"काश्यप संहिता": अवतरणों में अंतर

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'''काश्यपसंहिता''' [[कौमारभृत्य]] का आर्ष व आद्य ग्रन्थ है। इसे 'वृद्धजीवकीयतन्त्र' भी कहा जाता है। महर्षि कश्यप ने कौमारभृत्य को [[आयुर्वेद]] के आठ अंगों में प्रथम स्थान दिया है। काश्यपसंहिताइसकी कीरचना विषयवस्तुईसापूर्व को६ठी देखनेशताब्दी सेमें मालूमहुई होताथी।<ref>Edgar हैThorpe, किShowick इसकीThorpe. योजनाPearson General Knowledge Manual 2009. Pearson. p. 196.</ref> मध्ययुग में इसका [[चरकसंहिताचीनी भाषा]] केमें समान[[अनुवाद]] हीहुआ।<ref>Terence है।Duke. यहThe नौBoddhisattva 'स्थानों'Warriors: मेंThe वर्णितOrigin, हैInner Philosophy, History and Symbolism of the Buddhist Martial Art Within India and China (p. 139-145).</ref><ref>[http://www.vedicbooks.net/kashyap-samhita-english-p-4028.html?cPath=21 Kashyap Samhita - (English), K.R. Srikrishnamurthy]</ref>
 
कश्यप संहिता आयुर्वेद की अत्यन्त प्राचीन संहिता है और सभी आयुर्वेदीय संहिता ग्रन्थों में प्राचीन है। यह संहिता [[नेपाल]] में खंडित रूप में मिली है। उनका समय ६०० ईसापूर्व माना गया है। वर्तमान में प्राप्त काश्यप संहिता अपने में पूर्ण है। महर्षि कश्यप द्वारा प्रोक्त इस विशाल आयुर्वेद का कालक्रम से प्रचार-प्रसार जब कम होने लगा तो ऋचिक मुनि के पचंवर्षीय पुत्र जीवक ने इस विशाल काश्यप संहिता को संक्षिप्त करके [[हरिद्वार]] के [[कनखल]] में समवेत विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत किया। उपस्थित विद्वानों ने उसे बालभाषित समझकर अस्वीकार कर दिया। तब बालक जीवक ने वहीं उनके सामने [[गंगा]] की धारा में डुबकी लगायी। कुछ देर के बाद गंगा की धारा से जीवक अतिवृद्ध के रूप में निकले। उन्हें वृद्ध रूप में देख, चकित विद्वानों ने उन्हें 'वृद्धजीवक' नाम से अभिहित किया और उनके द्वारा प्रतिपादित उस आयुर्वेद तन्त्र कों ‘वृद्धजीवकीय तन्त्र’ के रूप में मान्यता दी।
 
==संरचना==
काश्यपसंहिता की विषयवस्तु को देखने से मालूम होता है कि इसकी योजना [[चरकसंहिता]] के समान ही है। यह नौ 'स्थानों' में वर्णित है-
: ''सूत्रस्थान, निदानस्थान, विमानखिलस्थान, शरीरखिलस्थान, इन्द्रियखिलस्थान, चिकित्साखिलस्थान, सिद्धिखिलस्थान, कल्पखिलस्थान एवं खिलस्थान।
 
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काश्यपसंहिता में कुमारभृत्य के सम्बन्ध में नवीन तथ्यों को बताया गया है, जैसे दन्तोत्पत्ति, शिशुओं में मृदुस्वेद का उल्लेख, आयुष्मान बालक के लक्षण, वेदनाध्याय में वाणी के द्वारा अपनी वेदना न प्रकट कने वाले बालकों के लिए विभिन्न चेष्टाओं के द्वारा वेदना का परिज्ञान, बालकों के फक्क रोग में तीन पहियों वाले रथ का वर्णन, लशुन कल्प के विभिन्न प्रयोगों का वर्णन, तथा रेवतीकल्पाध्याय में जातहारिणियों का विशिष्ट वर्णन।
 
; विभिन्न स्थानों में अध्याय
इसकी रचना ईसापूर्व ६ठी शताब्दी में हुई थी।<ref>Edgar Thorpe, Showick Thorpe. Pearson General Knowledge Manual 2009. Pearson. p. 196.</ref> मध्ययुग में इसका [[चीनी भाषा]] में [[अनुवाद]] हुआ।<ref>Terence Duke. The Boddhisattva Warriors: The Origin, Inner Philosophy, History and Symbolism of the Buddhist Martial Art Within India and China (p. 139-145).</ref><ref>[http://www.vedicbooks.net/kashyap-samhita-english-p-4028.html?cPath=21 Kashyap Samhita - (English), K.R. Srikrishnamurthy]</ref>
 
1. सूत्र स्थान - 30 अध्याय
 
2. निदान स्थान - 8 अध्याय
 
3. विमान स्थान - 8 अध्याय
 
4. शारीर स्थान - 8 अध्याय
 
5. इन्द्रिय स्थान - 12 अध्याय
 
6. चिकित्सा स्थान - 30 अध्याय
 
7. सिद्ध स्थान - 12 अध्याय
 
8. कल्प स्थान - 12 अध्याय
 
9. खिलभाग - 80 अध्याय
 
इस तरह संपूर्ण काश्यप संहिता में 8 स्थान, खिलभाग और 200 अध्याय है।
 
== संस्करण ==
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*'''3. कश्यप संहिता'''- यह उमा-महेश्वर-प्रश्नोत्तर के रूप में है और चिकित्सा संबंधी है। यह छोटी सी पुस्तक है; जो [[तंजौर]] पुस्तकालय में है।
 
काश्यप शब्द [[गोत्र]]वाची भी है; मूल ऋषि का नाम कश्यप प्रतीत होता है। [[मत्स्य पुराण]] में मरीच के पुत्र कश्यप को मूल गोत्रप्रवर्तक कहा गया है; परंतु आगे चलकर कश्यप मारीच भी कहा है। [[चरकसंहिता]] में कश्यप पृथक लिखकर 'मारीचिकाश्पौ' यह लिखा है (चरक.सू.अ. 1।1. 8)। इसमें मारीच कश्यप का विशेषण है। इसी प्रकार चरक के एक पाठ में 'काश्यपो भृंगु:' यह पाठ आया है (चरक, सू.अ. 1।1. 8)। इसमें काश्ययप गोत्रोत्पन्न भृगु का उल्लेख है। इस प्रकार काश्यप शब्द जहाँ गोत्रवाची है, वहाँ व्यक्तिवाची भी मिलता है।
 
== उपलब्ध कश्यपसंहिता ==
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[[महाभारत]] में [[तक्षक]]-दंश-उपाख्यान में भी कश्यप का उल्लेख आता है। इन्होंने तक्षक से काटे अश्वत्थ को पुनर्जीवित करके अपनी विद्या का परिचय दिया था (आदि पर्व. 50.34)। [[डल्हण]] ने काश्यप मुनि के नाम से उनका एक वचन उद्धृत किया है, जिसके अनुसार शिरा आदि में अग्निकर्म निषिद्ध है। [[माधवनिदान]] की मधुकोष टीका में भी वृद्ध काश्यप के नाम से एक वचन विष प्रकरण में दिया है। ये दोनों कश्यप पूर्व कश्यप से भिन्न हैं। संभवत: इनको गोत्र के कारण कश्यप कहा गया है। [[अष्टांगहृदय]] में भी कश्यप और कश्यप नाम से दो योग दिए गए हैं। ये दोनों योग उपलब्ध कश्यपसंहिता से मिलते हैं (कश्यप संहिता-उपोद्घात, पृष्ठ 37-38)।
 
==विशेषताएँ==
काश्यपसंहिता (वृद्धजीवकीय तन्त्र) में समस्त आयुर्वेदीय विषयों का प्रश्नोत्तर रूप में निरूपण किया गया हैं। शिष्यों के प्रश्नों का उत्तर महर्षि विस्तार से देते है। शंका-समाधान की शैली
में दुःखात्मक रोग, उनके निदान, रोगों का परिहार और रोग-परिहार के साधन, औषध इन चारों विषयों का भली भांति इसमें प्रतिपादन किया गया है। मानव के पुरूषार्थ-चतुष्टक की सिद्धि में स्वस्थ शरीर ही मुख्य साधन है, शारीरिक और मानसिक रोगों से सर्वथा मुक्त शरीर ही स्वस्थ कहलाता है। अतः निरोग रहने या आरोग्य प्राप्त करने के लिये उपर्युक्त रोग, निदान, परिहार और साधन - इन चारों का सम्यक् प्रतिपादन मुख्यतः आयुर्वेदशास्त्र में किया जाता है।
 
1. प्रस्तुत संहिता कौमार्यभृत्य की प्रमुख संहिता है। बालकों में होने वाले समस्त रोगों का विस्तृत वर्णन मिलता है।
 
2. बालकों के उत्पन्न होने से लेकर, युवावस्था तक के सभी संस्कार एवं ग्रहबाधा चिकित्सा तथा अन्य रोगों का विस्तृत वर्णन है।
 
3. गर्भिणीय प्रकरण, दुष्प्रजातीय एवं धात्री परिचय एवं परीक्षा का विस्तृत वर्णन है।
 
4. स्तन्य (स्त्री दूध) से सम्बन्धित समस्त रोग एवं उसके निवारणार्थ चिकित्सा का वर्णन है।
 
5. [[पंचकर्म]] अध्याय के अंतरगत बालकों में करने वाले पंचकर्मों, पूर्वकर्मों तथा शल्य कर्मों का विशिष्ट व्यवस्था की गई है।
 
6. बालको में होने वाले [[फक्क रोग]] (रिकेसिया) की चिकित्सा तथा तीन पहिया रथ का निर्माण, उपयोग सर्वप्रथम इसी संहिता में प्राप्त है।
 
7. विषम ज्वर ([[मलेरिया]]) के विभिन्न भेदों की लक्षण एवं चिकित्सा का वर्णन है।
 
8. बालकों के विभिन्न अंगो में होने वाली वेदना को बालको की चेष्टा के द्वारा अनुमान लगाने का वर्णन है।
 
9. कल्पस्थान में औषधि द्रव्य [[लहसुन]] का वर्णन एवं लहसुन-कल्प का विशेष वर्णन इस संहिता की विशिष्टता है।
 
10. कल्प स्थान में ही युष, यवांगु आदि का प्रयोग, मधुर आदि रसों का एवं वातादि दोषो का विस्तृत वर्णन मिलता है।
 
== इन्हें भी देखें ==