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हितोपदेश के रचयिता [[नारायण पण्डित]] हैं। पुस्तक के अंतिम पद्यों के आधार पर इसके रचयिता का नाम "नारायण" ज्ञात होता है।
 
:''' नारायणेन प्रचरतु रचितः संग्रहोsयंसंग्रहोऽयं कथानाम्'''
 
पण्डित नारायण ने [[पंचतन्त्र]] तथा अन्य नीति के ग्रंथों की मदद से हितोपदेश नामक इस ग्रंथ का सृजन किया। स्वयं पं. नारायण जी ने स्वीकार किया है--
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:''' पंचतन्त्रान्तथाडन्यस्माद् ग्रंथादाकृष्य लिख्यते।'''
 
इसके आश्रयदाता का नाम धवलचंद्रजी[[धवलचंद्र]] है। धवलचंद्रजी [[बंगाल]] के माण्डलिक राजा थे तथा नारायण पण्डित राजा धवलचंद्रजी के राजकवि थे। मंगलाचरण तथा समाप्ति श्लोक से नारायण की शिव में विशेष आस्था प्रकट होती है।
 
== रचना काल ==
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कथाओं से प्राप्त साक्ष्यों के विश्लेषण के आधार पर डा. फ्लीट कर मानना है कि इसकी रचना काल ११ वीं शताब्दी के आस-पास होना चाहिये। हितोपदेश का नेपाली हस्तलेख १३७३ ई. का प्राप्त है। [[वाचस्पति गैरोला]] जी ने इसका रचनाकाल १४ वीं शती के आसपास माना है।
 
हितोपदेश की कथाओं में अर्बुदाचल (आबू), [[पाटलिपुत्र]], [[उज्जयिनी]], [[मालवा]], [[हस्तिनापुर]], [[कान्यकुब्ज]] (कन्नौज), [[वाराणसी]], मगधदेश[[मगध]]देश, कलिंगदेश[[कलिंग]]देश आदि स्थानों का उल्लेख है, जिसमें रचयिता तथा रचना की उद्गमभूमि इन्हीं स्थानों से प्रभावित है।
 
== हितोपदेश के चार भाग ==