"स्वामी अछूतानन्द": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
'''स्वामी अछूतानन्द''' संपूर्ण भारत में 'आदि हिन्दी' का डंका बजाने वाले, [[कविता]], [[नाटक]] और [[पत्रकारिता]] में ऊर्जस्वी पैठ रखने वाले अछूतानंद का जन्म उन्नीसवीं सदी के आठवें दशक में हुआ था। जीवन की शुरुआत में ही शूद्र जातियों से बेगार करवाने वाले ब्राह्मणों से उनका झगड़ा हुआ और [[फर्रुखाबाद]] के अपने गांव को उन्हें छोड़ना पड़ा था। बाद में [[आर्य समाज]] के सम्पर्क में आकर वे 'हरिहरानंद' हो गए। उनकी भाषण कला अद्भुत थी। जल्दी ही वे आर्य समाज के लोकप्रिय प्रचारक बन गए लेकिन शीघ्र ही आर्य समाज से भी अलग हो गए। उनका यह विश्वास पक्का हो गया कि 'शूद्र' कही गयी समस्त जातियां ही 'आदि हिन्दू' हैं और उनकी सांस्कृतिक ऐतिहासिक पहचान पुन: स्थापित होनी चाहिए।
 
इसके बाद वे अपने लेखन और भाषणों के माध्यम से लंबी यात्राएं करते हुए आमजन को सम्बोधित करने लगे। अपनी बात को अधिक प्रभावी बनाने के लिए अब स्वामी हरिहरानंद के बजाय स्वामी अछूतानंद होकर कविता, लेख, नाटक आदि के माध्यम से समाज को सम्बोधित करने लगे।