"आजीविका": अवतरणों में अंतर

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*'''7. सरकारी हस्तक्षेप न करने की नीति की अस्वीकृतिः''' केन्ज के अनुसार रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की यह मान्यता वास्तविक नहीं है कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में बिना सरकारी हस्तक्षेप के आर्थिक शक्तियां स्वयं ही बेरोजगारी को दूर करने में सफल होगी। 1930 की महामन्दी के अनुभवों के आधार पर केन्ज ने बेरोजगारी के समाधान के लिए परम्परावादी अर्थशास्त्रियों की सरकारी हस्तक्षेप न करने की नीति को अस्वीकार कर दिया।
 
===केन्ज का रोजगार सिद्धान्त===
केन्ज ने परम्परावादी रोजगार सिद्धान्त के इस निष्कर्ष का विरोध किया है कि पूर्ण रोजगार की स्थिति एक पूंजीवादी विकसित अर्थव्यवस्था की सामान्य स्थिति है। उनके अनुसार एक अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी की स्थिति में भी सन्तुलन की अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है।
 
केन्ज ने अपने रोजगार सिद्धान्त में बेरोजगारी का मुख्य कारण प्रभावपूर्ण मांग में होने वाली कमी को माना है। प्रभावपूर्ण मांग कुल मांग का वह स्तर है जिस पर वह कुल पूर्ति के बराबर होती है। इस प्रकार प्रभावपूर्ण मांग को बढ़ाकर बेरोजगारी को दूर किया जा सकता है। केन्ज का यह विचार था कि बेरोजगारी को दूर करके पूर्ण रोजगार की स्थिति को प्राप्त करने के लिये सरकारी हस्तक्षेप आवश्यक है।
 
केन्ज के रोजगार सिद्धान्त के अनुसार अल्पकाल में राष्ट्रीय आय या उत्पादन का स्तर पूर्ण रोजगार के स्तर से कम या उसके बराबर निर्धारित हो सकता है। इसका कारण यह है कि अर्थव्यवस्था में कोई ऐसी स्वचालित व्यवस्था नहीं होती जो सदैव ही पूर्ण रोजगार स्तर को कायम रख सके। केन्ज के अनुसार, अल्पकाल में राष्ट्रीय आय के अधिक होने का अर्थ है कि रोजगार की अधिक मात्रा और राष्ट्रीय आय के कम होने का अर्थ है रोजगार की कम मात्रा। इस प्रकार केन्ज का सिद्धान्त रोजगार निर्धारण का सिद्धान्त भी है और राष्ट्रीय आय निर्धारण का सिद्धान्त भी है।
 
डिल्लर्ड के अनुसार, "केन्ज के रोजगार सिद्धान्त का तार्किक आरम्भ बिन्दु प्रभावपूर्ण मांग का सिद्धान्त है।"
 
केन्ज के रोजगार सिद्धान्त में '''प्रभावपूर्ण मांग''' महत्वपूर्ण तत्व है। प्रभावपूर्ण मांग और उसके तत्वों को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता हैः
 
''' प्रभावपूर्ण मांग''' : प्रभावपूर्ण मांग कुल मांग और कुल पूर्ति पर निर्भर करती है अर्थात् कुल मांग और कुल पूर्ति के सन्तुलन को दिखाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि कुल मांग के केवल उस स्तर को प्रभावपूर्ण मांग कहा जाएगा जिस पर वह कुल पूर्ति के बराबर हो।
 
''' कुल पूर्ति''' : कुल पूर्ति से अभिप्राय रोजगार के विभिन्न स्तरों पर मिलने वाली कुल पूर्ति कीमत से है जो उत्पादकों को प्राप्त होती है ताकि उत्पादन के विभिन्न स्तर को कायम रखा जा सके। अल्पकाल में कुल पूर्ति स्थिर रहती है।
 
''' कुल मांग''' : कुल मांग से अभिप्राय उस तालिका से है जो रोजगार के विभिन्न स्तरों पर मिलने वाली उस कुल मांग कीमत को दिखाती है जिसकी सम्भावना है। केन्ज के अनुसार कुल मांग को दो भागों में बांट सकते हैः उपभोग और निवेश
 
''' उपभोग''' : उपभोग वस्तुओं पर जो व्यय किया जाता है उसे उपभोग व्यय कहा जाता है।उपभोग व्यय मुख्य रुप से दोतत्वों अर्थात् उपभोग प्रवृत्ति और राष्ट्रीय आय पर निर्भर करता है।
 
''' निवेश''' : पूंजीगत वस्तुओं जैसे मशीनों आदि पर जो व्यय किया जाता है उसे निवेश कहते है। अर्थात् निवेश से अभिप्राय उन खर्चों से है जिनके द्वारा पूंजी में वृद्धि होती है। निवेश मुख्य रुप से दो तत्वों अर्थात् ब्याज की दर और पूंजी की सीमान्त उत्पादकता पर निर्भर करता है।
 
====केन्ज के रोजगार सिद्धान्त की आलोचनाएं====
केन्ज के रोजगार सिद्धान्त की मुख्य आलोचनाएं इस प्रकार से हैः
 
1. केन्ज के अनुसार एक अर्थव्यवस्था में सन्तुलन की स्थिति पूर्ण रोजगार से कम स्तर पर भी हो सकती है। अनेक अर्थशास्त्रियों ने केन्ज की इस धारणा की आलोचना की है।
 
2. केन्ज का रोजगार सिद्धान्त एक अल्पकालीन विश्लेषण है। यह दीर्घकाल से सम्बन्ध नहीं रखता है।
 
3. केन्ज का रोजगार सिद्धान्त पूर्ण प्रतियोगिता ही अवास्तविक धारणा पर आधारित है।
 
4. केन्ज का रोजगार सिद्धान्त एक सामान्य सिद्धान्त नहीं है क्योंकि यह सिद्धान्त प्रत्येक प्रकार की समस्या का न तो समाधान करता है और न ही प्रत्येक अर्थव्यवस्था में लागू होता है।
 
5. केन्ज का रोजगार सिद्धान्त बन्द अर्थव्यवस्था की अवास्तविक मान्यता पर आधारित है।
 
6. केन्ज ने ब्याज की दर को केवल एक मौद्रिक घटना माना है। लेकिन हेन्सन, हिक्स आदि के अनुसार ब्याज की दर पर वास्तविक तथा मौद्रिक दोनों प्रकार के तत्वों का प्रभाव पड़ता है।
 
7. केन्ज के रोजगार सिद्धान्त में त्वरक धारणा का अभाव है। इस कारण से केन्ज का सिद्धान्त पूर्ण नहीं माना जा सकता।
 
== इन्हें भी देखें ==