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अनेक प्राचीन पुरातात्विक स्मारकों का खोगोलीय महत्व है। लगभग 5,000 वर्ष पूर्व निर्मित [[मिस्र के पिरामिड]] निश्चित तारों के निर्देश में अनुस्थापित हैं। [[इंग्लैंड]] में स्टोनहेंज में 1800 ई.पू. निर्मित प्रस्तरस्तंभ सूर्य की दिशा के निर्देश में अनुस्थापित है। चीनी सम्राट् होंग-टी (Hoang-Ti) ने 4,500 वर्ष पूर्व खगोलीय पिंडों की गति के अध्ययनार्थ वेधशाला का निर्माण कराया था। ग्रीक ज्योतिबिंद, हिपार्कस (Hipparchus), ने 150 ई.पू. अंशांकित विशाल वृत्तों के प्रयोग से आकाशीय पिंडों की स्थिति के अध्ययन के लिए रोडस (Rhodes) द्वीप पर आर्मिली (Armillae), प्लिंथ (Plinth), डायोप्टर (Diopter) आदि अनेक साधन निर्मित किए।
 
नवीं शती में [[बगदाद]] में खलीफा-अल-मामूँ और 13 वीं शती में [[ईरान]] के मरागा में [[चंगेज खाँ]] के पौत्र हलागू खाँ ने विशाल वेधशालाओं का निर्माण कराया। [[समरकंद]] के अलूग वेग ने 1420 ई. के लगभग विशाल दीवार, क्वाद्रांत, वाली वेधशाला बनवाई। [[जर्मनी]] में कैसेल (Kassel) में 1561 ई. में घूर्णमान छत और समयांकन घड़ी युक्त वेधशाला पहली बार स्थापित हुई। कुछ समय बाद की वेधशालाओं में [[डेनमार्क]] के नरेश, फ्रेडरिक द्वितीय, के संरक्षण में स्थापित कोपेनहेगेन से लगभग 14 मील दूर ह्वीन (Hveen) द्वीप पर टाइको-ब्राहे (Tycho Brahe) की वेधशाला उल्लेखनीय है इसके निर्माण का आरंभ 1576 ई. में हुआ और इसका नाम उरानीबोर्ग (आकाश दुर्ग) रखा गया। टाइको और उसके शिष्यों ने 21 वर्षों तक खगोलीय पिंडों के निर्देशांक ([[उन्नतांश]], [[दिगंश]], [[विषुवदंश]] और [[क्रांति]]) संबंधी व्यापक प्रयोग किए। आकाश दुर्ग में सेंट जर्नबॉर्ग (St. Jernesborg, तारा दुर्ग), नामक दूसरी संरचना जोड़ी गई। इन वेधशालाओं में दूरदर्शी नहीं थे, किंतु विषुवतीय आरोपण (equatorial mounting) का महत्व समझा जा रहा था। उपकरण धातु और लकड़ी के होते थे। 1609 ई. में गैलीलियो ने आधुनिक ज्योतिष के मौलिक उपकरण, दूरदर्शक, का आविष्कार किया। लाइडेन में 1632 ई. में प्रकाशीय उपकरणों से युक्त सर्वप्रथम वेधशाला बनी। 1667-1671 ई. में पैरिस में नैशनल ऑब्ज़र्वेटरी बनी और 1675 ई. में ग्रीनिच में रॉयल आब्ज़रवेटरी स्थापित हुई, जिसका प्रथम राजज्योतिर्विद् फ्लैमस्टीड (Flamsteed) था। हेवीलियस (Hevilius) नामक ज्योतिर्विद् ने 1614 ई. में एक निजी वेधशाला बनवाई। हेवीलियस ने भिन्न तरंगदैर्ध्यतरंगदैर्घ्य की किरणों को एक समतल में फ़ोकस करने के लिए 100 फुट फ़ोकस दूरी के लेंस से युक्त शक्तिशाली दूरदर्शक बनवाया।
 
आधुनिक वेधशालाओं के संबंध में कुछ कहने के पूर्व [[जयपुर]] के महाराज [[जयसिंह द्वितीय]] द्वारा निर्मित वेधशालाओं का उल्लेख आवश्यक है। ये वेधशालाएँ [[दिल्ली]], [[जयपुर]], [[वाराणसी]] और [[मथुरा]] में हैं। दिल्ली की वेधशाला 1710 ई. में बनी और इसके पाठ्यांकों की जाँच के लिए बाद में दूसरे स्थानों पर वेधशालाओं का निर्माण हुआ। इन वेशालाओं में उन्नतांश, दिगंश, विषुवदंश्, क्रांति, घटी-कोण, आदि मापने के ज्योतिष उपकरण पत्थर, चूने आदि से बने हैं। दिल्ली की वेधशाला के उपकरण समर्थयंत्र, रामयंत्र, जयप्रकाशयंत्र और मिश्रयंत्र हैं। नियत यंत्रचक्र से, जो मिश्रयंत्र का एक भाग है, चाँद का समय निकाला जा सकता है। ऐसी चार और वेधशालाएँ जापान के नॉट्के (Notke), प्रशांत के सरित्चेन (Saritchen), ज्यूरिख और ग्रीनिच में हैं।