"क़ुरआन की आलोचना": अवतरणों में अंतर
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कुरान की ऐतिहासिक आलोचना करने वाले विद्वान, जैसे जॉन वान्सब्रो (John Wansbrough), जोसेफ स्काट (Joseph Schacht), पत्रिक क्रोन (Patricia Crone), माइकेअल कुक (Michael Cook) इसकी उत्पत्ति, इसके पाठ (टेक्स्ट), रचना, इसके इतिहास, दुरूह टेक्स्ट आदि की वैसी ही जाँच-पड़ताल करना चाहते हैं जैसे किसी अन्य गैर-धार्मिक ग्रन्थ के बारे में किया जाता है।<ref>LESTER, TOBY (January 1999). [https://www.theatlantic.com/magazine/archive/1999/01/what-is-the-koran/304024/ "What Is the Koran?"]. Atlantic. Retrieved 8 April 2019.</ref> इस्लाम के विरोधी (जैसे इब्न वराक)<ref>Ibn Warraq, Why I Am Not a Muslim, 1995: p.104-63</ref> आदि ने कुरान की आन्तरिक विरोधाभासी बातों, वैज्ञानिक (तथ्यात्मक) गलतियों, इसकी स्पष्टता की त्रुटियों, विश्वसनीयता, तथा नीति-सम्बन्धी सन्देशों को धूढ़ने की कोशिश की है।<ref>[http://jewishencyclopedia.com/view.jsp?artid=1032&letter=B#3068 Bible in Mohammedian Literature]., by Kaufmann Kohler Duncan B. McDonald, Jewish Encyclopedia. Retrieved April 22, 2006.</ref> कुरान की सबसे आम आलोचना पहले से मौजूद उन स्रोतों को लेकर है जिन पर कुरान आधारित है, कुरान के आन्तरिक विरोधाभास, इसकी (अ) स्पष्टता और नीति-सम्बन्धी शिक्षाओं को लेकर होती है।
भारतीय विचारकों में जिन लोगों ने कुरान की आलोचना की है उसमें [[आर्य समाज]] के प्रवर्तक तथा [[सत्यार्थ प्रकाश]] के रचयिता [[स्वामी
: ''इस मजहब में अल्लाह और रसूल के वास्ते संसार को लुटवाना और लूट के माल में खुदा को हिस्सेदार बनाना शबाब का काम है। जो मुसलमान नहीं बनते उन लोगों को मारना और बदले में बहिश्त को पाना आदि पक्षपात की बातें ईश्वर की नहीं हो सकतीं। श्रेष्ठ गैर-मुसलमानों से शत्रुता और दुष्ट मुसलमानों से मित्रता, जन्नत में अनेक औरतों और लौंडे होना आदि निन्दित उपदेश कुएँ में डालने योग्य हैं। अनेक स्त्रियों को रखने वाले मुहम्मद साहब निर्दयी, राक्षस व विषयासक्त मनुष्य थे। इस्लाम से अधिक अशांति फैलाने वाला दुष्ट मत दूसरा और कोई नहीं। इस्लाम मत की मुख्य पुस्तक कुरान पर हमारा यह लेख हठ, दुराग्रह, ईर्ष्या, विवाद और विरोध घटाने के लिए लिखा गया, न कि इसको बढ़ाने के लिए। सब सज्जनों के सामने इसे रखने का उद्देश्य अच्छाई को ग्रहण करना और बुराई को त्यागना है।
इतना ही नहीं, दयानन्द को कुरआन की पहली आयत पर ही आपत्ति है। वे कहते हैं कि "कुरआन का प्रारम्भ ही मिथ्या से हुआ है"। दयानंद को इस कलमे ( वाक्य ) पर दो आपत्तियां है I प्रथम यह कुरआन के प्रारम्भ में यह कलमा परमात्मा की ओर से प्रेषित ( इल्हाम ) नहीं हुआ है (जैसा कि मोहम्मद ने दावा किया है)I दूसरा यह की मुसलमान लोग कुछ ऐसे कार्यों में भी इसका पाठ करते है जो इस पवित्र वाक्य के गौरव के अधिकार क्षेत्र नहीं I
== आलोचना ==
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