"ट्राँसफार्मर": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:WeldingTransformer-1.63.png|thumb|250px|एक छोटे ट्रांसफॉर्मर का स्वरूप]]
'''ट्रान्सफार्मर''' या '''परिणामित्र''' एक [[विद्युत मशीन|वैद्युत मशीन]] है जिसमें कोई चलने या घूमने वाला अवयव नहीं होता। [[विद्युत उपकरण|विद्युत उपकरणों]] में सम्भवतः ट्रान्सफार्मर सर्वाधिक व्यापक रूप से प्रयुक्त विद्युत साषित्र (अप्लाएन्स) है। यह किसी एक विद्युत [[परिपhhhhविद्युत परिपथ]] (circuit) से अन्य परिपथ में विद्युत प्रेरण द्वारा परस्पर जुडे हुए चालकों के माध्यम से विद्युत उर्जा स्थान्तरित करता है। ट्रांसफार्मर केवल [[प्रत्यावर्ती धारा]] या विभवान्तर के साथ कार्य कर सकता है, एकदिश (direct) के साथ नहीं। ट्रांसफॉर्मर एक-फेजी, तीन-फेजी या बहु-फेजी हो सकते है। यह सभी विद्युत मशीनों में सर्वाधिक दक्ष (एफिसिएंट) मशीन है। आधुनिक युग में परिणामित्र वैद्युत् तथा इलेक्ट्रॉनी उद्योगों का अभिन्न अंग बन गया है।
 
किसी ट्रान्सफार्मर में एक, दो या अधिक वाइन्डिंग हो सकती हैं। दो वाइंडिंग वाले ट्रान्सफार्मर के प्राथमिक (प्राइमरी) एवं द्वितियक (सेकेण्डरी) वाइण्डिंग के फेरों (टर्न्स) की संख्या एवं उनके विभवान्तरों में निम्नलिखित सम्बन्ध होता है:
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== उपयोग ==
ट्रान्सफार्मर का मुख्य उपयोग विद्युत शक्ति को अधिक वोल्टता से कम वोल्टता में या कम वोल्टता से अधिक वोल्टता में बदलना है (जहाँ, जैसी आवश्यकता हो) यह धारा के मान में भी परिवर्तन करता है। यह जब वोल्टता को स्टेप अप करता है तब धारा कम करता है और जब वोल्टेज स्टेप डाउन करता है तब धारा बढ़ाता है। ऐसा करने से विद्युत उर्जा के उपयोग में सुविधा और दक्षता आती है। ध्यातव्य है कि आदर्श ट्रान्सफार्मर [[उर्जा]] या [[शक्ति]] उत्पन्न नहीं करता, न ही शक्ति का परिवर्तन (एम्प्लिफिकेशन) करता है, न ही [[आवृत्ति]] बदलता है।
 
== परिणामित्र के प्रतीक ==
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== परिचय ==
[[चित्र:Transformer winding formats.jpg|right|thumb|300px|'''कोर-टाइप तथा शेल-टाइप ट्रांसफॉर्मर''' : कोर-टाइप में कोर के चारो ओर वाइंडिंग होती है ; शेल-टाइप में वाइंडिंग के बाहर कोर होती है।]]
 
परिणामित्र सम्भवतः सर्वाधिक व्यापक रूप से उपयोग में आनेवाला वैद्युत साषित्र (appliance) है। उद्योगों में [[दिष्ट धारा]] की अपेक्षा प्रत्यावर्ती धारा को जो प्रमुखता है उसका सारा श्रेय केवल परिणामित्र को है। यह ऐसा साधित्र है जो 'निम्नवोल्टता की उच्च धारा' को 'उच्च वोल्टता की निम्न धारा' में और 'उच्च वोल्टता की निम्नधारा' को 'निम्नवोल्टता की उच्च धारा' में परिणामित करताबदलता है। बदलने का यह परिणामनकाम ऊर्जा की न्यूनतम हानि से और साधित्र में बिना किसी गतिमान भाग की सहायता के संपन्नसम्पन्न हो जाता है। उदाहरण के लिए, १०० वोल्ट की १०,००० वाट विद्युच्छक्तिविद्युत-शक्ति के परिणमन के लिए १०० ऐंपियरऐम्पियर धारा आवश्यक होती है।है परजबकि वही विद्युत-शक्ति १०,००० की वोल्टता पर भेजने के लिए केवल एक ऐंपियरऐम्पियर धारा पर्याप्त होती है। अत: दूसरी स्थिति में पहली की अपेक्षा बहुत ही कम व्यासवाला और इस कारण सस्ता चालक आवश्यक होता है।
परिणामित्र (Transformer) प्रयुक्त विद्युत् के क्षेत्र में
 
संभवत: सर्वाधिक व्यापक रूप से उपयोग में आनेवाला
 
वैद्युत साषित्र (appliance) है। उद्योगों में दिष्ट धारा की अपेक्षा प्रत्यावर्ती धारा को जो प्रमुखता है उसका सारा श्रेय केवल परिणामित्र को है। यह ऐसा साधित्र है जो निम्नवोल्टता की उच्च धारा को उच्च वोल्टता की निम्न धारा में और उच्च वोल्टता की निम्नधारा को निम्नवोल्टता की उच्च धारा में परिणामित करता है। यह परिणामन ऊर्जा की न्यूनतम हानि से और साधित्र में बिना किसी गतिमान भाग की सहायता के संपन्न हो जाता है। १०० वोल्ट की १०,००० वाट विद्युच्छक्ति के परिणमन के लिए १०० ऐंपियर धारा आवश्यक होती है। पर १०,००० की वोल्टता पर केवल एक ऐंपियर धारा पर्याप्त होती है। अत: दूसरी स्थिति में पहली की अपेक्षा बहुत ही कम व्यासवाला और इस कारण सस्ता चालक आवश्यक होता है।
 
परिणामित्र का कार्यसंचालन [[माइकेल फैरेडे]] की एक अद्वितीय खोज (१८३१ ई.) पर आधारित है, जिसके अनुसार परिपथ में प्रेरित [[विद्युतवाहक बल]] (e.m.f.), परिपथ द्वारा परिबद्ध क्षेत्र के आरपार [[चुंबकीय फ्लक्स]] (flux) के परिवर्तन की समय दर के के बराबर होता है। सरलतम रूप में परिणामित्र में दो अलग अलग कुंडलियाँ (windings) होती हैं, जिनका [[चुंबकीय परिपथ]] एक ही होता है।
 
शक्ति के प्रवाह की दिशा के अनुसार परिणामित्र के कुंडलनों का अभिनिर्धारण किया जाता है।है प्राथमिक(अर्थात कुंडलीकिस कुण्डली को पाराथमिक कहेंगे और किसे द्वितीयक)। प्राथमिक कुण्डली वह है जिसे प्रत्यावर्ती विद्युतऊर्जा के स्रोत से जोड़ते हैं और द्वितीयक कोवह है जिसे लोड (load) से। विद्युच्चुंबकीयविद्युतचुम्बकीय प्रेरण द्वारा ऊर्जा प्राथमिक कुंडलीकुण्डली से द्वितीयक कुंडलन में स्थानांतरित होती है। आदर्श परिणामित्र के क्रियासंचालन् की विशेषताएँ हैं :
*(१) कुडली में प्रतिरोध का न होना,
*(२) [[क्षरण प्रेरकत्व|क्षरण फ्लक्स]] का न होना,
*(३) [[शैथिल्य]] (hysterisis) हानि का न होना, और
*(४) [[भँवर धारा]] में हानि का न होना।
 
व्यवहारत:व्यवहारतः यह आदर्श स्थिति दुष्प्राप्य है।
 
परिणामित्र की प्राथमिक कुंडली से जुड़ी संभरण वोल्टता चुंबकीय फ्लक्स उत्पन्न करती है, जो परिणामित्र के पटलित (laminated) क्रोड से संबद्ध होती है। परिणामित्र के प्राथमिक कुंडली से जुड़ी हुई प्रत्यावर्ती वोल्टता Ep को उच्चतम चुंबकीय फ्लक्स के घनत्व Bm, पटलित क्रोड की अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल A, प्रत्यावर्ती धारा की आवृर्ती धारा की आवृत्ति f तथा प्राथमिक कुंडली में लपेटों को संख्या N1 के पदों में व्यक्त किया जाता है:
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*(घ) '''तापवृद्धि''' - औद्योगिक निर्माताओं द्वारा निर्मित परिणामित्रों में कुछ वर्णसंकेतों (colour codes) की व्यवस्था होती है, जिनसे निम्न वोल्टता, उच्च वोल्टता और केंद्र-टैप-लोड के निर्धारण में मदद मिलती है। परिणामित्र को किसी विशिष्ट परिपथ से जोड़ने के पूर्व इनका निर्धारण करना पड़ता है।
 
== परिणामित्र की दक्षता तथा नियंत्रणनियन्त्रण (रेगुलेशन)==
[[सामान्य]] लोड पर साधारण शक्ति परिणामित्र की [[दक्षता]] (efficiency) बहुत अधिक होती है, जो छोटे यूनिटोंपरिणामित्रों में ९० प्रतिशत% से लेकर बड़े परिणामित्रों में ९८ प्रतिशत% तक विचरित होती है। सामान्य: प्रतिशत में व्यक्त परिणामित्र की दक्षता को इस प्रकार अभिव्यक्त कर सकते हैं :
 
: '''दक्षता''' = आउटपुट शक्ति x 100 / इनपुट शक्ति
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== बाहरी कड़ियाँ ==
*[https://www.mechanic37.com/%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%AB%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B0.html ट्रांसफार्मर क्या है इसके भाग | प्रकार |चित्र सहित सिद्धांत]
*[https://www.mechanic37.com/types-of-transformers-in-hindi.html Transformersट्रान्सफॉर्मर के प्रकार full detail]
*[http://www.du.edu/~jcalvert/tech/transfor.htm ''Inside Transformers''] from Denver University
* [http://www.itma.co.in Indian Transformer Manufacturers Association]