"आयुर्वेद": अवतरणों में अंतर

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चिकित्सक, परिचायक, औषध और रोगी, ये चारों मिलकर शारीरिक धातुओं की समता के उद्देश्य से जो कुछ भी उपाय या कार्य करते हैं उसे चिकित्सा कहते हैं। यह दो प्रकार की होती है : (१) '''निरोधक''' (प्रिवेंटिव) तथा (२) '''प्रतिषेधक''' (क्योरेटिव); जैसे शरीर के प्रकृतिस्थ दोषों और धातुओं में वैषम्य (विकार) न हो तथा साम्य की परंपरा निरंतर बनी रहे, इस उद्देश्य से की गई चिकित्सा निरोधक है तथा जिन क्रियाओं या उपचारों से विषम हुई शरीरिक धातुओं में समता उत्पन्न की जाती है उन्हें प्रतिषेधक चिकित्सा कहते हैं।
 
पुनः चिकित्सा तीन प्रकार की होती है :- (१) दैवव्यपाश्रय (२) सत्वावजय (३) युक्तिव्यपाश्रय।
 
===दैवव्यपाश्रय===