"पवन": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Windrichtungsgeber.jpg|thumb|पवन की दिशा बताने वाला यन्त्र]]
[[चित्र:Anemoscopi.JPG|right|thumb|200px|पवनवेगदर्शी]]
गतिशील [[वायु]] को '''पवन''' (Wind) कहते हैं। यह गति [[पृथ्वी]] की सतह के लगभग
जब किसी स्थान और ऊँचाई के पवन का निर्देश करना हो तब वहाँ के पवन की चाल और उसकी दिशा दोनों का उल्लेख होना चाहिए। पवन की दिशा का उल्लेख करने में जिस दिशा से पवन बह रहा है उसका उल्लेख दिक्सूचक के निम्नलिखित १६ संकेतों से करते हैं :
:उ (N), उ उ पू (N N E), उ पू (N E), पू उ पू (E N E), पू (E), पू द पू (E S E), द पू (S E), द द पू (S S E), द (S), द द प (S S W), द प (S W), प द प (W S W), प (W), प उ प (W N W), उ प (N W) और उ उ प (N N W)।
अधिक यथार्थता (precision) से पवन की दिशा बताने के लिए यह दिशा अंशों में व्यक्त की जाती है। जब पवन दक्षिणावर्त (clockwise) दिशा में परिवर्तित होता है (जैसे उ से उ पू और पू), तब ऐसे परिवर्तन को पवन का दक्षिणावर्तन और वामावर्त
[[वेधशाला]] में [[पवनदिक्सूचक]] नामक उपकरण हवा की दिशा बताता है। इसका नुकीला सिरा हमेशा उधर रहता है जिधर से हवा आ रही होती है। पवन का वेग मील प्रति घंटे, या मीटर प्रति सेकंड, में व्यक्त किया जाता है। सतह के पवन को मापने के लिए प्राय: प्याले के आकार का पवनमापी काम में आता है। पवनवेग का लगातार अभिलेख करने के लिए अनेक उपकरण काम में आते हैं, जिनमें दाबनली एवं पवनलेखक (Anemograph) महत्वपूर्ण एवं प्रचलित
== बोफर्ट (Beaufort) का पवन मापक्रम ==
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== पवन के कारण और इनकी विभिन्नता ==
सौर विकिरण के प्रभाव से पृथ्वी और [[वायुमंडल]] असमान रूप से गरम होते हैं, जिससे पवन के रूप में वायुमंडलीय गति के लिए आवश्यक ऊर्जा प्राप्त होती है। परिणामी दाबप्रवणता (gradient) के कारण हवा के कण अधिक दबाव से कम दबाव की ओर जाने की प्रवृत्त होते हैं। अत: दाबप्रवणता की अधिकता हवा
पृथ्वी के घूर्णन के कारण चलती हवा पर आभावी विचालक बल, जिसे '''कोरियोलिस (corioles) बल''' कहते हैं, कार्य करता है। यह दूसरा महत्वपूर्ण कारक है। '''f''' अक्षांश पर कोरियोलिस बल '''2 m v w sin (f)''' से व्यक्त किया जाता है, जहाँ '''v''' वायुकरण का वेग, '''m''' वायुकरण की संहति और '''w''' धरती के घूर्णन का कोणीय वेग है। यह बल स्पष्ट कारणों से [[उत्तरी गोलार्ध]] में वायुकणों को दाईं ओर और [[दक्षिणी गोलार्ध]] में बाईं ओर विचलित करता है। इस बल का मान ध्रुवों पर अधिकतम और विषुवत् रेखा पर शून्य होता है।
पवन को प्रभावित
समय एवं स्थान के अनुसार दाब, ताप, आर्द्रता तथा घनत्व वितरण में परिवर्तन, ऊँचाई के अनुसार विचालक बलों में अंतर, चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात जैसी परिवर्तनशील दबाव पद्धतियों से
पृथ्वी के वायुमंडल में वास्तविक परिसंचरण, जिससे पवन की संरचना निर्धारित होती है-
*(१) प्राथमिक परिसंचरण,
*(२) अनेक गौण परिसंचरण (जैसे मानसून, स्थल और समुद्री समीर, पर्वतीय तथा घाटी पवन जो स्थानीय होते हैं) और
*(३) अवनमन (depression) एवं चक्रवात सदृश चलते फिरते विक्षोभ (disturbances) से
इनमें से हर स्थिति के अपने लक्षण हैं, जिनसे पवन का वह स्वरूप निर्धारित होता है।
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