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'''बागेश्वर ''' [[भारत]] के [[उत्तराखण्ड]] [[भारत के राज्य तथा केन्द्र-शासित प्रदेश|राज्य]] का एक [[ज़िला|जिला]] है, जिसके मुख्यालय [[बागेश्वर]] नगर में स्थित हैं। इस जिले के उत्तर तथा पूर्व में [[पिथौरागढ़ जिला]], पश्चिम में [[चमोली जिला]], तथा दक्षिण में [[अल्मोड़ा जिला]] है। बागेश्वर जिले की स्थापना १५ सितंबर १९९७ को [[अल्मोड़ा जिला|अल्मोड़ा]] के उत्तरी क्षेत्रों से की गयी थी। २०११ की जनगणना के अनुसार [[रुद्रप्रयाग जिला|रुद्रप्रयाग]] तथा [[चम्पावत जिला|चम्पावत]] के बाद यह [[उत्तराखण्ड]] का तीसरा सबसे कम जनसंख्या वाला जिला है।
यह जिला धार्मिक गाथाओं, पर्व आयोजनों और अत्याकर्षक प्राकृतिक दृश्यों के कारण प्रसिद्ध है। प्राचीन प्रमाणों के आधार पर बागेश्वर शब्द को ब्याघ्रेश्वर से विकसित माना गया है। यह शब्द प्राचीन भारतीय साहित्य में अधिक प्रसिद्ध है। [[बागनाथ मंदिर]], [[कौसानी]], [[बैजनाथ, उत्तराखण्ड|बैजनाथ]], [[विजयपुर, उत्तराखंड|विजयपुर]] आदि जिले के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। जिले में ही स्थित [[पिण्डारी हिमनद|पिण्डारी]], काफनी, सुन्दरढूंगा इत्यादि हिमनदों से पिण्डर तथा [[सरयू नदी (उत्तराखण्ड)|सरयू]] नदियों का उद्गम होता है।
== इतिहास ==
वर्तमान बागेश्वर क्षेत्र ऐतिहासिक तौर पर दानपुर के नाम से जाना जाता था, और ७वीं शताब्दी के समय यहाँ [[कत्यूरी राजवंश]] का शासन था। १३वीं शताब्दी में कत्यूरी राजवंश के विघटन के बाद यह क्षेत्र बैजनाथ कत्यूरों के शासन में आ गया। १५६५ में राजा बालो कल्याण चन्द ने [[पाली पछांऊॅं|पाली]], [[अल्मोड़ा तहसील|बारहमण्डल]] और [[गंगोली राज्य|गंगोली]] के साथ दानपुर पर भी कब्ज़ा कर इसे कुमाऊं में शामिल कर लिया। सन् १६०२ मे राजा लक्ष्मी चन्द ने बागनाथ के वर्तमान मुख्य मन्दिर एवं मन्दिर समूह का पुनर्निर्माण किया था। १७९१ में, कुमाऊं की राजधानी [[अल्मोड़ा]] पर [[नेपाल]] के गोरखाओं ने हमला किया और कब्जा कर लिया। गोरखाओं ने इस क्षेत्र पर २४ वर्षों तक शासन किया और बाद में १८१४ में [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी|ईस्ट इंडिया कंपनी]] द्वारा पराजित होकर, १८१६ में [[सुगौली संधि]] के तहत कुमाऊं को अंग्रेजों को सौंप दिया।
१९वीं सदी के प्रारम्भ में बागेश्वर आठ-दस घरों की एक छोटी सी बस्ती थी। सन् १८६० के आसपास यह स्थान २००-३०० दुकानों एवं घरों वाले एक कस्बे का रूप धारण कर चुका था। मुख्य बस्ती मन्दिर से संलग्न थी। [[सरयू नदी (उत्तराखण्ड)|सरयू नदी]] के पार दुग बाजार और सरकारी डाक बंगले का विवरण मिलता है। एटकिन्सन के हिमालय गजेटियर में वर्ष १८८६ में इस स्थान की स्थायी आबादी ५०० बतायी गई है। वर्ष १९२१ के [[उत्तरायणी मेला, बागेश्वर|उत्तरायणी मेले]] के अवसर पर कुमाऊँ केसरी [[बद्री दत्त पाण्डेय]], हरगोविंद पंत, श्याम लाल साह, विक्टर मोहन जोशी, राम लाल साह, मोहन सिह मेहता, ईश्वरी लाल साह आदि के नेतृत्व में सैकड़ों आन्दोलनकारियों ने [[कुली-बेगार आन्दोलन|कुली बेगार के रजिस्टर बहा कर]] इस कलंकपूर्ण प्रथा को समाप्त करने की कसम इसी सरयू तट पर ली थी।
बागेश्वर को १९७४ में अलग तहसील बनाया गया, और १९७६ में इसे परगना घोषित कर दिया गया था। परगना दानपुर के ४७३, खरही के ६६, कमस्यार के १६६, और पुँगराऊ के ८७ गाँवों का समेकन केन्द्र होने के कारण शीघ्र ही यह प्रमुख प्रशासनिक केन्द्र बन गया। १९८५ से ही इसे जिला घोषित करने की मांग अलग-अलग पार्टियों और क्षेत्रीय लोगों द्वारा उठाई जाने लगी, और फिर, १५ सितंबर १९९७ को [[उत्तर प्रदेश]] की [[उत्तर प्रदेश के
== जनसांख्यिकी ==
२०११ की जनगणना के अनुसार बागेश्वर जिले की जनसंख्या २,५९,८४० है, जो लगभग [[वानूआतू]] देश के बराबर है। जनसंख्या के मामले में [[भारत के
== प्रशासन ==
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|align=left|[[कपकोट तहसील|कपकोट]]
|नगर पंचायत
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