"अहिल्या": अवतरणों में अंतर

टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
रवि गौतम द्वारा किये 5 संपादन प्रत्यावर्तित किये जा रहे : ससंदर्भ लिखित सामग्री हटाया जाना (ट्विंकल)
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना
पंक्ति 12:
| children = शतनन्दा
}}
'''अहल्या''' अथवा '''अहिल्या''' सनातन धर्म की कथाओं में वर्णित एक स्त्री पात्र हैं, जो [[महर्षि गौतम|गौतम ऋषि]] की पत्नी थीं। ब्राह्मणों और पुराणों में इनकी कथा छिटपुट रूप से कई जगह प्राप्त होती है और [[रामायण]] और बाद की रामकथाओं में विस्तार से इनकी कथा वर्णित है। कथाओं के अनुसार यह गौतम ऋषि की पत्नी और ब्रह्माजी की मानसपुत्री थी। [[ब्रह्मा]] ने अहल्या को सबसे सुंदर स्त्री बनाया। सभी [[देवता]] उनसे विवाह करना चाहते थे। ब्रह्मा ने एक शर्त रखी जो सबसे पहले त्रिलोक का भ्रमण कर आएगा वही अहल्या का वरण करेगा। [[इन्द्र|इंद्र]] अपनी सभी चमत्कारी शक्ति द्वारा सबसे पहले त्रिलोक का भ्रमण कर आये। लेकिन तभी [[नारद]] ने ब्रह्माजी को बताया की ऋषि [[गौतम]] ने इंद्र से पहले किया है। जीनारदजी ने ब्रह्माजी को बताया की अपने दैनिक पूजा क्रम में ऋषि गौतम ने गाय माता का परिक्रमा करते समय बछडे को जन्म दिया। वेदानुसार इस अवस्था में गाय की परिक्रमा करना त्रिलोक परिक्रमा समान होता है। इस तरह माता अहल्या की शादी [[अत्रि]] ऋषि के पुत्र ऋषि गौतम से हुआ।
 
इंद्र के गलती की वजह ऋषि गौतम ने माता अहिल्या शाप देकर पत्थर बना दिया। कालांतर में प्रभु श्रीराम के चरणस्पर्श द्वारा वे पुन: स्त्री बनी।
पंक्ति 22:
ज्ञानमंडल, वाराणसी प्रकाशित आधुनिक कोश इसी अर्थ को लेकर लिखता है: ''"अहल्या- हल का अर्थ है कुरूप, अतः कुरूपता न होने के कारण ब्रह्मा ने इन्हें अहल्या नाम दिया।"''<ref>हिन्दी साहित्य कोश, भाग-2, प्रकाशक- ज्ञानमंडल लिमिटेड, वाराणसी-1, द्वितीय संस्करण 1986, पृष्ठ- 30 </ref><!-- वार्ता पन्ना देखें -->
 
चूँकि, कतिपय संस्कृत शब्दकोश ''अहल्या'' का अर्थ ''ऐसी भूमि जिसे जोता न गया हो'' लिखते हैं,{{r|Wilson p100|Apte p73}} बाद के लेखक इसे पुरुष समागम से जोड़कर देखते हुये, अहल्या को कुमारी अथवा अक्षता के रूप में निरूपित करते हैं। यह उस परम्परा के अनुकूल पड़ता है जिसमें यह माना गया है कि अहल्या एकानेक प्रकार से इन्द्र की लिप्सा से मुक्त और उनकी पहुँच से बाहर रही।{{sfn|Bhattacharya|March–April 2004|pp=4–7}}{{sfn|Doniger|1999|pp=89, 129}}{{sfn|Feller|2004|p=146}} हालाँकि, रवीन्द्रनाथ टैगोर (1861–1941), "अहल्या" का अभिधात्मक अर्थ "जिसे जोता न जा सके" मानते हुए उसे प्रस्तरवत् निरूपित करते हैं जिसे राम के चरणस्पर्श ने ऊर्वर बना दिया।{{sfn|Datta|2001|p=56}} दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर भारती झावेरी<!-- DEPARTMENT OF MODERN INDIAN LANGUAGES AND LITERARY STUDIES --> भील जनजाति की मौखिक परम्परा में मौजूद रामायण के अनुसाररवीन्द्रनाथ क मत का समर्थन करती हैं और इसका अर्थ "जिसे जोता न गया हो ऐसी ज़मीन" के रूप में बताती हैं।{{sfn|Jhaveri|2001|pp=149–52}}
 
== अहिल्या की कथा ==
राम और [[लक्ष्मण]] ऋषि [[विश्वामित्र]] के साथ मिथिलापुरी के वन उपवन आदि देखने के लिये निकले तो उन्होंने एक उपवन में एक निर्जन स्थान देखा। राम बोले, "भगवन्! यह स्थान देखने में तो आश्रम जैसा दिखाई देता है किन्तु क्या कारण है कि यहाँ कोई ऋषि या मुनि दिखाई नहीं देते?"
 
विश्वामित्र जी ने बताया, यह स्थान कभी महर्षि गौतम का आश्रम था। वे अपनी पत्नी के साथ यहाँ रह कर तपस्या करते थे। एक दिन जब गौतम ऋषि आश्रम के बाहर गये हुये थे तो उनकी अनुपस्थिति में इन्द्र ने गौतम ऋषि के वेश में आकर अहिल्या से प्रणय याचना की। यद्यपि अहिल्या ने इन्द्र को पहचाननहीं लियापहचाना, ऋषि गौतम को तथाजानकर अहिल्या ने प्रणय हेतु अपनी स्वीकृति नहीं दी। जब इन्द्र लज्जित होकर अपने लोक लौट रहारहे थाथे तभी अपने आश्रम को वापस आते हुये गौतम ऋषि की दृष्टि इन्द्र पर पड़ी जो उन्हीं का वेश धारण किये हुये था। वे सब कुछ समझ गये और उन्होंने इन्द्र को नपुंशक होने का शाप दे दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी को क्रोधवश शाप दिया कि रे दुराचारिणी! तू हजारों वर्षों तक केवल हवा पीकर कष्ट उठाती हुई यहाँ राख में पड़ी रहे। जब गौतम ऋषि को सच का आभास हुआ तब उन्होंने अहिल्या को शाप मुक्ति का उपाय बताया और कहा जब राम इस वन में प्रवेश करेंगे तभी उनकी कृपा से तुम्हारातेरा उद्धार होगा। तभी तुमतू अपना पूर्व शरीर धारण करके मेरे पास आ सकोगी।सकेगी। यह कह कर गौतम ऋषि इस आश्रम को छोड़कर [[हिमालय]] पर जाकर तपस्या करने लगे।<ref name="dinjosh">{{cite book|first1=Dinakara Jośī ; anuvādaka, Triveṇī Prasāda Śukla, Prajñā|last1=Śukla|title=Rāmāyaṇa ke pātra|trans-title=रामायण के पात्र|date=2011|publisher=Grantha Akādamī|location=Naī Dillī|isbn=9789381063064|pages=100-102|url=https://books.google.co.in/books?id=YUx0BQAAQBAJ&pg=PT101&dq=%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE+%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwiq38mTtOPTAhWiC5oKHa9OBl8Q6AEIIjAA#v=onepage&q=%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0&f=false|accessdate=9 मई 2017|edition=Saṃskaraṇa 1.}}</ref>
 
== उद्धार ==
पंक्ति 51:
परंपरावादी हिन्दू, ख़ास तौर पर हिन्दू पत्नियाँ, पंचकन्याओं का स्मरण प्रातःकालीन प्रार्थना में करती हैं, इन्हें पाँच कुमारियाँ माना जाता है।{{sfn|Chattopadhyaya|1982|pp=13–4}}{{sfn|Mukherjee|1999|p=36}}{{sfn|Dallapiccola|2002}} एक मत के अनुसार ये पाँचों "उदाहरणीय पवित्र नारियाँ"{{sfn|Dallapiccola|2002}} अथवा महारी नृत्य परंपरा अनुसार ''महासतियाँ'' हैं,{{sfn|Ritha Devi|Spring-Summer 1977|pp=25–9}} और कतिपय शक्तियों की स्वामिनी भी हैं।{{sfn|Chattopadhyaya|1982|pp=13–4}} इस मत के अनुसार अहल्या इन पाँचो में सबसे प्रमुख हैं जिन्हें छलपूर्वक भ्रष्ट किया गया जबकि उनकी अपने पति के प्रति पूर्ण निष्ठा थी।{{sfn|Dallapiccola|2002}} अहल्या को पाँचों में प्रमुख इसलिए भी माना जाता है क्योंकि यह पात्र कालानुक्रम में भी सबसे पहले हैं।{{sfn|Bhattacharya|March–April 2004|pp=4–7}} देवी भागवत पुराण में अहल्या को एक प्रकार से उन द्वितीय कोटि की देवियों में स्थान दिया गया है, जिन देवियों को शुभ, यशस्विनी और प्रशंसनीय माना गया है; इनमें तारा और मंदोदरी के अलावा पंचसतियों में से अरुन्धती और दमयन्ती इत्यादि भी शामिल की गयी हैं। {{r|Vijnanananda p876}}
 
अन्य मत पंचकन्याओं को कोई आदर्श नारी के रूप में नहीं देखता और इन्हें अनुकरणीय भी नहीं मानता।{{sfn|Mukherjee|1999|pp=48–9}}
भट्टाचार्य , जो ''पंच-कन्या: दि फ़ाइव वर्जिन्स ऑफ़ इण्डियन एपिक्स'' के लेखक हैं, पंचकन्याओं और पंचसतियों, सती सीता, सावित्री, दमयन्ती और अरुन्धती, के मध्य तुलनात्मक विचार प्रकट करते हुए पूछते है:"तो क्या तब अहल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा और मंदोदरी सच्चरित्र पत्नियाँ ''नहीं'' हैं क्योंकि इनमें से प्रत्येक ने अपने पति के अलावा एक (या एकाधिक) पर पुरुष को जाना (संसर्ग किया)?"{{sfn|Bhattacharya|2000|p=13}}
 
चूँकि, वे ऐसे कामव्यापार का प्रदर्शन करती हैं जो पराम्परागत आदर्शों के विपरीत है, भारतीय समाज सुधारक कमलादेवी चट्टोपाध्याय इस बात पर विस्मय व्यक्त करती हैं कि अहल्या और तारा को ''पंचकन्याओं'' में शामिल किया गया है।
{{sfn|Chattopadhyaya|1982|pp=13–4}} हालाँकि, अहल्या के इस अत्यंतगमन ने उन्हें पाप का भागी बनाया और उन्हें वह उच्च स्थान नहीं प्राप्त जो सीता और सावित्री जैसी स्त्रियों को मिला, उनके इस कार्य ने उन्हें कथाओं में अमर कर दिया।
 
वह स्थान जहाँ अहल्या ने अपने शाप की अवधि पूर्ण की और जहाँ शापमुक्त हुईं, ग्रन्थों में अहल्या-तीर्थ के नाम से उल्लेखित और पवित्र स्थान के रूप मेंप्रतिष्ठित है। तीर्थ स्थल वह जगह या जल भंडार होता है जहाँ आमतौर पर हिन्दू तीर्थयात्री स्नान करके अपने पापों से मुक्त होने की मान्यता रखते हैं। अहल्या-तीर्थ की वास्तविक अवस्थिति के बारे में विवाद है: कुछ ग्रन्थों के मुताबिक़ यह गोदावरी नदी के तट पर स्थित है जबकि कुछ ग्रन्थ इसे नर्मदा के तट पर स्थित मानते हैं। दो ऐसे प्रमुख स्थान हैं जिनके अहल्या तीर्थ होने का दावा सबसे मजबूती से प्रस्तुत किया जाता है। पहला, मध्य प्रदेश के बालोद के पास नर्मदा के किनारे मौजूद ''अहल्येश्वर मंदिर''; दूसरा बिहार के दरभंगा ज़िले में स्थित मंदिर।{{sfn|Kapoor|2002|p=16}}{{sfn|Ganguli Vana Parva|1883–1896|loc=[http://www.sacred-texts.com/hin/m03/m03084.htm chap. LXXXIV]}} ''अहिल्या अस्थान'' <!-- स्थानीय नाम, कृपया इसे अहल्या स्थान न लिखें --> नामक मंदिर और ''अहल्या-ग्राम'' भी इसी ज़िले में स्थित हैं जो अहल्या को समर्पित हैं।{{sfn|Official Site of Darbhanga District|2006}} मत्स्य पुराण और कूर्म पुराण में, कामदेव के सामान रूपवान बनने और नारियों को आकर्षित करने की कामना रखने वाले पुरुषों को अहल्या तीर्थ में जाकर अहल्या की उपासना करने का मार्ग सुझाया गया है। यह उपासना कामदेव के माह, चैत्र, में करने को कहा गया है और ग्रंथों के अनुसार इस तीर्थ में स्नान करने वाला व्यक्ति अप्सराओं का सुख भोगता है।{{sfn|Benton|2006|p=79}}
 
भट्टाचार्य के अनुसार, अहल्या नारी के उस शास्वत रूप का प्रतिनिधित्व करती है जो आपने अन्दर की अभीप्सा को भी अनसुना नहीं कर पाती और न ही पवित्रता की उच्च भावनाओं को ही जो उसकी शारीरिक कामनाओं की पूर्ति न कर पाने वाले उसके साधु पति में निहित हैं और उसकी निजी इच्छाओं के साथ विरोधाभास रखती हैं। लेखक अहल्या को एक स्वतन्त्र नारी के रूप में देखता है जो अपना ख़ुद का निर्णय लेती है, उत्सुकता के वशीभूत होकर जोख़िम उठाती है, और अंत में अपने कृत्य का दंड भी उस शाप के रूप में स्वीकार करती है जो पुरुषप्रधान समाज के प्रतिनिधि उसके पति द्वारा लगाया जाता है।{{sfn|Bhattacharya|March–April 2004|pp=4–7}} शाप की अविचलित होकर स्वीकृत ही वह कार्य है जो ''रामायण'' को इस पात्र की प्रशंसा करने को विवश कर देता है और उसे प्रशसनीय एवम् अनुकरणीय चरित्र के रूप में स्थापित कर देता है।{{sfn|Bhattacharya|November–December 2004|p=31}}
 
भट्टाचार्य की तरह ही, ''सबॉर्डिनेशन ऑफ़ वुमन: अ न्यू पर्सपेक्टिव'' पुस्तक की लेखिका मीना केलकर यह महसूस करती हैं कि अहल्या को इसलिए श्रद्धेय बना दिया गया क्योंकि वह पुरुष प्रधान समाज के लिंगभेद के आदर्शों को स्वीकार कर लेती है; वह शाप को बिना किसी प्रतिरोध के स्वीकार कर लेती है और मानती है कि उसे दण्डित किया जाना चाहिए था। इसके अलावा केलकर यह भी जोड़ती हैं कि ग्रन्थों में अहल्या को महान घोषित किये जाने का एक अन्य कारण उसको मिले शाप द्वारा स्त्रियों को चेतावनी देना और उन्हें निरुद्ध किये जाने के लिए भी हो सकता है।{{sfn|Kelkar|1995|pp=59–60}}
 
हिन्दू मिथकों में वर्णित इस कथा से कुछ मिलती जुलती कथा यूनानी मिथकों में भी प्राप्त होती है, जहाँ ज़्यूस, देवताओं का राजा, जो एक तरह से इन्द्र के ही समान है, आलक्मीनी के पति का रूप धर कर छलपूर्वक उसके साथ संसर्ग करता है जिससे प्रसिद्ध कथापुरुष हर्क्युलिस का जन्म होता है। अहल्या की ही तरह इस ग्रीक कथा के दो वर्शन हैं जिनमें से एक के अनुसार अलक्मीनी ज़्यूस के कपट को पहचानने के बावज़ूद उसके साथ संसर्ग करती है, जबकि दूसरे वर्शन के अनुसार वह निर्दोष है और प्रवंचना की शिकार है।
 
दोनों कथाओं में प्रमुख अंतर यह है कि अलक्मीनी के साथ संसर्ग द्वारा हरक्यूलीज जैसी संतान की उत्पत्ति के कारण से ज़्यूस का कार्य न्यायोचित ठहराया जाता है और और अलक्मीनी पर भी कोई आरोप दुष्चरित्रा होने का नहीं लगता; अहल्या के कार्य को कामुक आचरण मानकर न केवल उसे इसके लिये बुरा साबित किया जाता है बल्कि शाप के रूप में सज़ा भी प्राप्त होती है।{{sfn|Söhnen|1991|pp=73–4}}{{sfn|Doniger|1999|pp=124–5}}
 
==सन्दर्भ==
{{Reflist}}गौतम वंशज
 
 
== बाहरी कड़ियाँ ==