"पृथ्वीराज रासो": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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== काव्यगत विशेषताएँ ==
“पृथ्वीराज रासो” हिन्दी का प्रथम [[महाकाव्य]] माना जाता है।
महाकाव्य होते हुए भी पृथ्वीराजरासो में प्रबन्ध-निर्वाह का अभाव है। यह भारतीय जीवन की झाँकी नहीं प्रस्तुत कर पाता। इसकी कथा कहीं-कहीं चंद और उसकी पत्नी के बाद-विवाद के रूप में तथा कहीं शुक-शुकी के संवाद के रूप में चलती है। इस ग्रन्थ में शृंगार तथा वीर रस की प्रधानता है। शृंगार के हाव-भाव को प्रकृति के उद्दीपन के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। युद्ध क्षेत्र का वर्णन बड़े ही कौशल के साथ किया गया है। [[उपमा अलंकार|उपमा]], [[
नाना प्रकार की भाषाएँ इस ग्रन्थ में मिलती हैं। बहुत से शब्द तो ऐसे मिलते है जो उस समय के लिखे ही नहीं जान पड़ते। कुछ विद्वान इसके शुक-शुकी-संवाद को ही ग्रन्थ का मूल समझते हैं, शेष को अप्रमाणिक। [[हजारी प्रसाद द्विवेदी]] इसे अर्धप्रमाणिक रचना माना है। उनका कहना है-
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