"विभक्ति": अवतरणों में अंतर

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'''विभक्ति''' का शाब्दिक अर्थ है - ' विभक्त होने की क्रिया या भाव' या 'विभाग' या 'बाँट' ।
= समास =
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[[व्याकरण]] में शब्द ([[संज्ञा]], [[सर्वनाम]] तथा [[विशेषण]]) के आगे लगा हुआ वह [[प्रत्यय]] या चिह्न '''विभक्ति''' कहलाता है जिससे पता लगता है कि उस शब्द का क्रियापद से क्या संबंध है।
'''समास''' का तात्पर्य है ‘संक्षिप्तीकरण’। दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहते हैं। जैसे - ‘रसोई के लिए घर’ इसे हम ‘रसोईघर’ भी कह सकते हैं। [[संस्कृत]] एवं अन्य भारतीय भाषाओं में समास का बहुतायत में प्रयोग होता है। [[जर्मन]] आदि भाषाओं में भी समास का बहुत अधिक प्रयोग होता है।
 
[[संस्कृत व्याकरण]] के अनुसार नाम या संज्ञाशब्दों के बाद लगनेवाले वे [[प्रत्यय]] 'विभक्ति' कहलाते हैं जो नाम या संज्ञा शब्दों को पद (वाक्य प्रयोगार्थ) बनाते हैं और कारक परिणति के द्वारा क्रिया के साथ संबंध सूचित करते हैं। प्रथमा, द्वितीया, तृतीया आदि विभक्तियाँ हैं जिनमें [[एकवचन]], [[द्विवचन]], [[बहुवचन]]—तीन बचन होते है। [[पाणिनीय व्याकरण]] में इन्हें 'सुप' आदि २७ विभक्ति के रूप में गिनाया गया है। संस्कृत व्याकरण में जिसे 'विभक्ति' कहते है, वह वास्तव में शब्द का रूपांतरित अंग होता है। जैसे,—रामेण, रामाय इत्यादि।
== अनुक्रम ==
  [[null छुपाएँ]] 
* [[समास#.E0.A4.AA.E0.A4.B0.E0.A4.BF.E0.A4.AD.E0.A4.BE.E0.A4.B7.E0.A4.BE.E0.A4.8F.E0.A4.81|1परिभाषाएँ]]
* [[समास#.E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8 .E0.A4.95.E0.A5.87 .E0.A4.AD.E0.A5.87.E0.A4.A6|2समास के भेद]]
* [[समास#.E0.A4.85.E0.A4.B5.E0.A5.8D.E0.A4.AF.E0.A4.AF.E0.A5.80.E0.A4.AD.E0.A4.BE.E0.A4.B5 .E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8|3अव्ययीभाव समास]]
* [[समास#.E0.A4.A4.E0.A4.A4.E0.A5.8D.E0.A4.AA.E0.A5.81.E0.A4.B0.E0.A5.81.E0.A4.B7 .E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8|4तत्पुरुष समास]]
** [[समास#.E0.A4.A4.E0.A4.A4.E0.A5.8D.E0.A4.AA.E0.A5.81.E0.A4.B0.E0.A5.81.E0.A4.B7 .E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8 .E0.A4.95.E0.A5.87 .E0.A4.AA.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A4.95.E0.A4.BE.E0.A4.B0|4.1तत्पुरुष समास के प्रकार]]
* [[समास#.E0.A4.A6.E0.A5.8D.E0.A4.B5.E0.A4.A8.E0.A5.8D.E0.A4.A6.E0.A5.8D.E0.A4.B5 .E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8|5द्वन्द्व समास]]
* [[समास#.E0.A4.AC.E0.A4.B9.E0.A5.81.E0.A4.B5.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A5.80.E0.A4.B9.E0.A4.BF .E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8|6बहुव्रीहि समास]]
** [[समास#.E0.A4.95.E0.A4.B0.E0.A5.8D.E0.A4.AE.E0.A4.A7.E0.A4.BE.E0.A4.B0.E0.A4.AF .E0.A4.94.E0.A4.B0 .E0.A4.AC.E0.A4.B9.E0.A5.81.E0.A4.B5.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A5.80.E0.A4.B9.E0.A4.BF .E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8 .E0.A4.AE.E0.A5.87.E0.A4.82 .E0.A4.85.E0.A4.82.E0.A4.A4.E0.A4.B0|6.1कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर]]
* [[समास#.E0.A4.B8.E0.A4.82.E0.A4.A7.E0.A4.BF .E0.A4.94.E0.A4.B0 .E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8 .E0.A4.AE.E0.A5.87.E0.A4.82 .E0.A4.85.E0.A4.82.E0.A4.A4.E0.A4.B0|7संधि और समास में अंतर]]
* [[समास#.E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8-.E0.A4.B5.E0.A5.8D.E0.A4.AF.E0.A4.BE.E0.A4.B8 .E0.A4.B8.E0.A5.87 .E0.A4.B5.E0.A4.BF.E0.A4.B7.E0.A4.AF .E0.A4.95.E0.A4.BE .E0.A4.AA.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A4.A4.E0.A4.BF.E0.A4.AA.E0.A4.BE.E0.A4.A6.E0.A4.A8|8समास-व्यास से विषय का प्रतिपादन]]
* [[समास#.E0.A4.87.E0.A4.A8.E0.A5.8D.E0.A4.B9.E0.A5.87.E0.A4.82 .E0.A4.AD.E0.A5.80 .E0.A4.A6.E0.A5.87.E0.A4.96.E0.A5.87.E0.A4.82|9इन्हें भी देखें]]
* [[समास#.E0.A4.AC.E0.A4.BE.E0.A4.B9.E0.A4.B0.E0.A5.80 .E0.A4.95.E0.A4.A1.E0.A4.BC.E0.A4.BF.E0.A4.AF.E0.A4.BE.E0.A4.81|10बाहरी कड़ियाँ]]
 
आजकल की प्रचलित [[हिन्दी]] की [[खड़ी बोली]] में इस प्रकार की (संस्कृत की तरह की) विभक्तियाँ प्रायः नहीं हैं, केवल कर्म और सप्रदान कारक के सर्वनामों में विकल्प से आती हैं। जैसे,—मुझे, तुझे, इन्हें इत्यादि। संस्कृत में विभक्तियों के रूप शब्द के अंत्य अक्षर के अनुसार भिन्न भिन्न होते हैं। पर यह भेद खड़ीबोली के कारकों में नहीं पाया जाता, जिसमें शुद्ध विभक्तियों का ब्यवहार नहीं होता, कारकचिह्नों का व्यवहार होता है, जैसे 'ने', 'में', 'से', 'द्वारा', 'का' आदि।
== परिभाषाएँ[संपादित करें] ==
; सामासिक शब्द
समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहते हैं। समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न (परसर्ग) लुप्त हो जाते हैं। जैसे-राजपुत्र।
; समास-विग्रह
सामासिक शब्दों के बीच के संबंध को स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है। जैसे-राजपुत्र-राजा का पुत्र।
; पूर्वपद और उत्तरपद
समास में दो पद (शब्द) होते हैं। पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं। जैसे-गंगाजल। इसमें गंगा पूर्वपद और जल उत्तरपद है।
 
[[संस्कृत]] में समासों का बहुत प्रयोग होता है। अन्य भारतीय भाषाओं में भी समास उपयोग होता है। समास के बारे में संस्कृत में एक सूक्ति प्रसिद्ध है:
: '''वन्द्वो द्विगुरपि चाहं मद्गेहे नित्यमव्ययीभावः।'''
: '''तत् पुरुष कर्म धारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः॥'''
 
नीचे दिया गया श्लोक [[रामरक्षास्त्रोत्र]] में आया है और इसे विभक्ति समझाने के लिये उपयोग किया जाता है। इसमें 'राम' शब्द के आठ रूप आये हैं जो क्रमशः आठों विभक्तियों के एकवचन के रूप हैं।
== समास के भेद[संपादित करें] ==
:'''रामो''' राजमणिः सदा विजयते '''रामं''' रमेशं भजे।
समास के छः भेद होते हैं:
:'''रामेण''' अभिहता निशाचरचमू '''रामाय''' तस्मै नमः।
* अव्ययीभाव
:'''रामात्''' नास्ति परायणं परतरं '''रामस्य''' दासोस्म्यहम्।
* तत्पुरुष
:'''रामे''' चित्तलयः सदा भवतु मे '''भो राम !''' मामुद्धर।।
* द्विगु
* द्वन्द्व
* बहुव्रीहि
* कर्मधारय
 
== इन्हें भी देखें ==
== अव्ययीभाव समास[संपादित करें] ==
* [[कारक]]
जिस समास का पहला पद(पूर्व पद) प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे - यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु कर) न् इनमें यथा और आ अव्यय हैं।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
कुछ अन्य उदाहरण -
* [http://www.hi.is/~eirikur/cases.pdf The Status of Morphological Case in the Icelandic Lexicon] by Eiríkur Rögnvaldsson. Discussion of whether cases convey any inherent syntactic or semantic meaning.
* आजीवन - जीवन-भर
* [http://web.phil-fak.uni-duesseldorf.de/~wdl/OptCase.pdf Optimal Case: The Distribution of Case in German and Icelandic] by Dieter Wunderlich
* यथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसार
* <small>Lexicon of Linguistics:</small> [http://www2.let.uu.nl/UiL-OTS/Lexicon/zoek.pl?lemma=Declension Declension]
* यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार
* <small>Lexicon of Linguistics:</small> [http://www2.let.uu.nl/UiL-OTS/Lexicon/zoek.pl?lemma=Base Base], [http://www2.let.uu.nl/UiL-OTS/Lexicon/zoek.pl?lemma=Stem Stem], [http://www2.let.uu.nl/UiL-OTS/Lexicon/zoek.pl?lemma=Root Root]
* यथाविधि- विधि के अनुसार
* <small>Lexicon of Linguistics:</small> [http://www2.let.uu.nl/UiL-OTS/Lexicon/zoek.pl?lemma=Defective+paradigm Defective Paradigm]
* यथाक्रम - क्रम के अनुसार
* <small>Lexicon of Linguistics:</small> [http://www2.let.uu.nl/UiL-OTS/Lexicon/zoek.pl?lemma=Strong+verb Strong Verb]
* भरपेट- पेट भरकर
* <small>Lexicon of Linguistics:</small> [http://www2.let.uu.nl/UiL-OTS/Lexicon/zoek.pl?lemma=IP Inflection Phrase (IP)], [http://www2.let.uu.nl/UiL-OTS/Lexicon/zoek.pl?lemma=INFL INFL], [http://www2.let.uu.nl/UiL-OTS/Lexicon/zoek.pl?lemma=AGR AGR], [http://www2.let.uu.nl/UiL-OTS/Lexicon/zoek.pl?lemma=tense Tense]
* हररोज़ - रोज़-रोज़
* <small>Lexicon of Linguistics:</small> [http://www2.let.uu.nl/UiL-OTS/Lexicon/zoek.pl?lemma=Lexicalist+Hypothesis Lexicalist Hypothesis]
* हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में
* [http://mysite.du.edu/~etuttle/classics/nugreek/app1.htm classical Greek declension]
* रातोंरात - रात ही रात में
<!-- interwiki -->
* प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
* बेशक - शक के बिना
* निडर - डर के बिना
* निस्संदेह - संदेह के बिना
* प्रतिवर्ष - हर वर्ष
'''अव्ययीभाव समास की पहचान''' - इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है अर्थात समास लगाने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है। इसके साथ विभक्ति चिह्न भी नहीं लगता। जैसे - ऊपर के समस्त शब्द है।परक
 
== तत्पुरुष समास[संपादित करें] ==
'''तत्पुरुष समास''' - जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - तुलसीदासकृत = तुलसी द्वारा कृत (रचित)
 
'''ज्ञातव्य'''- विग्रह में जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला वह समास होता है।
 
विभक्तियों के नाम के अनुसार तत्पुरुष समास के छह भेद हैं-
# कर्म तत्पुरुष (गिरहकट - गिरह को काटने वाला)
# करण तत्पुरुष (मनचाहा - मन से चाहा)
# संप्रदान तत्पुरुष (रसोईघर - रसोई के लिए घर)
# अपादान तत्पुरुष (देशनिकाला - देश से निकाला)
# संबंध तत्पुरुष (गंगाजल - गंगा का जल)
# अधिकरण तत्पुरुष (नगरवास - नगर में वास)
 
=== तत्पुरुष समास के प्रकार[संपादित करें] ===
; नञ तत्पुरुष समास
जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे -
{| class="wikitable"
!समस्त पद
!समास-विग्रह
!समस्त पद
!समास-विग्रह
|-
|असभ्य
|न सभ्य
|अनंत
|न अंत
|-
|अनादि
|न आदि
|असंभव
|न संभव
|}
; कर्मधारय समास
जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है। जैसे -
{| class="wikitable"
!समस्त पद
!समास-विग्रह
!समस्त पद
!समास-विग्रह
|-
|चंद्रमुख
|चंद्र जैसा मुख
|कमलनयन
|कमल के समान नयन
|-
|देहलता
|देह रूपी लता
|दहीबड़ा
|दही में डूबा बड़ा
|-
|नीलकमल
|नीला कमल
|पीतांबर
|पीला अंबर (वस्त्र)
|-
|सज्जन
|सत् (अच्छा) जन
|नरसिंह
|नरों में सिंह के समान
|}
; द्विगु समास
जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है। जैसे -
{| class="wikitable"
!समस्त पद
!समास-विग्रह
!समस्त पद
!समास-विग्रह
|-
|नवग्रह
|नौ ग्रहों का समूह
|दोपहर
|दो पहरों का समाहार
|-
|त्रिलोक
|तीन लोकों का समाहार
|चौमासा
|चार मासों का समूह
|-
|नवरात्र
|नौ रात्रियों का समूह
|शताब्दी
|सौ अब्दो (वर्षों) का समूह
|-
|अठन्नी
|आठ आनों का समूह
|त्रयम्बकेश्वर
|तीन लोकों का ईश्वर
|}
 
== द्वन्द्व समास[संपादित करें] ==
जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर ‘और’, अथवा, ‘या’, एवं लगता है, वह द्वंद्व समास कहलाता है। जैसे-
{| class="wikitable"
!समस्त पद
!समास-विग्रह
!समस्त पद
!समास-विग्रह
|-
|पाप-पुण्य
|पाप और पुण्य
|अन्न-जल
|अन्न और जल
|-
|सीता-राम
|सीता और राम
|खरा-खोटा
|खरा और खोटा
|-
|ऊँच-नीच
|ऊँच और नीच
|राधा-कृष्ण
|राधा और कृष्ण
|}
 
== बहुव्रीहि समास[संपादित करें] ==
जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे -
{| class="wikitable"
!समस्त पद
!समास-विग्रह
|-
|दशानन
|दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण
|-
|नीलकंठ
|नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव
|-
|सुलोचना
|सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी
|-
|पीतांबर
|पीला है अम्बर (वस्त्र) जिसका अर्थात् श्रीकृष्ण
|-
|लंबोदर
|लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी
|-
|दुरात्मा
|बुरी आत्मा वाला ( दुष्ट)
|-
|श्वेतांबर
|श्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती जी
|}
 
=== कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर[संपादित करें] ===
कर्मधारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। जैसे - नीलकंठ = नीला कंठ। बहुव्रीहि में समस्त पाद के दोनों पादों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञादि का विशेषण होता है। इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है। जैसे - नील+कंठ = नीला है कंठ जिसका [[शिव]]।.
 
== संधि और समास में अंतर[संपादित करें] ==
[[संधि (व्याकरण)|संधि]] वर्णों में होती है। इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है। जैसे - देव + आलय = देवालय।
 
समास दो पदों में होता है। समास होने पर विभक्ति या शब्दों का लोप भी हो जाता है। जैसे - माता और पिता = माता-पिता।
 
== समास-व्यास से विषय का प्रतिपादन[संपादित करें] ==
यदि आपको लगता है कि सन्देश लम्बा हो गया है (जैसे, कोई एक पृष्ठ से अधिक), तो अच्छा होगा कि आप समास और व्यास दोनों में ही अपने विषय-वस्तु का प्रतिपादन करें अर्थात् जैसे किसी शोध लेख का प्रस्तुतीकरण आरम्भ में एक सारांश के साथ किया जाता है, वैसे ही आप भी कर सकते हैं। इसके बारे में कुछ प्राचीन उद्धरण भी दिए जा रहे हैं।
: '''विस्तीर्यैतन्महज्ज्ञानमृषिः संक्षिप्य चाब्रवीत्।'''
: '''इष्टं हि विदुषां लोके समासव्यासधारणम् ॥''' (महाभारत आदिपर्व १.५१)
--- अर्थात् महर्षि ने इस महान ज्ञान (महाभारत) का संक्षेप और विस्तार दोनों ही प्रकार से वर्णन किया है, क्योंकि इस लोक में विद्वज्जन किसी भी विषय पर समास (संक्षेप) और व्यास (विस्तार) दोनों ही रीतियाँ पसन्द करते हैं।
: '''ते वै खल्वपि विधयः सुपरिगृहीता भवन्ति येषां लक्षणं प्रपञ्चश्च।'''
: '''केवलं लक्षणं केवलः प्रपञ्चो वा न तथा कारकं भवति॥''' (व्याकरण-महाभाष्य २। १। ५८, ६। ३। १४)
--- अर्थात् वे विधियाँ सरलता से समझ में आती हैं जिनका लक्षण (संक्षेप से निर्देश) और प्रपञ्च (विस्तार) से विधान होता है। केवल लक्षण या केवल प्रपञ्च उतना प्रभावकारी नहीं होता।
 
== इन्हें भी देखें[संपादित करें] ==
* [[संधि (व्याकरण)|संधि]]
* [[हिन्दी|हिन्दी भाषा]]
* [[हिन्दी व्याकरण]]
* [[हिन्दी व्याकरण का इतिहास]]
 
== बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें] ==
{| class="wikitable"
|
{| class="wikitable"
! colspan="2" |[[[समास|छुपाएँ]]]
* [[साँचा:हिन्दी व्याकरण|द]]
* [[साँचा वार्ता:हिन्दी व्याकरण|वा]]
* ब
[[हिन्दी व्याकरण]]
|-
|
|-
!शब्द
|[[संज्ञा]] • [[सर्वनाम]] • [[विशेषण]] • [[क्रिया (व्याकरण)|क्रिया]] • [[उपसर्ग]] • [[प्रत्यय]] • [[संधि (व्याकरण)|संधि]] • '''समास''' • [[अलंकार (साहित्य)|अलंकार]]
|-
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|-
!वाक्य के प्रकार
|
{| class="wikitable"
!अर्थ के आधार पर
|[[विधान वाचक वाक्य]] • [[निषेधवाचक वाक्य]] • [[प्रश्नवाचक वाक्य]] • [[विस्म्यादिवाचक वाक्य]] • [[आज्ञावाचक वाक्य]] • [[इच्छावाचक वाक्य]] • [[संदेहवाचक वाक्य]]
|-
|
|-
!रचना के आधार पर
|सरल वाक्य/साधारण वाक्य • संयुक्त वाक्य • मिश्रित/मिश्र वाक्य
|}
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| colspan="2" |
* [[हिन्दी|पुस्तक]]
* [[:श्रेणी:हिन्दी व्याकरण|श्रेणी]]
|}
|}
# [[समास#cite ref-1|ऊपर जायें↑]] प्रतिमान
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=== योगदान ===
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* [[विकिपीडिया:अनुवाद हेतु लेख|अनुवाद हेतु लेख]]
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* [[विकिपीडिया:विशेषाधिकार निवेदन|विशेषाधिकार निवेदन]]
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=== सहायता ===
* [[विकिपीडिया:सहायता|सहायता]]
* [[विकिपीडिया:स्वशिक्षा|स्वशिक्षा]]
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* = समास = मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से '''समास''' का तात्पर्य है ‘संक्षिप्तीकरण’। दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहते हैं। जैसे - ‘रसोई के लिए घर’ इसे हम ‘रसोईघर’ भी कह सकते हैं। [[संस्कृत]] एवं अन्य भारतीय भाषाओं में समास का बहुतायत में प्रयोग होता है। [[जर्मन]] आदि भाषाओं में भी समास का बहुत अधिक प्रयोग होता है। == अनुक्रम ==   [[null छुपाएँ]] 
** [[समास#.E0.A4.AA.E0.A4.B0.E0.A4.BF.E0.A4.AD.E0.A4.BE.E0.A4.B7.E0.A4.BE.E0.A4.8F.E0.A4.81|1परिभाषाएँ]]
** [[समास#.E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8 .E0.A4.95.E0.A5.87 .E0.A4.AD.E0.A5.87.E0.A4.A6|2समास के भेद]]
** [[समास#.E0.A4.85.E0.A4.B5.E0.A5.8D.E0.A4.AF.E0.A4.AF.E0.A5.80.E0.A4.AD.E0.A4.BE.E0.A4.B5 .E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8|3अव्ययीभाव समास]]
** [[समास#.E0.A4.A4.E0.A4.A4.E0.A5.8D.E0.A4.AA.E0.A5.81.E0.A4.B0.E0.A5.81.E0.A4.B7 .E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8|4तत्पुरुष समास]]
*** [[समास#.E0.A4.A4.E0.A4.A4.E0.A5.8D.E0.A4.AA.E0.A5.81.E0.A4.B0.E0.A5.81.E0.A4.B7 .E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8 .E0.A4.95.E0.A5.87 .E0.A4.AA.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A4.95.E0.A4.BE.E0.A4.B0|4.1तत्पुरुष समास के प्रकार]]
** [[समास#.E0.A4.A6.E0.A5.8D.E0.A4.B5.E0.A4.A8.E0.A5.8D.E0.A4.A6.E0.A5.8D.E0.A4.B5 .E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8|5द्वन्द्व समास]]
** [[समास#.E0.A4.AC.E0.A4.B9.E0.A5.81.E0.A4.B5.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A5.80.E0.A4.B9.E0.A4.BF .E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8|6बहुव्रीहि समास]]
*** [[समास#.E0.A4.95.E0.A4.B0.E0.A5.8D.E0.A4.AE.E0.A4.A7.E0.A4.BE.E0.A4.B0.E0.A4.AF .E0.A4.94.E0.A4.B0 .E0.A4.AC.E0.A4.B9.E0.A5.81.E0.A4.B5.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A5.80.E0.A4.B9.E0.A4.BF .E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8 .E0.A4.AE.E0.A5.87.E0.A4.82 .E0.A4.85.E0.A4.82.E0.A4.A4.E0.A4.B0|6.1कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर]]
** [[समास#.E0.A4.B8.E0.A4.82.E0.A4.A7.E0.A4.BF .E0.A4.94.E0.A4.B0 .E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8 .E0.A4.AE.E0.A5.87.E0.A4.82 .E0.A4.85.E0.A4.82.E0.A4.A4.E0.A4.B0|7संधि और समास में अंतर]]
** [[समास#.E0.A4.B8.E0.A4.AE.E0.A4.BE.E0.A4.B8-.E0.A4.B5.E0.A5.8D.E0.A4.AF.E0.A4.BE.E0.A4.B8 .E0.A4.B8.E0.A5.87 .E0.A4.B5.E0.A4.BF.E0.A4.B7.E0.A4.AF .E0.A4.95.E0.A4.BE .E0.A4.AA.E0.A5.8D.E0.A4.B0.E0.A4.A4.E0.A4.BF.E0.A4.AA.E0.A4.BE.E0.A4.A6.E0.A4.A8|8समास-व्यास से विषय का प्रतिपादन]]
** [[समास#.E0.A4.87.E0.A4.A8.E0.A5.8D.E0.A4.B9.E0.A5.87.E0.A4.82 .E0.A4.AD.E0.A5.80 .E0.A4.A6.E0.A5.87.E0.A4.96.E0.A5.87.E0.A4.82|9इन्हें भी देखें]]
** [[समास#.E0.A4.AC.E0.A4.BE.E0.A4.B9.E0.A4.B0.E0.A5.80 .E0.A4.95.E0.A4.A1.E0.A4.BC.E0.A4.BF.E0.A4.AF.E0.A4.BE.E0.A4.81|10बाहरी कड़ियाँ]] == परिभाषाएँ[संपादित करें] ==
*; सामासिक शब्द समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहते हैं। समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न (परसर्ग) लुप्त हो जाते हैं। जैसे-राजपुत्र।
*; समास-विग्रह सामासिक शब्दों के बीच के संबंध को स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है। जैसे-राजपुत्र-राजा का पुत्र।
*; पूर्वपद और उत्तरपद समास में दो पद (शब्द) होते हैं। पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं। जैसे-गंगाजल। इसमें गंगा पूर्वपद और जल उत्तरपद है। [[संस्कृत]] में समासों का बहुत प्रयोग होता है। अन्य भारतीय भाषाओं में भी समास उपयोग होता है। समास के बारे में संस्कृत में एक सूक्ति प्रसिद्ध है:
*: '''वन्द्वो द्विगुरपि चाहं मद्गेहे नित्यमव्ययीभावः।'''
*: '''तत् पुरुष कर्म धारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः॥''' == समास के भेद[संपादित करें] == समास के छः भेद होते हैं:
** अव्ययीभाव
** तत्पुरुष
** द्विगु
** द्वन्द्व
** बहुव्रीहि
** कर्मधारय == अव्ययीभाव समास[संपादित करें] == जिस समास का पहला पद(पूर्व पद) प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे - यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु कर) न् इनमें यथा और आ अव्यय हैं। कुछ अन्य उदाहरण -
** आजीवन - जीवन-भर
** यथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसार
** यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार
** यथाविधि- विधि के अनुसार
** यथाक्रम - क्रम के अनुसार
** भरपेट- पेट भरकर
** हररोज़ - रोज़-रोज़
** हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में
** रातोंरात - रात ही रात में
** प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
** बेशक - शक के बिना
** निडर - डर के बिना
** निस्संदेह - संदेह के बिना
** प्रतिवर्ष - हर वर्ष '''अव्ययीभाव समास की पहचान''' - इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है अर्थात समास लगाने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है। इसके साथ विभक्ति चिह्न भी नहीं लगता। जैसे - ऊपर के समस्त शब्द है।परक == तत्पुरुष समास[संपादित करें] == '''तत्पुरुष समास''' - जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - तुलसीदासकृत = तुलसी द्वारा कृत (रचित) '''ज्ञातव्य'''- विग्रह में जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला वह समास होता है। विभक्तियों के नाम के अनुसार तत्पुरुष समास के छह भेद हैं-
*# कर्म तत्पुरुष (गिरहकट - गिरह को काटने वाला)
*# करण तत्पुरुष (मनचाहा - मन से चाहा)
*# संप्रदान तत्पुरुष (रसोईघर - रसोई के लिए घर)
*# अपादान तत्पुरुष (देशनिकाला - देश से निकाला)
*# संबंध तत्पुरुष (गंगाजल - गंगा का जल)
*# अधिकरण तत्पुरुष (नगरवास - नगर में वास) === तत्पुरुष समास के प्रकार[संपादित करें] ===
*; नञ तत्पुरुष समास जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - {| class="wikitable" !समस्त पद !समास-विग्रह !समस्त पद !समास-विग्रह |- |असभ्य |न सभ्य |अनंत |न अंत |- |अनादि |न आदि। असंभव |न संभव |}
*; कर्मधारय समास जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है। जैसे - {| class="wikitable" !समस्त पद !समास-विग्रह !समस्त पद !समास-विग्रह |- |चंद्रमुख |चंद्र जैसा मुख |कमलनयन |कमल के समान नयन |- |देहलता |देह रूपी लता |दहीबड़ा |दही में डूबा बड़ा |- |नीलकमल |नीला कमल |पीतांबर |पीला अंबर (वस्त्र) |- |सज्जन |सत् (अच्छा) जन |नरसिंह |नरों में सिंह के समान |}
*; द्विगु समास जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है। जैसे - {| class="wikitable" !समस्त पद !समास-विग्रह !समस्त पद !समास-विग्रह |- |नवग्रह |नौ ग्रहों का समूह |दोपहर |दो पहरों का समाहार |- |त्रिलोक |तीन लोकों का समाहार |चौमासा |चार मासों का समूह |- |नवरात्र |नौ रात्रियों का समूह |शताब्दी |सौ अब्दो (वर्षों) का समूह |- |अठन्नी |आठ आनों का समूह |त्रयम्बकेश्वर |तीन लोकों का ईश्वर |} == द्वन्द्व समास[संपादित करें] == जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर ‘और’, अथवा, ‘या’, एवं लगता है, वह द्वंद्व समास कहलाता है। जैसे- {| class="wikitable" !समस्त पद !समास-विग्रह !समस्त पद !समास-विग्रह |- |पाप-पुण्य |पाप और पुण्य |अन्न-जल |अन्न और जल |- |सीता-राम |सीता और राम |खरा-खोटा |खरा और खोटा |- |ऊँच-नीच |ऊँच और नीच |राधा-कृष्ण |राधा और कृष्ण |} == बहुव्रीहि समास[संपादित करें] == जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे - {| class="wikitable" !समस्त पद !समास-विग्रह |- |दशानन |दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण |- |नीलकंठ |नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव |- |सुलोचना |सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी |- |पीतांबर |पीला है अम्बर (वस्त्र) जिसका अर्थात् श्रीकृष्ण |- |लंबोदर |लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी |- |दुरात्मा |बुरी आत्मा वाला ( दुष्ट) |- |श्वेतांबर |श्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती जी |} === कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर[संपादित करें] === कर्मधारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। जैसे - नीलकंठ = नीला कंठ। बहुव्रीहि में समस्त पाद के दोनों पादों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञादि का विशेषण होता है। इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है। जैसे - नील+कंठ = नीला है कंठ जिसका [[शिव]]।. == संधि और समास में अंतर[संपादित करें] == [[संधि (व्याकरण)|संधि]] वर्णों में होती है। इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है। जैसे - देव + आलय = देवालय। समास दो पदों में होता है। समास होने पर विभक्ति या शब्दों का लोप भी हो जाता है। जैसे - माता और पिता = माता-पिता। == समास-व्यास से विषय का प्रतिपादन[संपादित करें] == यदि आपको लगता है कि सन्देश लम्बा हो गया है (जैसे, कोई एक पृष्ठ से अधिक), तो अच्छा होगा कि आप समास और व्यास दोनों में ही अपने विषय-वस्तु का प्रतिपादन करें अर्थात् जैसे किसी शोध लेख का प्रस्तुतीकरण आरम्भ में एक सारांश के साथ किया जाता है, वैसे ही आप भी कर सकते हैं। इसके बारे में कुछ प्राचीन उद्धरण भी दिए जा रहे हैं।
*: '''विस्तीर्यैतन्महज्ज्ञानमृषिः संक्षिप्य चाब्रवीत्।'''
*: '''इष्टं हि विदुषां लोके समासव्यासधारणम् ॥''' (महाभारत आदिपर्व १.५१) --- अर्थात् महर्षि ने इस महान ज्ञान (महाभारत) का संक्षेप और विस्तार दोनों ही प्रकार से वर्णन किया है, क्योंकि इस लोक में विद्वज्जन किसी भी विषय पर समास (संक्षेप) और व्यास (विस्तार) दोनों ही रीतियाँ पसन्द करते हैं।
*: '''ते वै खल्वपि विधयः सुपरिगृहीता भवन्ति येषां लक्षणं प्रपञ्चश्च।'''
*: '''केवलं लक्षणं केवलः प्रपञ्चो वा न तथा कारकं भवति॥''' (व्याकरण-महाभाष्य २। १। ५८, ६। ३। १४) --- अर्थात् वे विधियाँ सरलता से समझ में आती हैं जिनका लक्षण (संक्षेप से निर्देश) और प्रपञ्च (विस्तार) से विधान होता है। केवल लक्षण या केवल प्रपञ्च उतना प्रभावकारी नहीं होता। == इन्हें भी देखें[संपादित करें] ==
** [[संधि (व्याकरण)|संधि]]
** [[हिन्दी|हिन्दी भाषा]]
** [[हिन्दी व्याकरण]]
** [[हिन्दी व्याकरण का इतिहास]] == बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें] == {| class="wikitable" | {| class="wikitable" ! colspan="2" |[[[समास|छुपाएँ]]]
* [[साँचा:हिन्दी व्याकरण|द]]
* [[साँचा वार्ता:हिन्दी व्याकरण|वा]]
* ब [[हिन्दी व्याकरण]] |- | |- !शब्द |[[संज्ञा]] • [[सर्वनाम]] • [[विशेषण]] • [[क्रिया (व्याकरण)|क्रिया]] • [[उपसर्ग]] • [[प्रत्यय]] • [[संधि (व्याकरण)|संधि]] • '''समास''' • [[अलंकार (साहित्य)|अलंकार]] |- | |- !वाक्य के प्रकार | {| class="wikitable" !अर्थ के आधार पर |[[विधान वाचक वाक्य]] • [[निषेधवाचक वाक्य]] • [[प्रश्नवाचक वाक्य]] • [[विस्म्यादिवाचक वाक्य]] • [[आज्ञावाचक वाक्य]] • [[इच्छावाचक वाक्य]] • [[संदेहवाचक वाक्य]] |- | |- !रचना के आधार पर |सरल वाक्य/साधारण वाक्य • संयुक्त वाक्य • मिश्रित/मिश्र वाक्य |} |- | |- | colspan="2" |
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