"दशमलव पद्धति": अवतरणों में अंतर
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'''दशमलव पद्धति''' या '''दाशमिक संख्या पद्धति''' या '''दशाधार संख्या पद्धति''' (decimal system, "base ten" or "denary") वह संख्या पद्धति है जिसमें गिनती/गणना के लिये कुल '''दस
उदाहरण के लिये '''645.7''' दशमलव पद्धति में लिखी एक संख्या है।
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इस पद्धति की सफलता के बहुत से कारण हैं-
* किसी भी संख्या को निरूपित करने के लिये केवल '''दस''' संकेतों का प्रयोग - दस संकेत न इतने अधिक हैं कि याद न किये जा सकें और न इतने कम हैं कि बड़ी संख्याओं को लिखने के लिये संकेतों को बहुत बार उपयोग करना
* दस का अंक मानव के लिये अत्यन्त परिचित हैं - हाथों में कुल दस अंगुलियाँ है; पैरों में भी दस अंगुलियाँ हैं।
== परिचय ==
[[अंक|अंकों]] को दस चिन्हों के माध्यम से व्यक्त करने की प्रथा का प्रादुर्भाव सर्वप्रथम भारत में ही हुआ था। [[संस्कृत साहित्य]] में [[अंकगणित]] को श्रेष्ठतम विज्ञान माना गया है। लगभग पाँचवीं शताब्दी में [[भारत]] में [[आर्यभट]]
=== नापतौल (मापन) में दाशनिक पद्धति ===
दशमिक प्रणाली द्वारा विभिन्न इकाइयों (Units) के मानों को निर्धारित करने में '''दस''' (10) का प्रयोग किया जाता है, अर्थात् इसके अंतर्गत प्रत्येक इकाई अपने से छोटी इकाई की दस गुनी बड़ी होती है और अपने से ठीक बड़ी इकाई की दशमांश छोटी होती है। दाशमिक पद्धति इतनी सुविधाजनक है कि गणित के अलावा इसे [[मापन]] में भी अपना लिया गया। वस्तुओं के मूल्यांकन में इस प्रणाली का प्रयोग सर्वप्रथम [[फ़्रान्सीसी क्रान्ति|फ्रांस की क्रांति]] के प्रारंभिक दिनों में हुआ था और क्रांति के कुछ ही वर्षों बाद देश की समस्त माप तौल दशमिक प्रणाली द्वारा होने लगी थी। इस प्रणाली की सुगमता से प्रभावित होकर कई अन्य देशों ने भी इसे अपना लिया। [[बेल्जियम|बेलजियम]] ने सन् 1833 और [[स्विट्ज़रलैण्ड|स्विट्ज़रलैंड]] ने सन् 1891 में इस प्रणाली को अपनाया। [[जर्मनी]], [[नीदरलैण्ड|हॉलैंड]], [[रूस]] और [[संयुक्त राज्य अमेरिका|अमरीका]] पर भी इस प्रणाली का बहुत प्रभाव पड़ा और इन देशों ने भी शीघ्र ही इस प्रकार की प्रणाली अपना ली।
इस प्रणाली को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्रदान करने के लिए 1870 ई. में फ्रांसीसी सरकार द्वारा एक सम्मेलन बुलाया गया, जिसमें 30 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और इस प्रणाली को अंतरराष्ट्रीय मान्यता देने का सुझाव स्वीकार किया। धीरे धीरे संसार के लगभग भाग में यह प्रणाली प्रयुक्त होने लगी। इस प्रणाली का सबसे बड़ा गुण इसी सुगमता है। इसका मूल अंक 10 है। प्रत्येक माप या तौल में 10 या इसके दसवें भाग का प्रयोग होता है। ==== भारत में दाशमिक मापन प्रणाली ====
[[भारत]] में माप और तौल के जगह जगह कई प्रकार के ढंग थे। प्रत्येक प्रांत और मंडी में अलग अलग ढंगों से चीजें मापी और तौली जाती थीं। अनुमान है कि देश में लगभग 150 से भी अधिक प्रकार के बाट और माप के विभिन्न ढंग प्रचलित थे। इन कठिनाइयों से वस्तुओं का आदानप्रदान तथा उनका सही भाव मालूम करना बड़ा कठिन हो जाता था। माप तौल की भिन्नता से वस्तुओं के घटते बढ़ते भावों का ठीक अनुमान भी नहीं हो पाता। इससे व्यापार की बहुत क्षति हाती है और क्रेता एवं विक्रेता दोनों को शंका रहती है। माप तौल की विधियों में एरूपता लाने का ढंग भारत में कई बार सोचा गया,
इस प्रणाली को अपनाने से सारे देश में एक ही प्रकार की माप और तौल के ढंग लागू करने का अधिकार सरकार को प्राप्त हो गया। इससे व्यापार और वस्तुओं के यातायात में बड़ी सहायता मिली। दशमिक प्रणाली की सुगमता से माप और तौल के लेन देन का हिसाब भी आसान हो गया।
इस प्रणाली के अनुसार
== दशमलव भिन्न ==
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{{SI prefixes}}
*[[भारतीय अंक प्रणाली]]
*[[संख्या पद्धतियाँ|संख्या पद्धति]] (Number system)
*[[द्वयाधारी संख्या पद्धति|द्वयाधारी पद्धति]] (Binary number system)▼
*[[अष्टाधारी|अष्टाधारी पद्धति]] (Octal system)
*[[षोडश आधारी|षोडशाधारी पद्धति]] (Hexadecimal system)
▲*[[द्वयाधारी संख्या पद्धति|द्वयाधारी पद्धति]] (Binary number system)
*[[मीटरी पद्धति|मापन की मीटरी पद्धति]]
== बाहरी कड़ियाँ ==
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