"स्कन्द पुराण": अवतरणों में अंतर

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इसमें लौकिक और पारलौकिक ज्ञानके अनन्त उपदेश भरे हैं। इसमें [[धर्म]], [[सदाचार]], [[योग]], [[ज्ञान]] तथा [[भक्ति]] के सुन्दर विवेचनके साथ अनेकों साधु-महात्माओं के सुन्दर चरित्र पिरोये गये हैं। आज भी इसमें वर्णित आचारों, पद्धतियोंके दर्शन हिन्दू समाज के घर-घरमें किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें भगवान [[शिव]] की महिमा, सती-चरित्र, शिव-पार्वती-विवाह, कार्तिकेय-जन्म, तारकासुर-वध आदि का मनोहर वर्णन है।<ref>[http://www.gitapress.org/hindi/search_result.asp गीताप्रेस डाट काम]</ref>
 
इस पुराण के कौमारिकखण्ड के अध्याय २३ में एक कन्या को दस पुत्रों के बराबर कहा गया है-
: ''दशपुत्रसमा कन्या दशपुत्रान् प्रवर्धयन्।दशपुत्रान्प्रवर्द्धयन्।
: ''यत्फलं लभते मार्त्यस्तल्लभ्यंमर्त्यस्तल्लभ्यं कन्ययैकया॥ २३.४६ (स्कन्दपुराण, कौमारिक खण्ड, अध्याय २३, श्लोक ४६)
 
: ''( एक पुत्री दस पुत्रों के समान है। कोई व्यक्ति दस पुत्रों के लालन-पालन से जो फल प्राप्त करता है वही फल केवल एक कन्या के पालन-पोषण से प्राप्त हो जाता है।