"शान्ति": अवतरणों में अंतर

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[[श्रेणी:शान्ति|*]]
सम्पूर्ण मनुष्यों की प्रति करूणा भाव ह्रदय में उत्पन्न हो जाने पर असिम् शांति प्राप्ति हो जाती है ।
 
करूणा भाव ह्रदय में उत्पन्न करने का मार्ग __
घृणा व भेदभाव का त्याग कर देना चाहिए अन्यथा क्रोध उत्पन्न होता है जिसे मन अशांत होता है ।
॰सभी मनुष्यों का धर्म संस्कृति उनके चेतना के कारण है जो प्रकृति से स्वतः ही निर्धारित है इसलिए धर्म व संस्कृति भेदभाव का त्याग कर देना चाहिए।
॰ सभी मनुष्य अपना कर्म कर रहे है दुष्ट मनुष्य अश्लीलता भ्रष्टाचार हत्या अशांति व अराजकता फैलाने के लिए विश्व में जन्म लेते है महात्मा शालीनता शिष्टाचार भाईचारा अहिंसा फैलाने के लिए जन्म लेते है वही सामान्य मनुष्य संसारिक जीवन जीने के लिए जन्म लेते है जिसमें परिवार मित्रों व प्रियजन के साथ अपने धर्म संस्कृति का अनुसरण करते जीते है और वही क्षेत्र राष्ट्र प्रणाली के नियम का पालन करते जीवन जीने के लिए जन्म लिये है ।
 
अहंकार का त्याग ____ सभी मनुष्य एक समान है उनमें बुध्दि का स्तर जन्मों अनुसार घटता व बढ़ता सभी मनुष्य का रूप रंग परिवर्तित है किसी जन्म में अत्याधिक सुन्दर किसी जन्म में सामान्य किसी जन्म में सौन्दर्यहीन रहता है सभी मनुष्य सम्पत्ति प्रसिध्द जन्मों अनुसार बढाता व घटाता रहता है इसलिए ना ज्ञान का ना रूप का ना प्रसिध्द का ना सम्पत्ति का अहंकार उचित है ।
 
चरित्रवान व चरित्रहीन जैसे भावना का त्याग ___
प्रेम सम्बन्ध __ विश्व में तीन तरहा के प्रेम प्रसंग है कोई जन्म जन्मांतर तक के जीवनसाथी है कुछ दो तीन चार पांच दस बीस कुछ सैकड़ों के अलग अलग जन्म के जीवन साथी इसलिए आकर्षण स्वभाविक है विश्व में किसी से प्रेम सम्बन्ध स्थापित करने का नियम पूर्व निर्धारित है इसलिए ना कोई पवित्र है ना कोई चरित्रहीन ।
कुछ अप्राकृतिक है पुरूष पुरूष व स्त्री व स्त्री में वहां भी पूर्व निर्धारित है ।
 
मोह का त्याग ___ सभी मनुष्यों के परिवारिक सम्बन्ध मित्रता के सम्बन्ध जन्म के साथ बदलते रहते है मात्र कुछ मनुष्य ही हर जन्म के परिवारिक सम्बन्ध व जीवनसाथी है ।
 
लोभ का त्याग ____ मनुष्य को अपने आवश्यकता की पूर्ति के बाद जितने भी वस्तु को एकत्रित करता है वहां उसके जीवन में अशांति उत्पन्न कर देती है विश्व में प्रसिद्ध की चाह व्यर्थ हे क्योकिं मृत्यु पश्चात् सभी मनुष्य के कर्म भूल दिये जाते है सम्पत्ति पद प्रसिध्द प्राप्त के लिए सबसे पहले धैर्यवान होना अनिवार्य फिर विश्व में पद प्रतिष्ठा मिलने व ना मिलने पर ह्रदय में शांति रहती है ।
 
संसार में दुख सुख व सामान्य मनोस्थित के कारण जीवन संचालित है इसलिए दुख सुख व सामान्य मनोस्थित के जाल ना फंसकर शांतिपूर्ण रहना चाहिए।
 
ह्रदय में जिन लोगों के प्रति सच्चा प्रेम व घृणा की भाव है वही प्रेम व घृणा स्वयं को वापस मिलता है ।