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{{स्रोत कम|date=फरवरी 2017}}
{{Infobox Hindu leader
|name = भगवान वाल्मीकि
|image = Valmiki Ramayana.jpg
|caption = भगवान वाल्मीकि रामायण की रचना करते हुऐ
|philosophy = [[धार्मिक]]
|honors =
|footnotes = [[रामायण]], [[योगविशिष्ठ]], [[अक्षर-लक्ष्य]] के रचनाकार
}}
'''भगवान वाल्मीकि''' ({{IPAc-en|v|ɑː|l|ˈ|m|iː|k|i}};<ref>[http://dictionary.reference.com/browse/valmeki "भगवान वाल्मीकि"]. ''[[Random House Webster's Unabridged Dictionary]]''.</ref> [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]]: भगवान वाल्मीकि ''{{IAST|Vālmīki}}'')<ref>Julia Leslie, ''[http://books.google.com/books?id=466QEN_Av4MC Authority and Meaning in Indian Religions: Hinduism and the Case of Valmiki]'', Ashgate (2003), p. 154. ISBN 0-7546-3431-0</ref> प्राचीन भारतीय [[भगवान]] हैं। ये '''आदिकवि''' के रूप में प्रसिद्ध हैं।<ref>{{cite book|title=हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली|author=हजारीप्रसाद द्विवेदी |url=http://books.google.be/books?id=oWEcVJJ5398C |page=९१ |publisher=राजकमल प्रकाशन |year=२००७ |isbn=9788126713639 }}</ref> उन्होने [[संस्कृत]] में [[रामायण]] की रचना की। उनके द्वारा रची रामायण [[वाल्मीकि रामायण]] कहलाई। रामायण एक [[महाकाव्य]] है जो कि [[राम]] के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य से, कर्तव्य से, परिचित करवाता है।<ref name = dacoit>http://timesofindia.indiatimes.com/india/Maharishi-Valmeki-was-never-a-dacoit-Punjab-Haryana-HC/articleshow/5960417.cms</ref>
 
आदिकवि शब्द 'आदि' और 'कवि' के मेल से बना है। 'आदि' का अर्थ होता है 'प्रथम' और 'कवि' का अर्थ होता है 'काव्य का रचयिता'। भगवान वाल्मीकि ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी जो रामायण के नाम से प्रसिद्ध है। प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना करने के कारण भगवान वाल्मीकि जी आदिकवि कहलाये।
भगवान वाल्मीकि एक आदि कवि थे पर उनकी विशेषता यह थी कि वे कोई ब्राह्मण नहीं थे।
 
== आदि कवि वाल्मीकि ==
वाल्मीकि रामायण महाकाव्य की रचना करने के पश्चात आदिकवि कहलाए। वे कोई ब्राह्मण नही थे,
एक बार भगवान वाल्मीकि एक [[क्रौंच|क्रौंच]] पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि विष्णुबहेलिये ने प्रेम-मग्न क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर वाल्मीकि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।
 
:'''मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
:'''यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥''''''
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अपने महाकाव्य "रामायण" में अनेक घटनाओं के घटने के समय [[सूर्य]], [[चंद्र]] तथा अन्य [[नक्षत्र]] की स्थितियों का वर्णन किया है। इससे ज्ञात होता है कि वे [[ज्योतिष]] विद्या एवं [[खगोल]] विद्या के भी प्रकाण्ड ज्ञानी थे।
 
अपने वनवास काल के मध्य "राम" भगवान वाल्मीकि के आश्रम में भी गये थे।
 
 
देखत बन सर सैल सुहाए।
वाल्मीक आश्रम प्रभु आए॥
 
तथा जब "[[राम]]" ने अपनी पत्नी [[सीता]] का परित्याग कर दिया तब भगवानमहर्षि वाल्मीक ने ही सीता को आसरा दिया था।
 
उपरोक्त उद्धरणों से सिद्ध है कि भगवान वाल्मीकि को "राम" के जीवन में घटित प्रत्येक घटनाओं का पूर्णरूपेण ज्ञान था। उन्होने विष्णु को दिये श्राप को आधार मान कर अपने महाकाव्य "रामायण" की रचना की।
 
== जीवन परिचय ==
आदिकवि वाल्मीकि के जन्म होने का कहीं भी कोई विशेष प्रमाण नहीं मिलता है। सतयुग, त्रेता और द्वापर तीनों कालों में भगवान वाल्मीकि का उल्लेख मिलता है वो भी वाल्मीकि नाम से ही। रामचरित्र मानस के अनुसार जब राम भगवान वाल्मीकि जी के आश्रम आए थे तो वो आदिकवि वाल्मीकि के चरणों में दण्डवत प्रणाम करने के लिए जमीन पर डंडे की भांति लेट गए थे और उनके मुख से निकला था "तुम त्रिकालदर्शी मुनिनाथा, विश्व बिद्र जिमि तुमरे हाथा।" अर्थात आप तीनों लोकों को जानने वाले स्वयं प्रभु हो। ये संसार आपके हाथ में एक बेर के समान प्रतीत होता है।<ref>{{cite book |title=सहरिया |date=2009 |publisher=वन्या [for] आदिम जाति कल्याण विभाग |url=https://books.google.co.in/books?id=M1xQAQAAMAAJ&q=%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BF+%E0%A4%AD%E0%A5%80%E0%A4%B2+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF+%E0%A4%95%E0%A5%87&dq=%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BF+%E0%A4%AD%E0%A5%80%E0%A4%B2+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF+%E0%A4%95%E0%A5%87&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwiQtqrjwbfcAhXMK48KHby6D3EQ6AEIOzAD |accessdate=24 जुलाई 2018 |language=hi}}</ref>
 
महाभारत काल में भी भगवान वाल्मीकि जी का वर्णन मिलता है जब पांडव कौरवों से युद्ध जीत जाते हैं तो [[द्रौपदी]] यज्ञ रखती है,जिसके सफल होने के लिये शंख का बजना जरूरी था और कृष्ण सहित सभी द्वारा प्रयास करने पर भी पर यज्ञ सफल नहीं होता तो [[कृष्ण]] के कहने पर सभी भगवान वाल्मीकि से प्रार्थना करते हैं। जब भगवान वाल्मीकि वहां प्रकट होते हैं तो शंख खुद बज उठता है और द्रौपदी का यज्ञ सम्पूर्ण हो जाता है। इस घटना को [[कबीर]] ने भी स्पष्ट किया है "सुपच रूप धार सतगुरु आए। पांडों के यज्ञ में शंख बजाए।"{{cn}}
 
==सन्दर्भ==
http://www.vkjpandey.in/2018/10/biography-of-maharishi-valmiki.html?m=1<nowiki/>{{टिप्पणीसूची}}
 
== बाहरी कड़ियाँ ==