"इस्पात": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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; (क) यांत्रिक गुणों में वृद्धि
:(1) तैयार इस्पात की पुष्टता में वृद्धि
:(2) किसी निम्नतम कठोरता या पुष्टता पर चिमड़ेपन (टफ़नेस) अथवा सुघट्यता (प्लैस्टिसिटी) में वृद्धि।
:(3) उस अधिकतम मोटाई में वृद्धि जिसे बुझाकर वांछित सीमा तक कड़ा किया जा सकता हो।
:(4) बुझाकर कठोरीकरण की क्षमता में कमी।
:(5) ठंढी रीति से कठोरीकरण की दर में वृद्धि।
:(6) खरादने इत्यादि की क्रिया सुगमता से कर सकने के विचार से कड़ाई को सुरक्षित रखकर सुघट्यता में कमी।
:(7) घिसाव-प्रतिरोध अथवा काटने के सामथ्र्य में वृद्धि।
:(8) इच्छित कठोरता प्राप्त करते समय ऐंठने या चटकने में कमी।
:(9) ऊँचे या निम्न ताप पर भौतिक गुणों में उन्नति।
;(ख)
:(1) प्रारंभिक चुंबकशीलता (पर्मिएबिलिटी) तथा अधिकतम प्रेरण (इंडक्शन) में वृद्धि।
:(2) प्रसाही (कोअर्सिव) बल, मंदायन (हिस्टेरोसिस) तथा विद्युत् (वाट) हानि में कमी (चुंबकीय अर्थ में कोमल लोहा)।
:(3) प्रसाही बल तथा चुंबकीय स्थायित्व (रिमेनेंस) में वृद्धि।
:(4) सभी प्रकार के चुबंकीय गुणों में कमी।
;(ग) रासायनिक निष्क्रियता में वृद्धि
:(1) आर्द्र वातावरण में मोरचा लगने में कमी।
:(2) उच्च ताप पर भी रासायनिक क्रियाशीलता में कमी।
:(3) रासायनिक वस्तुओं द्वारा आक्रमण में कमी।
; उष्मा उपचार (हीट-ट्रीटमेन्ट) से इस्पात के गुणों में परिवर्तन
लोहा दो प्रकार के अति उपयोगी सममापीय (आइसोमेट्रिक) रवों के रूप में रहता है : (1) ऐल्फ़ा लोहा, जिसके ठोस घोल को "फ़ेराइट" कहते हैं और (2) गामा लोहा, जिसका ठोस घोल "ऑसटेनाइट" है। शुद्ध लोहे का ऐल्फ़ा रूप लगभग
कार्बन इस्पात के मोटे टुकड़ों को ऐसी विधियों तथा दरों से एक सीमा तक ठंढा किया जा सकता है कि फेराइट में सीमेंटाइट के संभव वितरणों में से कोई भी वितरण उपलब्ध हो जाए। संरचना तथा उष्मा उपचार के विचार से कारबन इस्पात के अपेक्षाकृत ऐसे छोटे नमूने सरलता से चुने जा सकते हैं जिनमें साधारण ताप पर प्राय: महत्तम यांत्रिक गुण हों।
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