"भारतीय गणित": अवतरणों में अंतर

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गणितीय गवेषणा का महत्वपूर्ण भाग [[भारतीय उपमहाद्वीप]] में उत्पन्न हुआ है। [[संख्या]], [[शून्य]], [[स्थानीय मान]], [[अंकगणित]], [[ज्यामिति]], [[बीजगणित]], [[कैलकुलस]] आदि का प्रारम्भिक कार्य [[भारत]] में सम्पन्न हुआ। गणित-विज्ञान न केवल [[औद्योगिक क्रांति]] का बल्कि परवर्ती काल में हुई वैज्ञानिक उन्नति का भी केंद्र बिन्दु रहा है। बिना गणित के [[विज्ञान]] की कोई भी शाखा पूर्ण नहीं हो सकती। भारत ने [[औद्योगिक क्रांति]] के लिए न केवल आर्थिक [[पूँजी]] प्रदान की वरन् [[विज्ञान]] की नींव के जीवंतजीवnत तत्व भी प्रदान किये जिसके बिना मानवता विज्ञान और उच्च तकनीकी के इस आधुनिक दौर में प्रवेश नहीं कर पाती। विदेशी विद्वानों ने भी गणित के क्षेत्र में भारत के योगदान की मुक्तकंठ से सराहना की है।
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गणितीय गवेषणा का महत्वपूर्ण भाग [[भारतीय उपमहाद्वीप]] में उत्पन्न हुआ है। [[संख्या]], [[शून्य]], [[स्थानीय मान]], [[अंकगणित]], [[ज्यामिति]], [[बीजगणित]], [[कैलकुल
 
स]] आदि का प्रारम्भिक कार्य [[भारत]] में सम्पन्न हुआ। गणित-विज्ञान न केवल [[औद्योगिक क्रांति]] का बल्कि परवर्ती काल में हुई वैज्ञानिक उन्नति का भी केंद्र बिन्दु रहा है। बिना गणित के विज्ञान की कोई भी शाखा पूर्ण नहीं हो सकती। भारत ने [[औद्योगिक क्रांति]] के लिए न केवल आर्थिक [[पूँजी]] प्रदान की वरन् [[विज्ञान]] की नींव के जीवंत तत्व भी प्रदान किये जिसके बिना मानवता विज्ञान और उच्च तकनीकी के इस आधुनिक दौर में प्रवेश नहीं कर पाती। विदेशी विद्वानों ने भी गणित के क्षेत्र में भारत के योगदान की मुक्तकंठ से सराहना की है।
 
== 'गणित' शब्द का इतिहास :- ==
विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थ [[वेद]] संहिताओं[[संहिता]]ओं से गणित तथा [[ज्योतिष]] को अलग-अलग शास्त्रों के रूप में मान्यता प्राप्त हो चुकी थी। [[यजुर्वेद]] में खगोलशास्त्र (ज्योतिष) के विद्वान् के लिये ‘नक्षत्रदर्श’ का प्रयोग किया है तथा यह सलाह दी है कि उत्तम प्रतिभा प्राप्त करने के लिये उसके पास जाना चाहिये (प्रज्ञानाय नक्षत्रदर्शम्)। वेद में शास्त्र के रूप में ‘गणित’ शब्द का नामतः उल्लेख तो नहीं किया है पर यह कहा है कि जल के विविध रूपों का लेखा-जोखा रखने के लिये ‘गणक’ की सहायता ली जानी चाहिये।
 
'''शास्त्र के रूप में ‘गणित’ का प्राचीनतम प्रयोग [[लगध]] ऋषि द्वारा प्रोक्त [[वेदांग ज्योतिष]] नामक ग्रन्थ का एक श्लोक में माना जाता है'''। पर इससे भी पूर्व [[छान्दोग्य उपनिषद्]] में [[सनत्कुमार]] के पूछने पर [[नारद]] ने जो 18 अधीत विद्याओं की सूची प्रस्तुत की है, उसमें ज्योतिष के लिये ‘नक्षत्र विद्या’ तथा गणित के लिये ‘राशि विद्या’ नाम प्रदान किया है। इससे भी प्रकट है कि उस समय इन शास्त्रों की तथा इनके विद्वानों की अलग-अलग प्रसिद्धि हो चली थी।