"लिव वाइगोत्सकी": अवतरणों में अंतर
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वाइगोत्सकी के अनुसार संज्ञानात्मक विकास को समझने के लिए उन औजारों का परीक्षण अति आवश्यक है जो संज्ञानात्मक विकास में मध्यस्थता करते हैं तथा उसे रूप प्रदान करते हैं। इसी के आधार पर वे यह भी मानते हैं कि [[भाषा]] संज्ञानात्मक विकास का महत्त्वपूर्ण औजार है। इनके अनुसार आरमिभक बाल्यकाल में ही बच्चा अपने कार्यों के नियोजन एवं समस्या समाधान में भाषा का औजार की तरह उपयोग करने लग जाता है।
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जिस प्रकार हम [[जल]] के [[अणु]] का अध्ययन उसके भागों (H & O) के द्वारा नहीं कर सकते, उसी प्रकार व्यक्ति का अध्ययन भी उसके वातावरण से पृथक होकर नही किया जा सकता। व्यक्ति का उसके सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राजनैतिक सन्दर्भ में अध्ययन ही हमें उसकी समग्र जानकारी प्रदान करता है। वायगास्की ने संज्ञानात्मक विकास के अध्ययन के दौरान [[ज़ाँ प्याज़े|प्याजे]] का अध्ययन किया और फिर अपना दृष्टिकोण विकसित किया।
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प्याज़े के अनुसार [[विकास]] और [[अधिगम]] (सीखना) दो अलग धारणाएं हैं जिनमें संज्ञान भाषा के विकास को एक प्राकृतिक प्रक्रिया के रूप में प्रभावित करता है। विकास हो जाने के पश्चात् उस विशेष अवस्था में आवश्यक कौशलों की प्राप्ति ही अधिगम है। इस प्रकार प्याजे के सिद्धान्त के अनुसार विकास, अधिगम की पूर्वावस्था है न कि इसका परिणाम। अर्थात् अधिगम का स्तर विकास के ऊपर है। प्याज़े के अनुसार अधिगम के लिए सर्वप्रथम एक निश्चित विकास स्तर पर पहुंचना आवश्यक है।
वायगास्की अपने सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धान्त के लिए जाने जाते है। इस सिद्धान्त के अनुसार सामाजिक अन्तःक्रिया (इन्तरैक्शन) ही बालक की सोच व व्यवहार में निरन्तर बदलाव लाता है जो एक [[संस्कृति]] से दूसरे में भिन्न हो सकता है। उनके अनुसार किसी बालक का संज्ञानात्मक विकास उसके अन्य व्यक्तियों से अन्तर्सम्बन्धों पर निर्भर करता है।
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