"धर्म के लक्षण": अवतरणों में अंतर

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: '''श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चाप्यवधार्यताम्।'''
: '''आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।।।।''' (पद्मपुराण, शृष्टि 19/357-358)
 
('''अर्थ:''' धर्म का सर्वस्व क्या है, सुनो ! और सुनकर इसका अनुगमन करो। जो आचरण स्वयं के प्रतिकूल हो, वैसा आचरण दूसरों के साथ नहीं करना चाहिये।)