है कि चर्म-शोधन-पूर्व के प्रारंभिक कार्यों में वसाकोशिकाओं के हट जाने से छोटे छोटे असंख्य रिक्त स्थान बनेंगे, जिनसे चमड़े में लचक आ जायगी।
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