"दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा": अवतरणों में अंतर

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'''दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा''' एक प्रमुख [[हिन्दी]]सेवी संस्था है जो [[भारत]] के दक्षिणी राज्यों [[तमिलनाडु]], [[आंध्र प्रदेश]], [[केरल]] और [[कर्नाटक]] में [[भारतीय स्वतंत्रता|भारत के स्वतंत्रत होने के]] के काफी पहले से हिन्दी के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रही है।
 
सन् 1964 में संसद के अधिनियम द्वारा सभा को 'राष्ट्रीय महत्व की संस्था' घोषित किया गया। सभा को विश्वविद्यालय स्तर के पाठ्यक्रमों की शिक्षा देने और उपाधियाँ प्रदान करने का अधिकार प्राप्त हुआ। सभा का केन्द्रीय कार्यालय [[चेन्नई]] (मद्रास) में है। सभा की शाखाएँ दक्षिण के चारों प्रान्तों - [[केरल]], [[कर्नाटक]], [[आन्ध्र प्रदेश]] और [[तमिलनाडु]] - में हैं तथा [[दिल्ली]] में सम्पर्क कार्यालय है।
 
==सभा का उद्देश्य==
सभा के प्रमाणित प्रचारकों के द्वारा दक्षिण के चारों प्रान्तों के गाँव-गाँव में हिन्दी पढ़ाने की व्यवस्था तथा एतद्द्वारा [[राष्ट्रभाषा]] एवं [[राजभाषा]] हिन्दी के लिए दक्षिण भारत भर में अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करना; हिन्दी के विकास के लिए विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दी को हर प्रकार से समृद्ध बनाने में योग देना।
 
;अन्य कार्यकलापः
* राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठियाँ, कार्यशालाएँ, विचार मंच, कवि गोष्ठियाँ, कवि-लेखक समादर, भाषण-मालाओं का आयोजन
 
* [[अनुवाद]] के क्षेत्र में दक्षता प्रदान करने स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम तथा अनुवाद कार्य के लिए सुविधाएँ
 
* [[हिन्दी]] और [[अंग्रेजी]] के अलावा दक्षिण की सभी भाषाओं में कम्प्यूटर संसाधित मुद्रण सुविधाएँ।
 
==सभा द्वारा उपलब्ध सेवाएँ==
* प्रारंभिक एवं उच्च परीक्षाएँ
 
* पाठ्यपुस्तकों का निर्माण एवं प्रकाशन
 
* प्रचारक/शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम
 
* एम.ए., डी.लिट्., बी.एड. तथा स्नातकोत्तर-अनुवाद डिप्लोमा, पत्रकारिता डिप्लोमा पाठ्यक्रम, बी.ए., एम.ए. (हिन्दी), स्नातकोत्तर अनुवाद डिप्लोमा, एम.फिल., पीएच.डी. (दूरस्थ शिक्षा)
 
* मानक [[शब्दकोश|शब्दकोशों]] का निर्माण
 
* आडियो कैसेट का निर्माण-व्याकरण पाठ, बोलचाल की हिन्दी, बापू के प्रिय भजन आदि।
 
* जनसाधारण के लिए सार्वजनिक पुस्तकालय तथा उच्च शिक्षा और शोध संस्थान से संबद्ध अनुसंधान कार्य के लिए राष्ट्रीय हिन्दी ग्रन्थालय की सुविधाएँ।
 
==संगठन==
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== इतिहास ==
हिन्दी प्रचार सभा एक आन्दोलन थी जो भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन के साथ ही आरम्भ हुई। एक स्वतन्त्रहिन्दी संस्थाभाषा के रूपप्रचार मेंके सनद्वारा १९१८जन-जागरण, मेंप्रजातंत्र इसकीकी स्थापनाजीवन-प्रणाली हुई।के भारतप्रति आस्था उत्पन्न करने तथा राष्ट्रीय एकीकरण को सिंचित करने के पावन उद्देश्य से सन् 1918 में राष्ट्रपिता [[महात्मा गांधी]]जी केने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार आंदोलनसभा केकी परिणामस्वरूपनींव '''दक्षिणडाली भारतथी हिन्दीऔर प्रचारवे आजीवन इस संस्था के अध्यक्ष रहे। सभा''' की स्थापना [[मद्रास]] नगर के गोखले हॉल में [[डॉ॰सी.पी. रामास्वामी अरयर]] की अध्यक्षता में [[एनी बेसेन्ट]] ने की थी। सन् 1918 से मद्रास में हिन्दी वर्ग चलने लगे। गांधीजी के सुपुत्र [[देवदास गांधी]] प्रथम हिन्दी प्रचारक बने। [[जवाहरलाल नेहरू]], बाबू [[राजेन्द्र प्रसाद]], आचार्य [[विनोबा भावे]], [[काका कालेलकर]], [[लाल बहादुर शास्त्री]], इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, श्री पी.वी. नरसिंह राव, श्री आर. वेंकटरामन, डॉ. बी.डी. जत्ती आदि मनीषियों ने सभा की गतिविधियों में सक्रिय योगदान दिया है।
 
[[महात्मा गांधी|गांधीजी]] जी आजीवन इसके सभापति रहे। उन्होंने देश की अखंडताअखण्डता और एकता के लिए हिन्दी के महत्व एवं उसके प्रचार-प्रसार पर बल दिया। [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस|कांग्रेस]] द्वारा स्वीकृत चौदह रचनात्मक कार्यक्रमों में राष्ट्रभाषा हिन्दी के व्यापक प्रचार-प्रसार कार्य का भी उल्लेख है। गांधीजी का विचार था कि दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार का कार्य वहाँ के स्थानीय लोग ही करें। सन १९२० तक सभा का कार्यालय जार्ज टाउन, [[मद्रास]] (अब, चेन्नै) में था। कुछ वर्ष बाद यह मालापुर में आ गया। इसके बाद यह ट्रिप्लिकेन में आ गया और १९३६ तक वहीं बना रहा।
महात्मा गांधी के बाद भारतरत्न [[डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद]] इस संस्था के अध्यक्ष बनाए गए, जो स्वयं हिन्दी के कट्टर उपासक थे। '''हिन्दी समाचार''' नाम की मासिक पत्रिका द्वारा सभा के उद्देश्य, प्रवृत्ति तथा अन्यान्य कार्यकलापों की विस्तृत सूचनाएँ प्रचारकों को मिलती रहती हैं। 'दक्षिण भारत' नामक त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका में दक्षिण भारतीय भाषाओं की रचनाओं के हिन्दी-अनुवाद और उच्चस्तर के मौलिक साहित्यिक लेख छपते हैं। हिन्दी अध्यापकों और प्रचारकों को तैयार करने के लिए सभा के शिक्षा विभाग के मार्गदर्शन में 'हिन्दी प्रचार विद्यालय' नामक प्रशिक्षण विद्यालय तथा प्रवीण विद्यालय संचालित होते हैं। प्रचार कार्य को सुसंगठित तथा शिक्षण को क्रमबद्ध और स्थायी बनाने के उद्धेश्य से सभा प्राथमिक, मध्यमा, राष्ट्रभाषा प्रवेशिका, विशारद, प्रवीण और हिन्दी प्रशिक्षण नामक परीक्षाओं का संचालन करती है। सभा की ओर से एक स्नातकोत्तर अध्ययन एवं अनुसंधान विभाग खोला गया है, जिसमें अध्ययनार्थ प्रोफेसरों की नियुक्ति होती है। पुस्तकों का प्रकाशन सभा के साहित्य विभाग की ओर से किया जाता है। हिन्दी के माध्यम से तमिल, तेलगू, कन्नड़, मलयालम चारों भाषाएँ सीखने के लिए उपयोगी पुस्तकों एवं कोश आदि के प्रकाशन का विधान है।