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=== नाटक और रंगमंच ===
[[चित्र:Mani Madhava Chakyar as Ravana.jpg|भारतीय नाट्य की एकमात्र जीवित परंपरा है ([[संस्कृत भाषा|संस्कृत]]) [[कुटीयट्टम]] ([[:en:Kutiyattam|Kutiyattam]]), जो कि [[केरल]] में संरक्षित है। [[भास|भासा]] के नाटक ''अभिषेक'' नाटक में ''[[रावण|रावन]]'' की भूमिका में गुरु'' नाट्याचार्य'' [[मणि माधव चक्यार|मणि माधव चकयार]] ([[:en:Māni Mādhava Chākyār|Māni Mādhava Chākyār]]).|thumb|right]]
{{Main|Theatre in India}}
 
{{Main|भारतीय रंगमंच}}
भारतीय संगीत और नृत्य के साथ साथ भारतीय नाटक और थियेटर का भी अपने लम्बा इतिहास है।[[कालिदास]] के नाटक [[शकुंतला]] ([[:en:Shakuntala|Shakuntala]]) और [[मेघदूतम्|मेघदूत]] कुछ पुराने नाटक हैं, जिनके बाद भासा के नाटक आये.२००० साल पुरानी [[केरल]] की [[कुटीयट्टम|कुटियट्टम]] ([[:en:Kutiyattam|Kutiyattam]]) विश्व की सबसे पुरानी जीवित थियेटर परम्पराओं में से एक है। यह सख्ती से [[नाट्य शास्त्र]] का पालन करती है<ref>{{cite book
 
भारतीय संगीत और नृत्य के साथ साथ भारतीय नाटक और थियेटर का भी अपने लम्बा इतिहास है।[[कालिदास]] के नाटक [[शकुंतला]] ([[:en:Shakuntala|Shakuntala]]) और [[मेघदूतम्|मेघदूत]] कुछ पुराने नाटक हैं, जिनके बाद भासा के नाटक आये.२००० साल पुरानी [[केरल]] की [[कुटीयट्टम|कुटियट्टम]] ([[:en:Kutiyattam|Kutiyattam]]) विश्व की सबसे पुरानी जीवित थियेटर परम्पराओं में से एक है। यह सख्ती से [[नाट्य शास्त्र]] का पालन करती है<ref>{{cite book
| title = [[Nātyakalpadrumam]]
| author = [[Māni Mādhava Chākyār]]
| publisher = Sangeet Natak Akademi, नई दिल्ली
| date = 1996
}}पी . ६</ref> कला के इस रूप में [[भास|भासा]] के नाटक बहुत प्रसिद्द हैं।''नाट्याचार्य ''(स्वर्गीय) [[पद्म श्री]] [[मणि माधव चक्यार|मणि माधव चकयार]] ([[:en:Māni Mādhava Chākyār|Māni Mādhava Chākyār]]) - अविवादित रूप से कला के इस रूप और ''[[अभिनय]] ([[:en:Abhinaya|Abhinaya]])'' के आचार्य - ने इस पुराणी नाट्य परंपरा को लुप्त होने से बचाया और इसे पुनर्जीवित किया। वो [[रस (सौंदर्यशास्त्र)|रस अभिनय]] ([[:en:Rasa (aesthetics)|Rasa Abhinaya]]) में अपनी महारत के लिए जाने जाते थे। उन्होंने [[कालिदास]] के नाटक [[अभिजनान्शाकुंताला|अभिज्ञान शकुंतलाशाकुंतल]] ([[:en:Abhijñānaśākuntala|Abhijñānaśākuntala]]), [[विक्रमोर्वसिया]] ([[:en:Vikramorvaśīya|Vikramorvaśīya]]) और [[मालाविकाग्निमित्र|मालविकाग्निमित्र]] (; [[:en:Mālavikāgnimitra|Mālavikāgnimitraभास]]) ; भासा के [[सवाप्न्वसवादातता|स्वप्नवासवदत्ता]] ([[:en:Swapnavāsavadatta|Swapnavāsavadatta]]) और [[पंचरात्र]] ([[:en:Pancharātra|Pancharātra]]) ; [[हर्षवर्धन|हर्ष]] के [[नागनंदा|नगनान्दा]] ([[:en:Nagananda|Nagananda]]) आदि नाटकों को कुटियट्टम रूप में प्रर्दशित करना शुरू किया<ref>http://sites.google.com/site/natyacharya/articlesके. ए. चन्द्रहासन, ''इन परस्युट ऑफ़ एक्स्सेलेंस यानि उत्कृष्टता की खोज में''(प्रदर्शन कला), "[[द हिंदू|द हिन्दू]]", रविवार मार्च २६, १९८९
</ref><ref>''मणि माधव चक्क्यर: द मास्टर एट वर्क'' (फिल्म-अंग्रेजी), कवलम एन. पनिकर, [[संगीत नाटक अकादमी]] ([[:en:Sangeet Natak Akademi|Sangeet Natak Akademi]]), नई दिल्ली, १९९४</ref>
 
लोक थिएटर की परंपरा भारत के अधिकाँश भाषाई क्षेत्रों में लोकप्रिय है इसके अलावा, ग्रामीण भारत में कठपुतली थियेटर की समृद्ध परंपरा है जिसकी शुरुआत कम से कम दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व हुई थी इसका [[पाणिनि]] पर पतंजलि के वर्णन) में उल्लेख किया गया है समूह थियेटर भी शहरों में पनप रहा है, जिसकी शुरुआत [[गुब्बी वीराना|गब्बी वीरंन्ना]] ([[:en:Gubbi Veeranna|Gubbi Veeranna]])<ref name="venka"/>, [[उत्पल दत्त]] ([[:en:Utpal Dutt|Utpal Dutt]]), [[ख्वाज़ा अहमद अब्बास]] ([[:en:Khwaja Ahmad Abbas|Khwaja Ahmad Abbas]]), [[केवी सुबाना|के वी सुबन्ना]] ([[:en:K. V. Subbanna|K. V. Subbanna]]) जैसे लोगों द्वारा की गई और जो आज भी [[नंदिकर]] ([[:en:Nandikar|Nandikar]]), [[निनासम]] ([[:en:Ninasam|Ninasam]]) और [[पृथ्वी थिएटर|पृथ्वी थियेटर]] ([[:en:Prithvi Theatre|Prithvi Theatre]]) जैसे समूहों द्वारा बरकरार राखी गई है
 
== दृश्य कला ==