"तिब्बती साहित्य": अवतरणों में अंतर

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'''तिब्बती साहित्य''' से तात्पर्य [[तिब्बती भाषा]] में लिखे गये साहित्य से है। तिब्बती संस्कृति से उद्भूत साहित्य को भी 'तिब्बती साहित्य' ही कहते हैं। ऐतिहासिक रूप से तिब्बती भाषा का उपयोग कई क्षेत्रों को परस्पर जोड़ने वाली भाषा के रूप में हुआ है। इसने विभिन्न कालों में [[तिब्बत]] से [[मंगोलिया]] को, [[रूस]], आज के [[भूटान]], [[नेपाल]], [[भारत]] को जोड़ने का कार्य किया है।
 
७वीं शताब्दी में तिब्बती साम्राज्य के समय भारतीय लिपि से [[तिब्बती लिपि]] का विकास हुआ था। 8वीं शताब्दी में [[संस्कृत]] के [[बौद्ध]] ग्रंथों के [[अनुवाद]] के उद्देश्य से बसम यस मठ की स्थापना के साथ तिब्बती भाषा साहित्य के विकास को नयी गति मिली। बौद्ध विचारों के तिब्बती समाज में प्रसार से तिब्बत में भारतीय और चीनी दोनों शैलियों को अपनाया गया। १४वीं शताब्दी में १०८ खण्डों वाले '[[कांगयुर]]' तथा १७वीं शताब्दी में २२४ खण्दों वाले '[[तेंगयुर]]' नामक ग्रन्थों की रचना हुई। चूंकि मुग्ल काल में भारत के मठों में स्थित विद्याकेन्द्रों को नष्ट कर दिया गया, इस कारण वर्तमान समय में अनेक भारतीय ग्रन्थों के केवल तिब्बती संस्करण ही उपलब्ध हैं। सन् 950 के आसपास, बौद्ध धर्मग्रंथों की रक्षा के लिए , [[दुनहुआंग]] के [[नखलिस्तान]] के पास [[मोगाओ गुफ़ाएँ|मोगाओ गुफाओं]] में एक गुप्त [[पुस्तकालय]] बनाया गया था। आज तिब्बती, चीनी और उइघर ग्रंथों के सबसे पुराने संस्करण सुरक्षित हैं, इसमें इसी पुस्तकालय की भूमिका है।
 
==इन्हें भी देखें==