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[[चित्र:A boat in India.JPG|right|thumb|300px|गंगा नदी में लोगों से भरी एक नौका]]
[[चित्र:Doni aux Maldives cropped.jpg|right|thumb|300px|मालदीव में एक नाव]]
'''नाव''' या '''नौका''' (boat) डाँड़, क्षेपणी, चप्पू, पतवार या पाल से चलनेवाला छोटाछोटी जलयान है। आजकल नावें इंजन से भी चलने लगी हैं और इतनी बड़ी भी बनने लगी हैं कि [[जलयान|पोत]] (जहाज) और नौका (नाव) के बीच भेद करना कठिन हो जाता है। वास्तव में पोत और नौका दोनों समानार्थक शब्द हैं, किंतु प्राय: नौका शब्द छोटे के और पोत बड़े के अर्थ में प्रयुक्त होता है।
 
== प्रांरभिक इतिहास ==
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चमड़े या बाँस की बनी हुई पनसुइया से शायद लोगों का लकड़ी के ढाँचे पर कोई आवरण चढ़ाकर नाव बनाने का विचार उत्पन्न हुआ। उनके सामने निर्माण की दो विधियाँ आई : (1) पहले बाहरी आवरण बनाकर उसके भीतर कड़ियाँ और ताने लगाकर मजबूत करना और (2) पहले ढाँचा बनाकर उसके बाहर आवरण लगाना। रचना भी दो प्रकार की होने लगी - एक तो सपाट तख्ताबंदीवाली, जिससे तख्ते धार से धार मिलाकर एक दूसरे से जोड़े जाते हैं और दूसरी चढ़वा तख्ताबंदी वाली, जिसमें ऊपर का प्रत्येक तख्ता अपने नीचेवाले तख्ते के ऊपर थोड़ा चढ़ाकर लगाया जाता है, जिससे सतह पर धारियाँ, या लंबी लकीरें, दिखाई देती हैं। सपाट रचना का उद्भव भूमध्यसागर में, या शायद पूर्व की ओर, हुआ और चढ़वाँ रचना का आविष्कार कैडिनेविया में हुआ, जहाँ से वह यूरोप के उत्तरी देशों में फैला।
 
== वर्तमान मे नावें ==
प्राचीन नौनिर्माण विधियों के उत्कृष्ट नमूने और नौकानयन कला पूर्वी समुद्रों में, भारतीय महासागर और दक्षिणी प्रशांत महासागर में देखने को मिलती हैं, जहाँ नावें शायद सर्वप्रथम आई। नक्र नौका (ड्रैगन बोट) 73 फुट तक लंबी, 4 फुट तक चौड़ी और 21 इंच गहरी होती है। इसके चप्पे का फल 6।। इंच चौड़ा, फावड़े के आकार का होता है। स्याम और वर्मा दोनों देशों में नदीतटों पर बहुत घनी आबादी है। यहाँ की हंसक नौका (डक बोट) प्रसिद्ध है। पतवारी लटकाकर पोतवाहन की स्यामी विधि सबसे अधिक प्राचीन है। मलायावाले नौका-निर्माण-कला में दक्ष होते हैं, किंतु वहाँ की स्थानीय परिस्थितियँ अनुकूल नहीं हैं। वहाँ की नावों का विस्थापन बहुत थोड़ा होता है, काट ज् आकार की और चौड़ाई बहुत कम होती हैं। फलस्वरूप, इनमें स्थैर्य और वायु के प्रतिकूल चलने की क्षमता कम होती है। नाव बनाने की पुरानी विधि के अनुसार तना कोलकर यहाँ उसकी बगलें बाहर की ओर फैला दी जाती हैं और आवश्यकतानुसार उनमें और तख्ते लगाकर ऊँचाई बढ़ा दी जाती है।
 
भारतीय नावों में मद्रास की तरंगनौका (सर्फ बोट) बनावट की दृष्टि स अपने उद्देश्य के लिए उत्कृष्ट है। हुगली नदी की डिंघी नावें मिस्त्र के प्राचीन नमूनों से मिलती जुलती हैं। जैसे जैसे पश्चिम की ओर जाते हैं, अरब की बगला (ढौ) नाव की तरह की नावें मिलती हैं। इनमें ऐसी विशेषताएँ होती हैं जिनका विकास बड़े बड़े जहाज बनाने में किया गया है : जैसे अधिक चौड़ाई, आगे निकला हुआ माथा और चौड़ा पिच्छल। इनमें ढाँचे के ऊपर दोहरी तख्ताबंदी का आवरण रहता है, जिससे ये सूखी रहती और टिकाऊ भी होती हैं। बिना पुलवाली नदियों पर, महत्वपूर्ण सड़कों का यातायात निपटाने के लिए, नावें ही काम आती हैं। बड़ बड़ी नावों पर एक मोटर गाड़ी या दो बैलगाड़ियाँ लादी जा सकती हैं। इनमें ढलवाँ लोहे के खंभों और साँकल की रेलिंग लगी होती है, जो आवश्यकतानुसार उखाड़ी या लगाई जा सकती है।
 
भूमध्यसगरभूमध्यसागर की नावों की विशेषता है गोल माथा और यान के बाहर पिच्छल पर लटकी हुई गहरी पतवारी। यूनानी और इतालवी सागरों में बड़ी सुंदर बनावट और अत्यधिक वहनक्षमतावाली असंख्य प्रकार की नावें रहती है, किंतु मिस्त्र के प्राचीन नमूने की नावें अब कहीं नहीं दिखाई पड़तीं। नील नदी में नगर नामक बहुत बड़ी, चम्मच के आकार की, चौड़े पिच्छलवाली, अनगढ़ नावें चलती हैं। ये 60 फुट तक लंबी होती है और 45 टन तक बोझ ले जाती है। आगे चलकर, जहाँ नदीतट बहुत ऊँचे है, बड़े बड़े उथले बजरे चलते हैं, जिन्हें गयासा कहते हैं। इनमें बहुत ऊँचे दो दो मस्तूल होते हैं, ताकि उनपर लगे पाल तट के ऊपर से आनेवाली हवा पकड़ सकें।
 
यद्यपि सन् 1855 में लैंबोट नामक एक फ्रांसीसी ने प्रबलित कंक्रीट की छोटी नाव भी पेटेंट करा ली थी, तथापि नौका निर्माण के लिए लकड़ी का ही प्रयोग आदि काल से होता आया है और इसका स्थान व्यापक रूप से कोई अन्य पदार्थ नहीं ले सका। पीपों में, जो तैरते हुए पुल आदि बनाने के काम आते हैं, इस्पात लगता है। आजकल नावों, जहाजों आदि में विरमाव्राइट की चादरें बहुत लगने लगी हैं। विरमाब्राइट ऐल्यमिनियम की मिश्रधातु है, जो अत्यंत हलकी, किंतु मजबूत, होती है और खानेखारे पानी से भी प्रभावित नहीं होती।
 
== आधुनिक प्रवृत्ति ==
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[[ग्रेट ब्रिटेन]] में 19वीं शती में नौ-निर्माण-उद्योग में बड़ी उन्नति हुई। मछली उद्योग के विस्तार और प्रतिस्पर्धा के कारण इस उद्योग में बराबर सुधार होते रहे। जैसे जैसे नाप बढ़ती गई, भाप का प्रयोग भी बढ़ता गया। अमरीकी नार्वे निपटे पेंदेवाली, चौड़े सिरेवाली, आधी पाटनवाली, खुली खेनेवाली या पालवाली, एक मस्तूलवाली आदि अनेक प्रकार की होती हैं।
 
== रक्षा नार्वेनौकाएं ==
[[चित्र:Norwegian Navy Patrol boat Storm (detail).jpg|पाठ=स्टॉर्म् - नॉर्वेजियन नेवी की निगरानी नौका का चित्र।|अंगूठाकार|225x225पिक्सेल|
प्राचीन काल में भी जहाजों के साथ नार्वे रहा करती थीं। वे या तो उनपर लदी रहती थीं, या उनसे बँधी रहती थीं। यूनानी और रोमन युद्धपोतों के साथ भी रहती थीं, किंतु वे शताब्दियों तक रक्षाकार्य संपादन में अक्षम थीं। इंग्लैंड़ में 19वीं शती में एक कानून बनाकर जहाज में नावों का प्रतिमान निर्धारित कर दिया गया, किंतु यह प्रतिमान जहाज के टन भार के आधार पर था, यात्रियों की संख्या कें आधार पर नहीं। सन् 1912 की भीषण पोतदुर्घटना के फलस्वरूप नया प्रतिमान निर्धारित हुआ, जिसके अनुसार यात्रीपोतों में सब यात्रियों के लिए और भारवाही पोतों में दोनों ओर के समस्त कर्मीदल के लिए पर्याप्त नावों की व्यवस्था होती है।
स्टॉर्म् - नॉर्वेजियन नेवी की निगरानी नौका।
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प्राचीन काल में भी जहाजों के साथ नार्वेनावें रहा करती थीं। वे या तो उनपरउन जहाजों पर लदी रहती थीं, या उनसे बँधी रहती थीं। यूनानी और रोमन युद्धपोतों के साथ भी नौकाएं रहती थीं, किंतु वे कई शताब्दियों तक रक्षाकार्य संपादन में अक्षम थीं। इंग्लैंड़ में 19वीं शती में एक कानून बनाकर जहाज में नावों का प्रतिमान निर्धारित कर दिया गया, किंतु यह प्रतिमान जहाज के टन भार के आधार पर था, यात्रियों की संख्या कें आधार पर नहीं। सन् 1912 की भीषण पोतदुर्घटना के फलस्वरूप नया प्रतिमान निर्धारित हुआ, जिसके अनुसार यात्रीपोतों में सब यात्रियों के लिए और भारवाही पोतों में दोनों ओर के समस्त कर्मीदल के लिए पर्याप्त नावों की व्यवस्था होती है।
 
इंग्लैंड के पूर्वीतट की रक्षानौकाएँ उत्कृष्ट कोटि की, सुंदर, लंबी और कम विस्थापनवाली नार्वे हैं, जो खराब मौसम में और चंड सागर में साहसपूर्ण काम के लिए प्रसिद्ध हैं।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/नाव" से प्राप्त