"गौरीदत्त": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो बॉट: दिनांक लिप्यंतरण और अल्पविराम का अनावश्यक प्रयोग हटाया। |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
||
पंक्ति 28:
== हिन्दी के प्रथम उपन्यास के रचयिता ==
पंडित गौरीदत्त ने जहां देवनागरी लिपि के प्रचार तथा प्रसार के लिए इतने ग्रन्थ लिखे और अनेक पत्र-पत्रिकाएं सम्पादित कीं वहां अपने सन १८७० में ''''देवरानी जेठानी की कहानी'''' नामक एक [[उपन्यास]] भी लिखा।<ref>[https://books.google.co.in/books?id=JjQEDAAAQBAJ&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false पुरखों के कोठार, पृष्ट १५२] (लेखक - भारत यायावर ]</ref>
पंडित गौरीदत्त जी जहां अच्छे गद्य-लेखक थे वहां [[खड़ी बोली]] कविता के क्षेत्र में भी आपकी प्रतिभा अद्भुत थी। इसका सुपुष्ट प्रमाण आपके ‘देवरानी जेठानी की कहानी‘ नामक उपन्यास की भूमिका के अन्त में दिए गए उस पद्य से मिल जाता है जो आपने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर द्वारा पुरस्कार प्राप्त होने पर लिखा थाः
पंक्ति 39:
: छिपावें बुरों को भले प्रीति से
इससे यह स्वतः सिद्ध हो जाता है कि गद्य-लेखन और पद्य-लेखन दोनों ही क्षेत्रों में पंडित गौरीदत्त का नाम सर्वथा अग्रणी और अनन्य है। यह प्रसन्नता की बात है कि हिंदी के कुछ विवेकी अध्येताओं का ध्यान गौरीदत्त जी की इस प्रतिभा की ओर गया है और यह भ्रम अब धीरे-धीरे दूर होता जा रहा है कि हिन्दी का प्रथम उपन्यास ‘भाग्यवती' और 'परीक्षा गुरु‘ न होकर ‘देवरानी-जेठानी की कहानी‘ ही है। इस उपन्यास का प्रकाशन सर्वप्रथम सन् 1870 में [[मेरठ]] के ‘जियाई छापेखाने‘ में लीथो-पद्धति से हुआ था और इसकी प्रति अब भी ‘नेशनल लायब्रेरी कलकत्ता‘ में सुरक्षित है। इस उपन्यास का पुनर्प्रकाशन अब [[पटना विश्वविद्यालय]] के प्राध्यापक और ‘समीक्षा‘ नामक शोध-पत्रिका के सम्पादक डॉ॰ गोपाल राय ने करके वास्तव में एक अभिनन्दनीय कार्य किया है।
== इन्हें भी देखें ==
|