"सूफ़ीवाद": अवतरणों में अंतर

छो 106.202.29.231 (Talk) के संपादनों को हटाकर 223.225.35.188 के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया
Ahmed Nisar (वार्ता) द्वारा सम्पादित संस्करण 4275936 पर पूर्ववत किया। (ट्विंकल)
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना
पंक्ति 4:
 
माना जाता है कि सूफ़ीवाद [[ईराक़]] के [[बसरा]] नगर में क़रीब एक हज़ार साल पहले जन्मा। राबिया, अल अदहम, मंसूर हल्लाज जैसे शख़्सियतों को इनका प्रणेता कहा जाता है - ये अपने समकालीनों के आदर्श थे लेकिन इनको अपने जीवनकाल में आम जनता की अवहेलना और तिरस्कार झेलनी पड़ी। सूफ़ियों को पहचान [[अल ग़ज़ाली]] के समय (सन् ११००) से ही मिली। बाद में [[अत्तार]], [[रूमी]] और [[हाफ़िज़]] जैसे कवि इस श्रेणी में गिने जाते हैं, इन सबों ने शायरी को तसव्वुफ़ का माध्यम बनाया। भारत में इसके पहुंचने की सही-सही समयावधि के बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में ख़्वाजा [[मोईनुद्दीन चिश्ती]] बाक़ायदा सूफ़ीवाद के प्रचार-प्रसार में जुट गए थे।
 
*
 
==व्युत्पत्ति==
Line 17 ⟶ 15:
 
सूफ़ी मानते हैं कि उनका स्रोत खुद पैग़म्बर [[मुहम्मद]] हैं।
 
 
सूफ़ी मत का विकास
 
इस्लाम की आरंभिक शताब्दियों में धार्मिक और राजनीतिक संस्था के रूप में खिलाफत की बढ़ती विषय शक्ति के विरुद्ध कुछ आध्यात्मिक लोंगों का रहस्यवाद और वैराग्य की ओर झुकाव बढ़ा, इन्हें सूफ़ी कहा जाने लगा । इन लोगों ने रूढ़िवादी परिभाषाओं तथा धर्माचार्यों द्वारा की गई कुरान और सुन्ना(पैगम्बर के व्यवहार) की बौद्धिक व्याख्या की आलोचना की ।
इसके विपरीत उन्होंने मुक्ति की प्राप्ति के लिए
ईश्वर की भक्ति और उनके आदेशों के पालन पर बल दिया । उन्होंने पैगम्बर मुहम्मद को इंसान-ए-कामिल बताते हुए उनका अनुसरण करने की सीख दी। सूफ़ियों ने कुरान की व्याख्या अपने निजी अनुभवों के आधार पर की।
(लोकेश द्विवेदी)
 
 
 
==यह भी देखें==