"सुरेश कान्त": अवतरणों में अंतर

संदर्भ जोड़ा
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
No edit summary
पंक्ति 1:
'''सुरेश कांतकान्त''' (जन्म: १६ जून, १९५६) प्रबुद्धसमकालीन हिन्दी साहित्यकार, व्यंग्यकार, उपन्यासकार, नाटककार, कथाकार,प्रबंधन गुरु।तथा प्रबन्धन गुरु हैं।
{{स्रोतहीन|date=जून 2019}}
सुरेश कांत (जन्म: १६ जून, १९५६) प्रबुद्ध हिन्दी साहित्यकार, व्यंग्यकार, उपन्यासकार, नाटककार, कथाकार,प्रबंधन गुरु।
 
==जीवन परिचय==
जन्म एवं कैरिअर
सुरेश कान्त का जन्म १६ जून, १९५६ को [[उत्तर प्रदेश]] के [[मुजफ्फरनगर जिला|मुजफ्फरनगर जिले]] काके करौदा-हाथी ग्राम।ग्राम में हुआ। अब यह गाँव शामली जिले के बाबरी थाने में पड़ता है। यहीं 16 जून, 1956 को पैदा हुए सुरेश कांत। [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] से प्रथम श्रेणी में बी.ए. ऑनर्स (हिन्दी) और एम.ए. (हिन्दी) किया। फिर [[राजस्थान विश्वविद्यालय]], [[जयपुर]] से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा किया। राजस्थान विश्वविद्यालय से ही 'हिन्दी गद्य-लेखन में व्यंग्य और विचार' विषय पर पी.एच. डी. की। 'प्राचीन भारत में बैंकिंग का स्वरूप और शब्दावली' विषय पर शोध कर डी. लिट्. की उपाधि प्राप्त की।[1]
------------
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले का करौदा-हाथी ग्राम। अब यह गाँव शामली जिले के बाबरी थाने में पड़ता है। यहीं 16 जून, 1956 को पैदा हुए सुरेश कांत। दिल्ली विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में बी.ए. ऑनर्स (हिन्दी) और एम.ए. (हिन्दी) किया। फिर राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा किया। राजस्थान विश्वविद्यालय से ही 'हिन्दी गद्य-लेखन में व्यंग्य और विचार' विषय पर पी.एच. डी. की। 'प्राचीन भारत में बैंकिंग का स्वरूप और शब्दावली' विषय पर शोध कर डी. लिट्. की उपाधि प्राप्त की।[1]
 
सुरेश कांत [[भारतीय रिज़र्व बैंक]], मुंबई में 20 वर्षों तक सहायक महाप्रबंधक (राजभाषा) रहे। भारतीय स्टेट बैंक, मुंबई में 10 वर्षों तक उप-महाप्रबंधक (राजभाषा) रहे। सेवानिवृत्ति के बाद कांत प्रसिद्ध प्रतियोगी-पत्रिका ‘कंपीटिशन सक्सेस रिव्यू’ (नई दिल्ली) के हिन्दी संस्करण के संपादक रहे। भारत के सबसे पुराने और बड़े प्रकाशन-संस्थान हिन्द पॉकेट बुक्स प्रा.लि., नई दिल्ली /नोएडा (जिसका बाद में पेंगुइन प्रकाशन में विलय हो गया) में प्रबंध संपादक रहे। वर्तमान में सुरेश कांत पेंगुइन रैंडम हॉउस, इंडिया के संपादन- सलाहकार हैं और स्वतंत्र लेखन में रत हैं।
 
==कृतियाँ==
सुरेश कांत 50 से अधिक पुस्तकों की रचना/संपादन कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अब तक उनकी 500 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। वे एक चर्चित वक्ता हैं और विभिन्न बैंकों, कार्यालयों, प्रशिक्षण-संस्थानों, विश्वविद्यालयों आदि द्वारा आयोजित सम्मेलनों, संगोष्ठियों, कार्यशालाओं आदि में हिंदी भाषा और साहित्य, राजभाषा, बैंकिंग, वित्त और प्रबंधन पर सैकड़ों व्याख्यान दे चुके हैं। <ref>[https://www.rajkamalprakashan.com/default/jmproducts/filter/index/?author=479 सुरेश कान्त का परिचय (राजकमल प्रकाशन)]
 
 
सुरेश कांत 50 से अधिक पुस्तकों की रचना/संपादन कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अब तक उनकी 500 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। वे एक चर्चित वक्ता हैं और विभिन्न बैंकों, कार्यालयों, प्रशिक्षण-संस्थानों, विश्वविद्यालयों आदि द्वारा आयोजित सम्मेलनों, संगोष्ठियों, कार्यशालाओं आदि में हिंदी भाषा और साहित्य, राजभाषा, बैंकिंग, वित्त और प्रबंधन पर सैकड़ों व्याख्यान दे चुके हैं।
 
'''उपन्यास''' :- धम्मं शरणम् (1989), युद्ध, जीनियस, नवाब साहब, कनीज।
Line 19 ⟶ 15:
'''कहानी-संग्रह''' :- उत्तराधिकारी, गिद्ध, क्या आप एस.सी. दीक्षित को जानते हैं ?
 
'''नाटक''' :- रजिया, प्रतिशोध, विदेशी आया, बेचारा हिन्दुस्तान, कौन?
 
'''व्यंग्य-संग्रह''' : अफसर गए बिदेस, पड़ोसियों का दर्द, बलिहारी गुरु, देसी मैनेजमेंट, चुनाव मैदान में बन्दूकसिंह, अर्थसत्य, भाषण बाबू, मुल्ला तीन प्याजा, कुछ अलग (2018), बॉस, तुसी ग्रेट हो!(2018)
 
'''बाल साहित्य''' : कुट्टी, रोटी कौन खाएगा, चलो चाँद पर घूमें, भैंस का अंडा, विश्वप्रसिद्ध बाल कहानियाँ (पाँच भाग)
 
'''आलोचना''' : हिन्दी गद्य लेखन में व्यंग्य और विचार (2004)
Line 29 ⟶ 25:
'''प्रबंधन''' : प्रबन्धन के गुरुमंत्र, कुशल प्रबंधन के सूत्र, सफल प्रबन्धन के गुर, आदर्श प्रबन्धन के सूक्त, उत्कृष्ट प्रबन्धन के रूप (पाँच बेस्टलसेलर पुस्तकों की सिरीज)
 
'''अन्य''' :- बैंकों में हिंदी का प्रयोग, इन्साइक्लोपीडिक डिक्शनरी ऑफ बैंकिंग एंड फाइनेंशियल टर्म्स (2005)
 
कृति-विश्लेषण
-----------
 
===कृति-विश्लेषण===
'ब' से बैंक सुरेश कांत का पहला उपन्यास था जो 1978 में प्रसिद्ध हिन्दी पत्रिका 'धर्मयुग' में कई किस्तों में प्रकाशित हुआ था और खूब सराहा गया था। तब कांत की उम्र मात्र 22 वर्ष थी। यह समग्र उपन्यास के रूप में 1980 में पराग प्रकाशन से छपकर आया और 1990 में पुनः राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। हरिशंकर परसाई, शरद जोशी और रवीन्द्रनाथ त्यागी जैसे दिग्गज व्यंग्यकारों से प्रशंसित इस उपन्यास का सुरेश कांत पुनर्लेखन कर रहे हैं। बैंकिंग क्षेत्र की विसंगतियों की चीड़फाड़ करता यह लोकप्रिय उपन्यास शीघ्र ही एक नए कलेवर में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत होगा।
 
Line 72 ⟶ 66:
सुरेश कांत की अनेक कृतियाँ साहित्य कला परिषद (दिल्ली), हिंदी अकादमी (दिल्ली), उ.प्र. हिंदी संस्थान (लखनऊ), गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय/भारत सरकार आदि द्वारा पुरस्कृत हैं।
 
==सुरेश कांत : एक अलग दृष्टिकोण==
---------------------
 
अब आप पूछेंगे कि सुरेश कांत माने क्या? हिन्दी के व्यंग्यकार? समकालीन उपन्यासकार/नाटककार? सुधी समालोचक? साहित्यकार? प्रखर संपादक? विभिन्न बैंकों, कार्यालयों, प्रशिक्षण-संस्थानों, विश्वविद्यालयों प्रभृति द्वारा आयोजित सम्मेलनों, संगोष्ठियों, कार्यशालाओं आदि में हिन्दी भाषा और साहित्य, राजभाषा, बैंकिंग, वित्त और प्रबंधन पर सैकड़ों व्याख्यान दे चुके चर्चित वक्ता ? बस! यही घिसा-पिटा औपचारिक परिचय हुआ परसाई, जोशी, त्यागी और शुक्ल के समकालीन रहे इस लेखक का? नहीं! नहीं!!
 
Line 92 ⟶ 84:
साहित्य कला परिषद् (दिल्ली), हिंदी अकादमी (दिल्ली), उ.प्र. हिंदी संस्थान (लखनऊ) के पुरस्कार, गृह मंत्रालय, भारत सरकार, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार।
 
==सन्दर्भ==
[[श्रेणी:हिन्दी साहित्यकार]]
{{टिप्पणीसूची}}
 
[[श्रेणी:हिन्दी साहित्यकार]]
स्रोत
-----
(1) धम्मं शरणम्, राजकमल प्रकाशन (1989)