"छन्दशास्त्र": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
||
पंक्ति 19:
बाद में, लगभग ८वीं शताब्दी में, केदार भट्ट ने [[वृत्तरत्नाकर]] नामक एक छन्दशास्त्रीय ग्रन्थ की रचना की जो अवैदिक छन्दों से सम्बन्धित था। यह ग्रन्थ पिंगल के छन्दसूत्र का भाष्य नहीं है बल्कि एक स्वतन्त्र रचना है। इस ग्रन्थ के अन्तिम अध्याय (६ठे अध्याय) में सांयोजिकी से सम्बन्धित नियम दिए गये हैं जो पिङ्गल के तरीके से बिल्कुल अलग हैं। १३वीं शताब्दी में [[हलायुध]] ने पिङ्गल के छन्दसूत्र पर 'मृतसञ्जीवनी' नामक टीका लिखी जिसमें उन्होने पिंगल की विधियों को और विस्तार से वर्णन किया।
पिंगल के छन्दशास्त्र में ८ अध्याय हैं। यह सूत्र-शैली में लिखा गया है। ८वें अध्याय में ३५ सूत्र हैं। जिसमें से अन्तिम १६ सूत्र (८.२० से ८.३५ तक) संयोजिकी से सम्बन्धित हैं। केदारभट्ट द्वारा रचित वृत्तरत्नाकर में ६
==इन्हें भी देखें==
|