"अग्निपुराण": अवतरणों में अंतर

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== अध्यायानुसार विचार ==
अग्निपुराण में वर्ण्य विषयों पर सामान्य दृष्टि डालने पर भी उनकी विशालता और विविधता पर आश्चर्य हुए बिना नहीं रहता। आरंभआरम्भ में [[दशावतार]] (अ. १-१६) तथा [[सृष्टि]] की उत्पत्ति (अ. १७-२०) के अनंतरअनन्तर [[मंत्र]]शास्त्र तथा [[वास्तुशास्त्र]] का सूक्ष्म विवेचन है (अ. २१-१०६) जिसमें मंदिरमन्दिर के निर्माण से लेकर देवता की प्रतिष्ठा तथा उपासना का पुखानुपुंख विवेचन है। [[भूगोल]] (अ. १०७-१२०), ज्योति शास्त्र तथा वैद्यक (अ. १२१-१४९) के विवरण के बाद [[राजनीति]] का विस्तृत वर्णन किया गया है जिसमें अभिषेक, साहाय्य, संपत्तिसम्पत्ति, सेवक, [[दुर्ग]], [[राजधर्म]] आदि आवश्यक विषय निर्णीत हैं (अ. २१९-२४५)। [[धनुर्वेद]] का विवरण बड़ा ही ज्ञानवर्धक है जिसमें प्राचीन अस्त्र-शस्त्रों तथा सैनिक शिक्षा पद्धति का विवेचन विशेष उपादेय तथा प्रामाणिक है (अ. २४९-२५८)। अंतिम भाग में [[आयुर्वेद]] का विशिष्ट वर्णन अनेक अध्यायों में मिलता है (अ. २७९-३०५)। [[छंदशास्त्र]], [[अलंकार शास्त्र]], [[व्याकरण]] तथा [[शब्दकोश|कोश]] विषयक विवरणों के लिए अध्याय लिखे गए हैं।
 
{|class='wikitable'
* '''११-१६ ''' : अवतार कथाएँ
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* '''१८-२० ''' : वंशों का वर्णन, सृष्टि।
! अध्याय !! वर्णित विषय
* '''२१-१०३ ''' : विविध देवताओं की मूर्तियों का परिमाण, मूर्ति लक्षण, देवता-प्रतिष्ठा, वस्तुपूजा तथा जीर्णोद्धार।
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* '''१०४- १४९ ''' : भुवनकोश (भूमि आदि लोकों का वर्णन), कुछ पवित्र नदियों का माहात्म्य, ज्योतिश्शास्त्र सम्बन्धी विचार, नक्षत्रनिर्णय, युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए उच्चारण किए जाने योग्य मन्त्र, चक्र तथा अनेक तान्त्रिक विधान।
| '''१''' || उपोद्घात, विष्णु अवतार वर्णन
* '''१५०''' : - मन्वन्तर।
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* '''१५१ - १७४ ''' : वर्णाश्रम धर्म, प्रायश्चित तथा श्राध्दं।
| '''२-४''' || मत्स्य, कूर्म, वराह अवतार
* '''१७५ - २०८''' : व्रत की परिभाषा, पुष्पाध्याय (विविध पुष्पों का पूजायोग्यत्व तथा पूजा-अयोगत्व), पुष्प द्वारा पूजा करने का फल।
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* '''२०९ - २१७''' : दान का माहात्म्य, विविध प्रकार के दान, मन्त्र का माहात्म्य, गायत्रीध्यानपद्धति, शिवस्त्रोत्र।
| '''५-१०''' || रामायण एवं इसके काण्डों का संक्षिप्त कथन
* '''२१८ - २४२''' : राज्य सम्बन्धी विचार – राजा के कर्तव्य। अभिषेक विधि – युद्धक्रमा, रणदीक्षा, स्वप्नशुकनादि विचार, दुर्गनिर्माणविधि और दुर्ग के भेद।
 
* '''२४३-२४४''' : पुरुषों और स्त्रियों के शरीर के लक्षण।
| '''११-१६ ''' || अवतार कथाएँ
* '''२४५''' : चामर, खड्ग, धनुष के लक्षण।
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* '''२४६''' : - रत्नपरीक्षा।
| '''१८-२० ''' || वंशों का वर्णन, सृष्टि
* '''२४७''' : - वास्तुलक्षण।
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* '''२४८''' : - पुष्पादिपूजा के फल।
| '''२१-१०३ ''' || विविध देवताओं की मूर्तियों का परिमाण, मूर्ति लक्षण, देवता-प्रतिष्ठा, वस्तुपूजा तथा जीर्णोद्धार
* '''२४९-२५२''' : [[धनुर्वेद]]।
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* '''२५३''' : -२५८ अधिकरण (न्यायालय) के व्यवहार।
| '''१०४- १४९ ''' || भुवनकोश (भूमि आदि लोकों का वर्णन), कुछ पवित्र नदियों का माहात्म्य, ज्योतिश्शास्त्र सम्बन्धी विचार, नक्षत्रनिर्णय, युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए उच्चारण किए जाने योग्य मन्त्र, चक्र तथा अनेक तान्त्रिक विधान
* '''२५३-२७८''' : चतुर्णां वेदानां मन्त्रप्रयोगैर्जायमानानि विविधानि फलानि, वेदशाखानां विचारः, राज्ञां वंशस्य वर्णनम्।
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* '''२७९-२८१''' : [[रसायुर्वेद]] की कुछ प्रक्रियाएँ।
| '''१५०''' || - मन्वन्तर
* '''२८२-२२९ ''' : [[वृक्षायुर्वेद]], गजचिकित्सा, गजशान्ति, अश्वशान्ति (हाथी और घोड़ों को कोई भी रोग न हो, इसके लिए उपाय)
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* '''२९८ -३७२ ''' : विविध देवताओं की मन्त्र-शान्ति-पूजा और देवालय महात्म्य।
| '''१५१ - १७४ ''' || वर्णाश्रम धर्म, प्रायश्चित तथा श्राध्दं
* '''२९८-३७२ ''' : छन्द शास्त्र आदि।
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* '''३३७-३४७ ''' : साहित्य-रस-अलंकार-काव्यदोष आदि
| '''१७५ - २०८''' || व्रत की परिभाषा, पुष्पाध्याय (विविध पुष्पों का पूजायोग्यत्व तथा पूजा-अयोगत्व), पुष्प द्वारा पूजा करने का फल
* '''३४८- ''' : एकाक्षरी कोश।
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* '''३४९-३५९ ''' : व्याकरण सम्बन्धी विविध विषय।
| '''२०९ - २१७''' || दान का माहात्म्य, विविध प्रकार के दान, मन्त्र का माहात्म्य, गायत्रीध्यानपद्धति, शिवस्त्रोत्र
* '''४६०-३६७ ''' : पर्याय शब्दकोश।
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* '''३६८-३६९ ''' : प्रलय का निरुपण।
| '''२१८ - २४२''' || राज्य सम्बन्धी विचार – राजा के कर्तव्य। अभिषेक विधि – युद्धक्रमा, रणदीक्षा, स्वप्नशुकनादि विचार, दुर्गनिर्माणविधि और दुर्ग के भेद
* '''३७०- ''' : शारीरकं (शरीर और उसके अंगों का [[आयुर्वेद]]सम्मत निरुपण)।
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* '''३७१- ''' : नरक निरुपण।
| '''२४३-२४४''' || पुरुषों और स्त्रियों के शरीर के लक्षण
* '''३७२-३७६ ''' : योगशास्त्र प्रतिपाद्य विचार।
|-
* '''३७७-३८० ''' : वेदान्तज्ञान।
| '''२४५''' || चामर, खड्ग, धनुष के लक्षण
* '''३८१- ''' : गीतासार।
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* '''३८२- ''' : यमगीता।
| '''२४६''' || - रत्नपरीक्षा
* '''३८३- ''' : अग्निपुराण का महात्म्य।
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| '''२४७''' || - वास्तुलक्षण
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| '''२४८''' || - पुष्पादिपूजा के फल
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| '''२४९-२५२''' || [[धनुर्वेद]]
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| '''२५३''' || -२५८ अधिकरण (न्यायालय) के व्यवहार
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| '''२५३-२७८''' || चतुर्णां वेदानां मन्त्रप्रयोगैर्जायमानानि विविधानि फलानि, वेदशाखानां विचारः, राज्ञां वंशस्य वर्णनम्
|-
| '''२७९-२८१''' || [[रसायुर्वेद]] की कुछ प्रक्रियाएँ
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| '''२८२-२२९ ''' || [[वृक्षायुर्वेद]], गजचिकित्सा, गजशान्ति, अश्वशान्ति (हाथी और घोड़ों को कोई भी रोग न हो, इसके लिए उपाय)
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| '''२९८ -३७२ ''' || विविध देवताओं की मन्त्र-शान्ति-पूजा और देवालय महात्म्य
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| '''२९८-३७२ ''' || छन्द शास्त्र आदि
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| '''३३७-३४७ ''' || साहित्य-रस-अलंकार-काव्यदोष आदि
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| '''३४८- ''' || एकाक्षरी कोश
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| '''३४९-३५९ ''' || व्याकरण सम्बन्धी विविध विषय
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| '''४६०-३६७ ''' || पर्याय शब्दकोश
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| '''३६८-३६९ ''' || प्रलय का निरुपण
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| '''३७०- ''' || शारीरकं (शरीर और उसके अंगों का [[आयुर्वेद]]सम्मत निरुपण)
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| '''३७१- ''' || नरक निरुपण
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| '''३७२-३७६ ''' || योगशास्त्र प्रतिपाद्य विचार
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| '''३७७-३८० ''' || वेदान्तज्ञान
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| '''३८१- ''' || गीतासार
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| '''३८२- ''' || यमगीता
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| '''३८३- ''' || अग्निपुराण का महात्म्य
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== बाहरी कडियाँ ==