"दण्ड": अवतरणों में अंतर

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: ''तस्यसर्वाणि भूतानि स्थावराणि चराणि च ।
: ''भयाद भोगायकल्पन्तेभयाद्भोगायकल्पन्ते स्वधर्मान्न चलन्ति च ॥
अर्थात, दण्ड वह विधान है, जिसके भय से सभी प्राणी अपना-अपना भोग करने में समर्थ होते हैं, अन्यथा बलवान व्यक्ति दुर्बल व्यक्ति के धन, पत्नी आदि का ग्रहण कर लेता। इसी प्रकार वृक्ष आदि स्थावरों को काट कर भी वह दूसरों को न भोगने देता। राजा के डर से सज्जन भी नित्य नैमित्तिक आदि नियमों का पालन करते है। [[याज्ञवल्क्य]] के अनुसार दुराचारियों अर्थात अपराधियों का दमन करना ही दण्ड है। मनुष्य को प्रमाद से बचाने तथा उसके धन की रक्षा करने के लिए संसार में जो मर्यादा स्थापित की गयी है दण्ड उसी का नाम है। इससे स्पष्ट होता है कि दण्ड वह विधान है जो सामाजिक सम्बन्धों, सम्पत्ति के अधिकारों एवं परम्पराओं का सही ढंग से परिपालन करवाता था। स्पष्ट है, भारतीय राजनीतिशास्त्र में दंड का अत्यधिक महत्व था जो वास्तविक और प्रतीकात्मक, दोनों स्वरूपों से व्यक्त होता था।
 
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