"श्यामसुन्दर सेन": अवतरणों में अंतर

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'समाचार सुधा वर्षण’ ने समय समय पर अंग्रेजों की नीतियों का प्रतिरोध किया। १८५७ में जब [[भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम|पहला स्वतंत्रता संग्राम]] शुरू हुआ तो ‘समाचार सुधावर्षण’ ने [[बहादुरशाह जफर]] के उस सन्देश को खासी प्रमुखता से प्रकाशित किया था, जिसमें उन्होंने देश के हिन्दुओं और मुसलमानों से अपील की थी कि वे अपनी सबसे बड़ी नेमत आजादी के अपहर्ता अंग्रेजों को बलपूर्वक देश से बाहर निकालने का पवित्र कर्तव्य निभाने के लिए कुछ भी उठा न रखें।
 
अंग्रेजों ने उस पर [[देशद्रोह]] का आरोप लगाकर अदालत में खींच लिया। लेकिन श्यामसुन्दर सेन ने हार माने अथवा माफी मांगे बिना ऐसी कुशलता से अपना पक्ष रखा कि अंग्रेजों की अदालत ने ही देश पर अंग्रेजों के कब्जे को गैरकानूनी करार दे दिया और माना कि देश की सत्ता तो अभी भी वैधानिक या तकनीकी रूप से बहादुरशाह जफर में ही निहित है। देशद्रोही तो वास्तव में अंग्रेज हैं जो गैरकानूनी रूप से मुल्क पर काबिज हैं और उनके खिलाफ बादशाह का संदेश छापकर ‘समाचार सुधा वर्षण’ ने देशद्रोह नहीं किया बल्कि अपना कर्तव्य निभाया है।
 
==सन्दर्भ==