"ऊष्मा धारिता": अवतरणों में अंतर

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किसी तन्त्र (सिस्टम) की ऊर्जा के व्यंजक में जितने वर्ग (स्क्वेयर) पद आते हैं उनकी संख्या उस समुदाय की स्वतंत्रता संख्या (डिग्रीज़ ऑव फ्रीडम) कहलाती है। एकपरमाणुक आदर्श गैसों में यह संख्या ३ प्रति अणु और ठोस तत्वों में यह ६ प्रति परमाणु होती है।
 
डयूलांग और पेटिट के नियम की निम्न ताप पर विफलता को [[आइंस्टाइन]] ने १९०७ में [[प्लांक]] के [[क्वांटम सिद्धांत]] के आधार पर समझाने का प्रयास किया। इस सिद्धान्त के अनुसार कोई भी n आवृत्तिवाला दोलक ऊर्जा का शोषण अथवा उत्सर्जन केवल '''h n''' बंडलों अर्थात् क्वांटमों में ही करता है। यहाँ '''h''' को प्लांक हैं।स्थिरांक है। आइंस्टाइन ने सब परमाणुओं की आवृत्तियाँ एक ही मानकर पारमाण्वीय उष्मा की गणना की और प्रायोगिक परिणामों को मोटे रूप से समझाया।
 
आइंस्टाइन ने स्वयं ही स्वीकार किया था कि उसका सब परमाणु की एक ही आवृत्ति मानना उचित नहीं था। [[डिबाई]] ने संपूर्ण ठोस को अविरत (कंटिनुअस) मानकर गणना की कि यह ठोस कुल कितने प्रकार से दोलन कर सकता है। अविरत ठोस में यह संख्या अनन्त होती है और इस कारण पारमाण्वीय उष्मा भी अनन्त ही होनी चाहिए। इससे बचने के लिए डिबाई ने यह निराधार कल्पना की कि एक विशिष्ट आवृत्ति से ऊपर किसी दोलन की सम्भावना नहीं। यह आवृत्ति ऐसी होती है कि उससे नीचेवाली समस्त आवृत्तियों की कुल संख्या ३N होती है।