"काशिकावृत्ति": अवतरणों में अंतर

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[[संस्कृत व्याकरण]] के अध्ययन की दो शाखाएँ हैं - नव्य व्याकरण, तथा प्राचीनव्याकरण। '''काशिकावृत्ति''' प्राचीन व्याकरण शाखा का ग्रन्थ है। इसमें [[पाणिनि]]कृत [[अष्टाध्यायी]] के सूत्रों की वृत्ति (संस्कृत : अर्थ) लिखी गयी है। इसके सम्मिलित लेखक [[जयादित्य]] और [[वामनावतार|वामन]] हैं। [[सिद्धान्तकौमुदी]] से पहले काशिकावृत्ति बहुत लोकप्रिय थी, फिर इसका स्थान सिद्धान्तकौमुदी ने ले लिया। आज भी [[आर्य समाज|आर्यसमाज]] के [[गुरुकुल|गुरुकुलों]] मे इसी के माध्यम से अध्ययन होता है।
 
== परिचय ==
'''काशिकावृत्ति''', [[पाणिनीपाणिनि|पाणिनीय]] "[[अष्टाध्यायी]]" पर 7वीं शताब्दी ई. में रची गई प्रसिद्ध वृत्ति। इसमें बहुत से सूत्रों की वृत्तियाँ और उनके उदाहरण पूर्वकालिक आचार्यों के वृत्तिग्रंथों से भी दिए गए हैं। केवल [[महाभाष्य]] का ही अनुसरण न कर अनेक स्थलों पर महाभाष्य से भिन्न मत का भी प्रतिपादन हुआ है। काशिका में उद्धृत वृत्तियों से प्राचीन वृत्तिकारों के मत जानने में बड़ी सहायता मिलती है, अन्यथा वे विलुप्त ही हो जाते। इसी प्रकार इसमें दिए उदाहरणों प्रत्युदाहरणों से कुछ ऐसे ऐतिहासिक तथ्यों की समुपलबिध हुई है जो अन्यत्र दुष्प्राप्य थे। इस ग्रंथ की एक विशेषता यह भी है इसमें गणपाठ दिया हुआ है जो प्राचीन वृत्तिग्रंथों में नहीं मिलता।
 
'काशिका' शब्द के दो अर्थ हो सकते हैं। प्रथम अर्थ के अनुसार, 'काशिका' 'काश्' धातु से निष्पन्न है इसलिये काशिका का अर्थ 'प्रकाशित करने वाली' या 'प्रकाशिका' हुआ (काश् में ही प्र उपसर्ग जोड़ने से प्रकाश बनता है)। काशिका के व्याख्याता हरदत्त के अनुसार दूसरी व्याख्या यह यह है कि काशिका की रचना [[काशी]] में हुई थी इसलिये इसे काशिका कहा गया (''काशीषु भवा काशिका'')।
 
यह [[जयादित्य]] और [[वामनावतार|वामन]] नाम के दो विद्वानों की सम्मिलित कृति है। चीनी यात्री [[इत्सिंग]] और भाषावृत्ति-अर्थविवृत्ति के लेखक सृष्टिधराचार्य, दोनों ने काशिका को न केवल जयादित्य विरचित लिखा है, वरन् अनेक प्राचीन विद्वानों ने काशिका के उद्धरण देते समय जयादित्य और वामन दोनों का उल्लेख किया है। उनके अपने-अपने लिखे अध्यायों पर भी प्रकाश डाला गया है। [[प्रौढ़ मनोरमा]] की [[शब्दरत्नव्याख्या]] में प्रथम, द्वितीय, पंचम तथा षष्ठ अध्याय जयादित्य के लिखे एवं शेष अंश वामन का लिखा बतलाया गया है। परंतु काशिका की लेखनशैली को ध्यानपूर्वक देखने से प्रतीत होता है कि आरंभ के पाँच अध्याय जयादित्य विरचित हैं और अंत के तीन वामन के लिखे हैं। कुछ ठोस प्रमाणों के आधार पर यह मान लिया गया है कि जयादित्य और वामन ने संपूर्ण अष्टाध्यायी पर अपनी भिन्न-भिन्न संपूर्ण वृत्तियों की रचना की थी। पर यह अभी रहस्य ही है कि कब और कैसे कुछ अंश जयादित्य के और कुछ वामन के लेकर यह काशिका बनी। फिर भी यह प्रमाणित है कि वृत्तियों का यह एकीकरण विक्रम संवत् 700 से पूर्व ही हो चुका था।
 
'''काशिका के व्याख्याग्रन्थ'''