"सफ़ेद बौना": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Size IK Peg.png|right|thumb|250px|तुलनात्मक तस्वीर: हमारा [[सूर्य|सूरज]] (दाएँ तरफ़) और [[पर्णिन अश्व तारामंडल]] में स्थित [[द्वितारा]] "आई॰के॰ पॅगासाई" के दो तारे - "आई॰के॰ पॅगासाई ए" (बाएँ तरफ़) और सफ़ेद बौना "आई॰के॰ पॅगासाई बी" (नीचे का छोटा-सा बिंदु)। इस सफ़ेद बौने का सतही तापमान ३,५०० [[केल्विन|कैल्विन]] है।]]
[[खगोल शास्त्र|खगोलशास्त्र]] में '''सफ़ेद बौना''' या '''व्हाइट ड्वार्फ़''' एक छोटे तारे को बोला जाता है जो "अपकृष्ट इलेक्ट्रॉन पदार्थ" का बना हो। "अपकृष्ट इलेक्ट्रॉन पदार्थ" या "ऍलॅक्ट्रॉन डिजॅनरेट मैटर" में [[इलेक्ट्रॉन]] अपने [[परमाणुओंपरमाणु]]ओं से अलग होकर एक गैस की तरह फैल जाते हैं और नाभिक (न्युक्लिअस, परमाणुओं के घना केंद्रीय हिस्से) उसमें तैरते हैं। सफ़ेद बौने बहुत घने होते हैं - वे [[पृथ्वी]] के जितने छोटे आकार में [[सूर्य|सूरज]] के जितना [[द्रव्यमान]] (मास) रख सकते हैं।
 
माना जाता है के जिन तारों में इतना द्रव्यमान नहीं होता के वे आगे चलकर अपना इंधन ख़त्म हो जाने पर [[न्यूट्रॉन तारा]] बन सकें, वे सारे सफ़ेद बौने बन जाते हैं। इस नज़रिए से [[आकाशगंगा]] (हमारी [[मन्दाकिनी|गैलेक्सी]]) के ९७% तारों के भाग्य में सफ़ेद बौना बन जाना ही लिखा है। सफ़ेद बौनों की रौशनी बड़ी मध्यम होती है। वक़्त के साथ-साथ सफ़ेद बौने ठन्डे पड़ते जाते हैं और वैज्ञानिकों की सोच है के अरबों साल में अंत में जाकर वे बिना किसी रौशनी और गरमी वाले [[काला बौना|काले बौने]] बन जाते हैं। क्योंकि हमारा [[ब्रह्माण्ड]] केवल १३.७ अरब साल पुराना है इसलिए अभी इतना समय ही नहीं गुज़रा के कोई भी सफ़ेद बौना पूरी तरह ठंडा पड़कर काला बौना बन सके। इस वजह से आज तक खगोलशास्त्रियों को कभी भी कोई काला बौना नहीं मिला है।<ref>{{cite web |last1=Henry |first1=T. J. |date=1 January 2009 |title=The One Hundred Nearest Star Systems |url=http://www.astro.gsu.edu/RECONS/TOP100.posted.htm |publisher=Research Consortium On Nearby Stars |accessdate=21 July 2010}}</ref>
 
== इन्हें भी देखें ==