"भारतीय आम": अवतरणों में अंतर

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फ़्रायर (सन् 1673) ने आम को आडू और खूबानी से भी रुचिकर कहा है और हैमिल्टन (सन् 1727) ने गोवा के आमों को बड़े, स्वादिष्ट तथा संसार के फलों में सबसे उत्तम और उपयोगी बताया है। भारत के निवासियों में अति प्राचीन काल से आम के उपवन लगाने का प्रेम है। यहाँ की उद्यानी कृषि में काम आनेवाली भूमि का 70 प्रतिशत भाग आम के उपवन लगाने के काम आता है। स्पष्ट है कि भारतवासियों के जीवन और अर्थव्यवस्था का आम से घनिष्ठ संबंध है। इसके अनेक नाम जैसे सौरभ, रसाल, चुवत, टपका, सहकार, आम, पिकवल्लभ आदि भी इसकी लोकप्रियता के प्रमाण हैं। इसे "कल्पवृक्ष" अर्थात् मनोवाछिंत फल देनेवाला भी कहते हैं [[शतपथ ब्राह्मण]] में आम की चर्चा इसकी वैदिक कालीन तथा अमरकोश में इसकी प्रशंसा इसकी बुद्धकालीन महत्ता के प्रमाण हैं। मुगल सम्राट् अकबर ने "लालबाग" नामक एक लाख पेड़ोंवाला उद्यान दरभंगा के समीप लगवाया था, जिससे आम की उस समय की लोकप्रियता स्पष्ट हैं। भारतवर्ष में आम से संबंधित अनेक लोकगीत, आख्यायिकाएँ आदि प्रचलित हैं और हमारी रीति, व्यवहार, हवन, यज्ञ, पूजा, कथा, त्योहार तथा सभी मंगलकायाँ में आम की लकड़ी, पत्ती, फूल अथवा एक न एक भाग प्राय: काम आता है। आम के बौर की उपमा वसंतद्तसे तथा मंजरी की मन्मथतीर से कवियों ने दी है। उपयोगिता की दृष्टि से आम भारत का ही नहीं वरन् समस्त उष्ण कटिबंध के फलों का राजा है और बहुत तरह से उपयोग होता है। कच्चे फल से चटनी, खटाई, अचार, मुरब्बा आदि बनाते हैं। पके फल अत्यंत स्वादिष्ट होते हैं और इन्हें लोग बड़े चाव से खाते हैं। ये पाचक, रेचक और बलप्रद होते हैं।
 
[[कालिदास]] ने इसका गुणगान किया है, सिकंदर ने इसे सराहा और मुग़ल सम्राट [[अकबर]] ने दरभंगा में इसके एक लाख पौधे लगाए। उस बाग़ को आज भी लाखी बाग़ के नाम से जाना जाता है। वेदों में आम को विलास का प्रतीक कहा गया है। कविताओं में इसका ज़िक्र हुआ और कलाकारों ने इसे अपने कैनवास पर उतारा। भारत में गर्मियों के आरंभ से ही आम पकने का इंतज़ार होने लगता है। आँकड़ों के मुताबिक इस समय भारत में प्रतिवर्ष एक करोड़ टन आम पैदा होता है जो दुनिया के कुल उत्पादन का ५२ प्रतिशत है। आम भारत का राष्ट्रीय फल भी है।<ref>{{cite web|url=http://www.hindinest.com/bachpan/adkj.htm|title=अपने देश को जानो|accessmonthdayaccess-date=[[४ अप्रैल]]|accessyear= [[२००९]]|format=एचटीएम|publisher=हिन्दी नेस्ट|language=}}</ref> [[अन्तर्राष्ट्रीय आम महोत्सव, दिल्ली]] में इसकी अनेक प्रजातियों को देखा जा सकता है।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.co.uk/hindi/southasia/030509_mango_sz.shtml|title= आम फलों का राजा|accessmonthdayaccess-date=[[४ अप्रैल]]|accessyear= [[२००९]]|format=एसएचटीएमएल|publisher=बीबीसी|language=}}</ref>
भारतीय प्रायद्वीप में आम की कृषि हजारों वर्षों से हो रही है।<ref name=EE>Ensminger 1994: 1373</ref> यह ४-५ ईसा पूर्व पूर्वी एशिया में पहुँचा। १० वीं शताब्दी तक यह पूर्वी अफ्रीका पहुँच चुका था।<ref name=EE/> उसके बाद आम [[ब्राजील]], वेस्ट इंडीज और [[मैक्सिको]] पहुँचा क्योंकि वहाँ की जलवायु में यह अच्छी तरह उग सकता था।<ref name=EE/> १४वीं शताब्दी में मुस्लिम यात्री [[इब्नबतूता]] ने इसकी [[सोमालिया]] में मिलने की पुष्टि की है।<ref>{{cite book |author=Watson, Andrew J. |title=Agricultural innovation in the early Islamic world: the diffusion of crops and farming techniques, 700-1100 |publisher=Cambridge University Press |location=Cambridge, UK |year=1983 |pages=72–3 |isbn=0-521-24711-X }}</ref> [[तमिलनाडु]] के [[कृष्णगिरि जिला|कृष्णगिरि]] के आम बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं और दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं।
 
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उद्यान में लगाए जानेवाले आम की लगभग 1,400 जातियों से हम परिचित हैं। इनके अतिरिक्त कितनी ही जंगली और बीजू किस्में भी हैं। गंगोली आदि (सन् 1955) ने 210 बढ़िया कलमी जातियों का सचित्र विवरण दिया है। विभिन्न प्रकार के आमों के आकार और स्वाद में बड़ा अंतर होता है। कुछ बेर से भी छोटे तथा कुछ, जैसे सहारनपुर का हाथीझूल, भार में दो ढाई सेर तक होते हैं। कुछ अत्यंत खट्टे अथवा स्वादहीन या चेप से भरे होते हैं, परंतु कुछ अत्यंत स्वादिष्ट और मधुर होते हैं।
 
भारत में उगायी जाने वाली आम की किस्मों में दशहरी, [[लंगड़ा आम|लंगड़ा]], चौसा, फज़ली, बम्बई ग्रीन, बम्बई, अलफ़ॉन्ज़ो, बैंगन पल्ली, हिम सागर, केशर, किशन भोग, मलगोवा, नीलम, सुर्वन रेखा, वनराज, जरदालू हैं। नई किस्मों में, मल्लिका, आम्रपाली, रत्ना, अर्का अरुण, अर्मा पुनीत, अर्का अनमोल तथा दशहरी-५१ प्रमुख प्रजातियाँ हैं। उत्तर भारत में मुख्यत: गौरजीत, बाम्बेग्रीन, दशहरी, लंगड़ा, चौसा एवं लखनऊ सफेदा प्रजातियाँ उगायी जाती हैं।<ref>{{cite web |url=http://opaals.iitk.ac.in/zcu/Dhaura/uddhan.html|title= उद्यान विज्ञान|accessmonthdayaccess-date=[[४ अप्रैल]]|accessyear= [[२००९]]|format=एचटीएमएल|publisher=विज्ञान केन्द्र धुरा, उन्नाव|language=}}</ref>
[[File:Amrapali Mango (1).jpg|thumb|300px|आम्रपाली [[आम]]]]
 
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आधुनिक अनुसंधानों के अनुसार आम के फल में विटामिन ए और सी पाए जाते हैं। अनेक वैद्यों ने केवल आम के रस और दूध पर रोगी को रखकर क्षय, संग्रहणी, श्वास, रक्तविकार, दुर्बलता इत्यादि रोगों में सफलता प्राप्त की है। फल का छिलका गर्भाशय के रक्तस्राव, रक्तमय काले दस्तों में तथा मुँह से बलगम के साथ रक्त जाने में उपयोगी है। गुठली की गरी का चूर्ण (मात्रा 2 माश) श्वास, अतिसार तथा प्रदर में लाभदायक होने के सिवाय कृमिनाशक भी है।
 
पका आम बहुत स्वास्थ्यवर्धक, पोषक, शक्तिवर्धक और चरबी बढ़ाने वाला होता है। आम का मुख्य घटक शर्करा है, जो विभिन्न फलों में ११ से २० प्रतिशत तक विद्यमान रहती है। शर्करा में मुख्यतया इक्षु शर्करा होती है, जो कि आम के खाने योग्य हिस्से का ६.७८ से १६.९९ प्रतिशत है। ग्लूकोज़ व अन्य शर्करा १.५३ से ६.१४ प्रतिशत तक रहती है। अम्लों में टार्टरिक अम्ल व मेलिक अम्ल पाया जाता है, इसके साथ ही साथ साइट्रिक अम्ल भी अल्प मात्रा में पाया जाता है। इन अम्लों का शरीर द्वारा उपयोग किया जाता है और ये शरीर में क्षारीय संचय बनाए रखने में सहायक होते हैं। आम के अन्य घटक इस प्रकार हैं- प्रोटीन ९.६, वसा ०.१, खनिज पदार्थ ०.३ रेशा, १.१ फॉसफोरस ०.०२ और लौह पदार्थ ०.३ प्रतिशत। नमी की मात्रा ८६ प्रतिशत है। आम का औसत ऊर्जा मूल्य प्रति १०० ग्राम में लगभग ५० कैलोरी है। मुंबई की एक किस्म का औसत ऊर्जा मूल्य प्रति १०० ग्राम ९० कैलोरी है। यह विटामिन ‘सी’ के महत्त्वपूर्ण स्रोतों में से एक है और इसमें विटामिन ‘ए’ भी प्रचुर मात्रा में है।<ref>{{cite web |url=http://pustak.org/bs/home.php?bookid=2661|title= फलों और सब्जियों से चिकित्सा|accessmonthdayaccess-date=[[४ अप्रैल]]|accessyear= [[२००९]]| format=पीएचपी|publisher=भारतीय साहित्य संग्रह|language=}}</ref>
 
== आम पर लगने वाले रोग ==