"त्रिकोणीय सर्वेक्षण": अवतरणों में अंतर

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उस भुजा का उत्तर दिशा से दक्षिणवर्ती कोण (clockwise angle)
 
इस कोण की आवश्यकता नियामकों की गणना में होती है। इसे '''दिङ्मानदिंमान''' (bearing) कहते हैं।
 
यदि ऐसे दो बिंदु उपलब्ध न हों तो आधार उसी समय नापकर स्थापित किया जाता है। इसके लिये सर्वेक्षक आरंभ करने वाले बिंदु के आसपास एक सुविधाजनक समतल भूखंड पर, यथार्थ माप देनेवाले फीते से, एक रेखा अ आ नापता है। आजकल मुख्यत: यह नाप फीते को रज्जुवक्र (catenary) में टाँग कर लेते हैं। फीते के सिरों के बीच यथार्थ क्षैतिज दूरी गणना द्वारा निकाल ली जाती है। उस पर क्रमश: ऐसे त्रिभुज बनाए जाते हैं कि पहले एक या दो त्रिभुजों को छोड़कर किसी भी त्रिभुज का कोई भी कोण 20 डिग्री से कम न हो। आधार भुजा से आरंभ करते समय दो कोण इ और ई 3 डिग्री तक के ले लिए जाते हैं। मगर इन्हें आवृत्ति विधि (method of repetition) से बहुत ही यथार्थ नापते हैं।
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यह कोण [[थियोडोलाइट]] नामक यंत्र से नापते हैं। आधार बिंदुओं से आरंभ करके क्रमश: सभी स्टेशन बिंदुओं पर थियोडोलाइट केंद्रित करके कोण पढ़ लिए जाते हैं। जैसे जैसे त्रिभुजमाला के एक एक त्रिभुज या चतुर्भुज के सारे कोण पूरे हो जाते हैं, सर्वेक्षक ज्यामितीय संबंधों, जैसे त्रिभुज के तीनों कोण (180°) या चतुर्भुज के चारों कोण (360°), की जाँच करता जाता है। पृथ्वी की सतह गोलाकार होने के कारण त्रिभुज बहुत बड़े होने पर उसके कोणों का योग 180 डिग्री से अधिक हो जाता है। इस प्रकार की बढ़ती को गोलीय आधिक्य (spherical excess) कहते हैं। 75 वर्ग मीलवाले त्रिभुज में यह आधिक्य 1"" होता है। प्रेक्षण त्रुटियों और गोलीय आधिक्य का शोधन करके गणना में कोण प्रयुक्त होते हैं।
 
प्रेक्षण समाप्त होने पर प्रारंभिक त्रिभुज की आधार भुजा और नापे गए कोणों का प्रयोग कर त्रिकोणमितीय सूत्र से सभी भुजाओं की लंबाइयाँ ज्ञात हो जाती हैं। तदुपरांत नियामक निकालने के लिये ज्ञात बिंदु या बिंदुओं से अज्ञात बिंदु को जोड़ने वाली रेखा या रेखाओं के दिङ्मानदिंमान, जिसका उल्लेख पहले हो चुका है, निकाल लिए जाते हैं। ज्ञात बिंदु या बिंदुओं से अज्ञात बिंदु की दूरी द (d) और को (b) दिङ्मानदिंमान ज्ञात होने से उसके नियामक उअद कोज्या को और पूअद ज्या को ज्ञात किए जा सकते हैं। ये आयताकार नियामक कहलाते हैं। यदि ऊर्ध्व कोण भी क्षैतिज प्रेक्षण के साथ पड़ जाएँ तो अज्ञात बिंदु की ऊँचाई ऊ अ द स्प न होगी। उपर्युक्त समीकरणों में उ, पू और ऊ ज्ञात बिंदु की क्रमश: उत्तरायण तथा पूर्वायण ऊँचाइयाँ हैं और द एवं न क्रमश: अज्ञात बिंद की दूरी और नतिकोण हैं। पृथ्वी को गोलाभ मानकर बिंदुओं के भौगोलिक नियामक, अर्थात् अक्षांश और देशांतर, भी निकले जा सकते हैं।
 
यदि त्रिकोणीय सर्वेक्षण आरंभ करने के लिए केवल एक बिंदु ज्ञात हो तो दूसरे चुने गए स्टेशन की ज्ञात स्टेशन की ज्ञात स्टेशन से दूरी फीते से आधाररेखा नापकर, प्रसारित आधार जाल द्वारा निकालते हैं। दिङ्मानदिंमान ध्रुवतारा और सूर्य आदि के खगोलीय प्रेक्षणों से ज्ञात करते हैं।
 
यदि किसी क्षेत्र में सर्वेक्षण पहली बार आरंभ हो रहा हो, जहाँ काई भी बिंदु ज्ञात न हो तो कुछ दिन तक निरंत खगोलीय प्रेक्षण करके एक बिंदु के नियामक निर्धारित करते हैं। रात के समय स्वच्छ आकाश को दिन प्रति दिन देखने से विदित होगा कि बहुतेरे पहचानने योग्य चमकीले तारे समान रूप से एक गोले की सतह पर तैरते से दिखाई देते हैं। उनके उदय और अस्त भी नियमित रूप से होते देखे जाएँगे। ऐसे गोले को भी पृथ्वी की भाँति याम्योत्तरों और समांतरों से बँटे होने की ग्राह्य कल्पना की जा सकती है, जो गणितीय सूत्रों का पालन करती है। इन तथ्यों का लाभ उठाकर सर्वेक्षक तारों का प्रेक्षण करके प्रेक्षण स्टेशन के नियामक निकालने में सफल हो जाता है। उससे और नापी हुई अधाररेखा से त्रिकोणीय सर्वेक्षण किया जा सकता है।