"अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'": अवतरणों में अंतर

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| चित्र शीर्षक = अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
| उपनाम = 'हरिऔध'
| जन्मतारीख़ = [[१५ अप्रैल|15 अप्रैल]], [[१८६५|1865]]
| जन्मस्थान = [[निज़ामाबाद|निजामाबाद]], [[आज़मगढ़]], [[उत्तर प्रदेश]], [[भारत]]
| मृत्युतारीख़ = [[१६ मार्च|16 मार्च]], [[१९४७|1947]]
| मृत्युस्थान = [[निज़ामाबाद|निजामाबाद]], [[आज़मगढ़]], [[उत्तर प्रदेश]], [[भारत]]
| कार्यक्षेत्र = अध्यापक, लेखक,
| राष्ट्रीयता = [[भारत|भारतीय]]
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| विषय =
| आन्दोलन =
| प्रमुख कृति = [[प्रियप्रवास|प्रिय प्रवास]] [[काव्य-ग्रंथ]]
| प्रभाव डालने वाला =
| प्रभावित =
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| मुख्य काम =
}}
'''अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' '''([[१५ अप्रैल|15 अप्रैल]], [[१८६५|1865-]]-[[१६ मार्च|16 मार्च]], [[१९४७|1947]]) [[हिन्दी]] के एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। वे [[अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन|2 बार हिंदी साहित्य सम्मेलन]] के सभापति रह चुके हैं और सम्मेलन द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किये जा चुके हैं। [[प्रियप्रवास|प्रिय प्रवास]] हरिऔध जी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह हिंदी [[खड़ीबोली|खड़ी बोली]] का प्रथम [[महाकाव्य]] है और इसे [[मंगलाप्रसाद पारितोषिक]] पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
 
== जीवनवृत ==
हरिऔध जी का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के [[आज़मगढ़|आजमगढ़]] जिले के [[निज़ामाबाद|निजामाबाद]] नामक स्थान में हुआ। उनके पिता का नाम पंडित भोलानाथ उपाध्याय था। प्रारंभिक शिक्षा निजामाबाद एवं आजमगढ़ में हुई। पांच वर्ष की अवस्था में इनके चाचा ने इन्हें [[फ़ारसी भाषा|फारसी]] पढ़ाना शुरू कर दिया था।
 
हरिऔध जी [[निज़ामाबाद|निजामाबाद]] से मिडिल परीक्षा पास करने के पश्चात काशी के [[क्वींस कालेज]] में [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] पढ़ने के लिए गए, किन्तु स्वास्थ्य बिगड़ जाने के कारण उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा। उन्होंने घर पर ही रह कर [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]], [[उर्दू भाषा|उर्दू]], [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] और [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेजी]] आदि का अध्ययन किया और १८८४ में निजामाबाद में इनका [[विवाह]] निर्मला कुमारी के साथ सम्पन्न हुआ।
 
सन १८८९ में हरिऔध जी को सरकारी नौकरी मिल गई। वे [[कानूनगो]] हो गए। इस पद से सन १९३२ में अवकाश ग्रहण करने के बाद हरिऔध जी ने [[काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय|काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] के हिंदी विभाग में अवैतनिक शिक्षक के रूप से कई वर्षों तक अध्यापन कार्य किया। सन १९४१ तक वे इसी पद पर कार्य करते रहे। उसके बाद यह निजामाबाद वापस चले आए। इस अध्यापन कार्य से मुक्त होने के बाद हरिऔध जी अपने गाँव में रह कर ही साहित्य-सेवा कार्य करते रहे। अपनी साहित्य-सेवा के कारण हरिऔध जी ने काफी ख़्याति अर्जित की। [[अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन|हिंदी साहित्य सम्मेलन]] ने उन्हें एक बार सम्मेलन का सभापति बनाया और विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया। सन् १९४७ ई० में निजामाबाद में इनका देहावसान हो गया।
 
== रचनाएँ ==
हरिऔध जी ने [[ठेठ हिंदी का ठाठ]] , [[अधखिला फूल]] , हिंदी भाषा और साहित्य का विकास आदि ग्रंथ-ग्रंथों की भी रचना की, किंतु मूलतः वे कवि ही थे उनके उल्लेखनीय ग्रंथों में शामिल हैं: -
 
#[[प्रियप्रवास|प्रिय प्रवास]] 1914 ई .
#[[कवि सम्राट]]
#[[वैदेही वनवास]] 1940 ई .
#[[प्राजक्ता (फूल)|पारिजात]] 1937 ई .
#[[रस-कलश]] 1940 ई .
#[[चुभते चौपदे]] 1932 ई., [[चौखे चौपदे]] 1924 ई .
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* [[पद्य प्रसून]]
 
[[प्रियप्रवास|प्रिय प्रवास]], हरिऔध जी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है। इसे मंगलाप्रसाद पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
 
== काव्यगत विशेषताएँ ==
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== इन्हें भी देखें ==
[[अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'|अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध(बाल साहित्यकार)]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==