"वृत्तरत्नाकर": अवतरणों में अंतर
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इस ग्रन्थ का रचनाकाल १५वीं शताब्दी स्वीकार किया जाता है। छन्दोविवेचन की दृष्टि से वृत्तरत्नाकर एक प्रौढ़ रचना है। इसमें छः अध्याय तथा १३६ श्लोक हैं।
वृत्तरत्नाकर की एक विशेषता यह है कि [[छन्द]] के लक्षण रूप में प्रयुक्त पङ्क्ति छन्द के उदाहरण रूप में भी घटित हो जाती है। <ref>[http://www.pratnakirti.com/pratnkirti-currentissue-pdf/sugmavritkatkar.pdf
==सन्दर्भ==
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