"ओइनवार वंश": अवतरणों में अंतर

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'''ओइनवार राजवंश''' चौदहवीं शताब्दी में [[मिथिला|मिथिला क्षेत्र]] में शासन करने वाला एक राजवंश था। यह राजवंश कला और संस्कृति के प्रसारक के रूप में जाना जाता है। इस वंश का शासनकाल लगभग १३५३१३२६ ई से १५२६ ई तक था।
 
मिथिला के कर्णाटवंशी अंतिम शासक हरिसिंह देव ने अपने योग्य मंत्री कामेश्वर झा को नवीन राजा नियुक्त किया और स्वयं नेपाल जाकर रहने लगे।
मिथिला के कर्णाटवंशी अंतिम शासक हरिसिंह देव के नेपाल पलायन के बाद करीब 30 वर्ष तक मिथिला के राजनीतिक मंच पर अराजकता तथा नृशंसता का ताण्डव होते रहा। [[फिरोजशाह तुगलक]] के प्रथम बंगाल आक्रमण के समय ओइनवार राजवंश के कामेश्वर ठाकुर को मिथिला (तिरहुत) का शासनाधिकार दे दिया गया।
 
==प्रमुख शासक==
1.'''कामेश्वर ठाकुरझा'''- १३२६- 1354१३५४ ई., अल्पकाल। आरंभिक समय में राजधानी 'ओइनी' (अब 'बैनी') गाँव।
 
2.'''भोगीश्वर (भोगेश्वर) ठाकुर''' - 1354१३५४ ई. से 1360१३६० ई. तक।
 
3.'''ज्ञानेश्वर (गणेश्वर) ठाकुर''' - 1360१३६०-1371१३७१ ई.
 
4.'''कीर्तिसिंह देव''' - 1402१४०२ ई. से 1410१४१० ई. तक। इनके समय तक मिथिला राज्य विभाजित था। दूसरे भाग पर भवसिंह का शासन था।
 
5.'''भवसिंह देव (भवेश)''' - 1410१४१० ई., अल्पकाल। ये अविभाजित मिथिला के प्रथम ओइनवार शासक हुए। इस रूप में इनका शासन अल्पकाल के लिए ही रहा। इन्होंने अपने नामपर भवग्राम (वर्तमान मधुबनी जिले में) बसाया था। इनके समय में मिथिला के किंवदंती पुरुष बन चुके गोनू झा विद्यमान थे। महान् दार्शनिक [[गंगेश उपाध्याय]] भी इसी समय के रत्न थे।
 
6.'''देव सिंह''' - (1410१४१०-1413१४१३ ई) इन्होंने ओइनी तथा भवग्राम को छोड़कर अपने नाम पर दरभंगा के निकट वाग्मती किनारे 'देवकुली' (देकुली) गाँव बसाकर वहाँ राजधानी स्थापित किया।
 
7.'''शिवसिंह देव''' (विरुद 'रूपनारायण')- 1413१४१३ से 1416१४१६ ई तक। (मात्र 3 वर्ष 9 महीने) इन्होंने अपनी राजधानी 'देकुली' से हटाकर 'गजरथपुर'/गजाधरपुर/शिवसिंहपुर में स्थापित किया, जो दरभंगा से 4-5 मील दूर दक्षिण-पूर्व में है। दरभंगा में भी वाग्मती किनारे इन्होंने किला बनवाया था। उस स्थान को आज भी लोग किलाघाट कहते हैं। 1416१४१६ ई.(पूर्वोक्त मत से 1406१४०६ ई.) में जौनपुर के सुलतान इब्राहिम शाह की सेना गयास बेग के नेतृत्व में मिथिला पर टूट पड़ी थी। दूरदर्शी महाराज शिवसिंह ने अपने मित्रवत् कविवर विद्यापति के संरक्षण में अपने परिवार को नेपाल-तराई में स्थित राजबनौली के राजा पुरादित्य 'गिरिनारायण' के पास भेज दिया। स्वयं भीषण संग्राम में कूद पड़े। मिथिला की धरती खून से लाल हो गयी। शिवसिंह का कुछ पता नहीं चल पाया।[18] उनकी प्रतीक्षा में 12१२ वर्ष तक लखिमा देवी येन-केन प्रकारेण शासन सँभालती रही।
 
8.'''लखिमा रानी''' - 1416-17 से 1428-29 तक। अत्यन्त दुःखद समय के बावजूद कविवर [[विद्यापति]] के सहयोग से शासन-प्राप्ति एवं संचालन।